किडनी मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। किडनी की खराबी किसी गंभीर बीमारियों या मौत का कारण भी बन सकता हैं। इसकी तुलना हम एक सुपर कंप्यूटर के साथ कर सकते हैं, क्योंकि किडनी की रचना बेहद अटपटी हैं और उसके कार्य अत्यंत जटिल हैं उनके दो प्रमुख कार्य हैं हानिकारक अपशिष्ट उत्पादों और विषैले कचरे को शरीर से बाहर निकालना और शरीर में पानी, तरल पदार्थ, खनिजों का नियमन करना हैं।
किडनी मुख्य कार्य -
- रक्त को शुद्धिकरण करना
- अपशिष्ट उत्पादों को निकालना
- शरीर में पानी का संतुलन बनाएं रखना
- अम्ल और क्षार का संतुलन करना
- हड्डियों की मजबूती
- रक्तकणों के उत्पादन के सहायता
- रक्त के दबाव पर नियंत्रण
किडनी की रोग -
किडनी के रोगों को मुख्यत दो भागों में बांटा गया हैं:
- मेडिकल रोग (औषधि संबंधी) – किडनी के रोग जैसे किडनी का फेल होने मूत्रमार्ग में संक्रमण, नेफ्रोटिक सिंड्रोम का उपचार किडनी रोग विशेषज्ञ नेफ्रोलॉजिस्ट दवा द्वारा करते हैं। किडनी फेल होने के गंभीर को डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट जैसे इलाज की आवश्यकता पड़ सकती हैं।
- सर्जिकल रोग (ऑपरेशन संबंधी) – इस तरह के किडनी रोगों का उपचार यूरोलॉजिस्ट करते हैं जैसे पथरी रोग, प्रोस्टेट की समस्या और मूत्रमार्ग का कैंसर आदि। इस उपचार में ऑपरेशन, दूरबीन से जांच व लेसर से पथरी को तोड़ना आदि इसमें शामिल हैं।
किडनी रोग के लक्षण –
- हाथ, पैर, टखने और आंखों के नीचे सूजन
- कमजोरी
- थकान
- शरीर में खुजली होना
- बार-बार यूरिन आना
- पैरों की पिंडलियों में खिंचाव आना
- बार-बार उल्टी होना
- शरीर में कमजोरी आना
किडनी आयुर्वेदिक उपचार केंद्र
आयुर्वेदिक किडनी उपचार भारत में सालों से चला आ रहा हैं। इसमें प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करके दवा बनाई जाती हैं। जो 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इस अस्पताल को डॉ. पुनीत धवन चला रहे हैं। कर्मा आयुर्वेदा भारत में सबसे प्रसिद्ध आयुर्वेदिक किडनी उपचार केंद्र हैं वह पूर्ण हर्बल और प्राकृतिक उपचार दवाओं का इस्तेमाल करते हैं जिसमें शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। यह तेजी से वसूली के लिए अपने मरीजों को एक किडनी आहार चार्ट भी प्रदान करते हैं। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करके दवा बनाई जाती हैं जिसमें शामिल है पुनर्नवा, शिरीष, गोखरू, पलाश, कासनी और लाइसोरिस रूट आदि। जो रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करती हैं।
आयुर्वेद क्या है और आयुर्वेद की प्रक्रिया
आयुर्वेद शब्द दो शब्दों आयुष+वेद से मिलकर बना है जिसका अर्थ है। आयुर्वेद केवल रोगों की चिकित्सा तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये जीवन मूल्यों, स्वास्थ्य और जीवन जीने का संपूर्ण ज्ञान प्रदान करता हैं। आयुर्वेद हमारे ऋषि मुनियों की हजारों वर्षो की मेहनत और अनुभव का नतीजा है। आयुर्वेद केवल रोगों की चिकित्सा तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये जीवन मूल्यों, स्वास्थ्य और जीवन जीने का संपूर्ण ज्ञान प्रदान करता हैं। आयुर्वेद के मुताबिक शरीर में मूल तीन तत्व होते हैं वात, पित्त और कफ (त्रिधातु) हैं। अगर इनका संतुलन सही रहे तो कोई भी बीमारी आप तक नही पंहुच सकती हैं। जब इनका संतुलन बिगड़ता है तो बीमारी हावी होने लगती हैं।
एलोपैथिक या होमियोपैथित चिकित्सा में तुरंत आराम तो मिलता हैं, लेकिन ये निश्चित नहीं है कि रोग जड़ से खत्म हो जाएगा, लेकिन आयुर्वेद चिकित्सा रोग के मूल कारण पर केंद्रित हैं इसलिए रोग जड़ से समाप्त हो जाता हैं और उसकी पुन उत्पति नहीं होती हैं। आयुर्वेद में चिकित्सा करते हुए केवल रोग के लक्षणों को ही नहीं देखा जाता बल्कि इसके साथ-साथ रोगी के मन, शारीरिक प्रकृति और अन्य दोषों की प्राकृति को भी ध्यान में रखा जाता हैं। यहीं वजह है कि रोग होने पर अलग-अलग रोगियों की चिकित्सा और औषधियों भी अलग-अलग होती है।
आयुर्वेद के अनुसार कोई भी रोग केवल शारीरिक अथवा केवल मानसिक नहीं हो सकता हैं। शारीरिक रोगों का प्रभाव मन पर पड़ता है औप मानसिक रोगों का प्रभाव शरीर पर पड़ता हैं, इसलिए सभी रोगों को मनो-दैहिक मानते हुए चिकित्सा की जाती हैं। इसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल नहीं किया जाता हैं, इसलिए इन औषधियों को हमारे शरीर पर किसी भी प्रकार का कुप्रभाव नहीं पड़ता हैं। आयुर्वेद में रोग प्रतिरोध क्षमता विकसित करने पर बल दिया जाता हैं, क्योंकि किसी भी प्रकार का रोग न हो। आयुर्वेद और योग से असाध्य रोगों का सफल उपचार किया जाता हैं और वह रोग भी ठीक हो सकता हैं जिनका अन्य चिकित्सा पद्धतियों में कोई उपचार संभव नहीं हैं।