आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा किडनी की विफलता का उपचार

अल्कोहोल और किडनी रोग

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आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा किडनी की विफलता का उपचार

किडनी व्यक्ति के शरीर का सबसे खास अंग है, यह पुरे शरीर में रासायनिक संतुलन बनाने का कार्य करती है. किडनी हमारे शरीर में बहने वाले रक्त को साफ करने का कार्य करती है और रक्त में मौजूद पोटेशियम, यूरिया, यूरिक एसिड, सोडियम, अतिरिक्त शर्करा और अन्य अपशिष्ट उत्पादों को उससे अलग कर पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकाल देती है। यह बाकि अन्य अंगों के मुकाबले सबसे संवेदनशील भी होती है क्योंकि किडनी थोड़ी बहुत लापरवाही के होते ही कई समस्याओं से घिर जाती है. अपने इस कार्य के अलावा भी किडनी कई कार्यों को अंजाम देती है, जैसे – हड्डियों को मजबूत करना, पानी का संतुलन बनाना, आदि.

पर जब किसी व्यक्ति की किडनी खराब हो जाती है या उसकी किडनी के कार्य करने क्षमता कम हो जाती तो उस दौरान व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इन सभी समस्याओं को किडनी खराब होने के लक्षणों के तौर पर देखा जाता है. किडनी खराब होने पर व्यक्ति को पेशाब, सूजन, कमजोरी, अनिद्रा, सूजन, अपच, भूख की कमी, उल्टियाँ, बदन दर्द जैसे कई तकलीफों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में रोगी को चाहिए की वह जल्द से जल्द अपनी किडनी को पुनः स्वस्थ करे।

खराब हुई किडनी को कैसे ठीक करें?

एक बार खराब हुई किडनी को फिर से ठीक करना काफी मुश्किल काम होता है। किडनी खराब होने पर किडनी रोगी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है सही उपचार का चयन करना. किडनी रोगी के सामने अपनी खराब हुई किडनी को ठीक करने के दो विकल्प होते हैं – पहला, एलोपैथी और दूसरा, आयुर्वेदिक। अगर किडनी रोगी एलोपैथी उपचार का चयन करता है तो उसे लगातार लंबे समय तक दर्दनाक डायलिसिस से गुजरना पड़ता है और अंत में चिकित्सक उसे किडनी ट्रांसप्लांट करवाने की सलाह दे देते हैं. किडनी का उपचार करने दौरान भी एलोपैथी उपचार में भी ऐसा ही होता है, चिकित्सक केवल किडनी खराब होने के कारण होने वाले लक्षणों से छुटकारा दिलाने में जुट जाते हैं और किडनी को पुनः ठीक करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।

लेकिन अगर किडनी रोगी आयुर्वेदिक उपचार का चयन करता है तो वह बहुत जल्द ही ठीक होने लगता है और उसे दर्दनाक डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट भी नहीं करवाना पड़ता. आयुर्वेदिक उपचार ना केवल रोग के लक्षण पर काम करता है बल्कि रोग को जड़ से खत्म करने की ओर भी अग्रसर होता है। किडनी फेल्योर जैसी गंभीर समस्या के आयुर्वेदिक उपचार में कुछ निम्नलिखित औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है -

  • पुनर्नवा- पुनर्नवा का वैज्ञानिक नाम बोरहैविया डिफ्यूजा है। यह औषधि शरीर के खून की सफाई का कार्य करने वाली, किडनी में होने वाली औषधि समस्या को ठीक करने में मदद करती है।
  • गोरखमुंडी- किसी व्यक्ति को अगर किडनी में इन्फेक्शन हो जाता है तो पेशाब के लिए उसे बार-बार जाना पड़ता है। साथ ही पेशाब मे जलन या पेशाब मे खून आने वाली समस्या को ठीक करने में गोरखमुंडी मददगार साबित हुई है।
  • गोखरू- गोखरू को गोक्षुर नाम से भी जाना जाता है। गोखरू वातपित्त, सूजन, दर्द को कम करने में मददगार होती है। यह नाक-कान से खून आना वाली समस्या से भी राहत दिलाने में सहायक है। गोखरू की मदद से खांसी को ठीक किया जा सकता है और मूत्राशय संबंधी रोगों में भी लाभ मिलता है। साथ ही यह औषधि शक्तिवर्द्धक और स्वादिष्ट होती है।
  • कासनी- कासनी एक पूरे वर्ष पैदा होने वाला पौधा है, जिसका वैज्ञानिक नाम सिकोरियम इंट्यूबस है। इस औषधि को चिकोरी के नाम से भी जाना जाता है। इसके इस्तेमाल से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को ठीक किया जा सकता है, किडनी खराब होने के कारण होने वाली सूजन को भी ठीक कर सकते हैं। साथ ही यह औषधि मोटापा कप कम करने और दिल की बिमारियों से राहत दिलवाने में भी फायदेमंद है।
  • अश्वगंधा - अश्वगंधा आयुर्वेदिक औषधियों में एक खास औषधि है, इसका प्रयोग कई रोगों के उपचार में किया जाता है। अश्वगंधा की जड़ को सुखाकर चूर्ण बनाकर इसे प्रयोग में लाया जाता है। इस चूर्ण को उबालकर इसके सत्व का प्रयोग किया जाता है या फिर आप इसका प्रयोग गर्म पानी के साथ भी कर सकते हैं। अश्वगंधा का चूर्ण रक्त विकार, उच्च रक्तचाप, मूत्र विकार जैसे गंभीर रोगों से उचार दिलाने में मदद करता है। इसके अलावा यह बलकारी, शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने वाला, शुक्रवर्धक खोई हुई ऊर्जा को दोबारा देकर लंबी उम्र का वरदान देता है।
  • शतावरी - शतावरी की बेल कई रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इसकी जड़ को छाव में सुखाकर इसका प्रयोग किया जाता है। शतावरी एक रसायन औषधि है यह बौद्धिक विकास, पाचन को मजबूत करने वाली, नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाली, उदर गत वायु दोष को ठीक करने वाली औषधि है। कुछ शोधो के अनुसार शतावरी का सेवन करने से लम्बी आयु प्राप्त होती है।
  • आंवला - आवंले का प्रयोग काफी समय से आयुर्वेद में औषधि के रूप में किया जाता है, यह स्वाद में खट्टा होता है। इसके अलावा आंवले को त्वचारोगहर, ज्वरनाशक, रक्तपित्त हर, अतिसार, प्रवाहिका, हृदय रोग आदि में बेहद लाभकारी माना गया है। आंवले का नियमित सेवन लंबी आयु की गारंटी भी देता है। आवंले के गुणों का वर्णन चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भाव प्रकाश, अष्टांग हृदय जैसे ग्रंथो मे किया गया है।

कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार

कर्मा आयुर्वेदा साल 1937 से किडनी रोगियों का इलाज करता आ रहा है। वर्ष 1937 में धवन परिवार द्वारा कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना की गयी थी। वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन कर्मा आयुर्वेदा को संभाल रहे है। डॉ. पुनीत धवन ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया है। कर्मा आयुर्वेदा किडनी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना पूर्णतः प्राचीन भारतीय आयुर्वेद के सहारे से किडनी फेल्योर का इलाज कर रहा है।

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