एक किडनी वाले व्यक्ति को किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?

अल्कोहोल और किडनी रोग

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एक किडनी वाले व्यक्ति को किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?

किडनी मानव शरीर का एक अति महत्वपूर्ण अंग है, यह अंग खून साफ करने जैसे कई महत्वपूर्ण कार्यों को करती है। किडनी शरीर से अपशिष्ट उत्पादों, अतिरिक्त क्षार, और अम्ल जैसे रसायनों को शरीर से बाहर निकालने का कार्य करती है।

जब किडनी बीमार हो जाती है उस समय किडनी अपना यह महत्वपूर्ण कार्य करने में असमर्थ हो जाती है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके पास केवल एक ही किडनी होती है। वैसे तो हर किसी व्यक्ति के पास सामान्य तौर पर दो किडनी होती हैं। लेकिन कुछ लोगो के पास केवल एक ही किडनी होती है। जिन लोगो के पास केवल एक ही किडनी होती है उनकी स्वास्थ्य स्थिति काफी जटिल होती है। ऐसे लोगो को अपना खास ध्यान रखना पड़ता है।

एक किडनी किन लोगों की होती है?

कई बार कुछ बच्चे एक किडनी के साथ जन्म लेते हैं। पर सवाल यह उठता है की आखिर एक किडनी किन लोगो की हो सकती हैं? किसी के पास एक किडनी दो सूरतो में ही हो सकती है, पहला जन्म से एक ही किडनी का होना और दूसरा, किसी कारण के चलते एक किडनी को शरीर से अलग किया जाना हो।

जिन बच्चों में जन्म से ही दायीं किडनी तो होती है मगर बायीं किडनी नहीं होती है, ऐसी स्थिति को रेनल एजेंसिस कहा जाता है। हालांकि इस बात का पता तब तक नहीं चलता है जब तक व्यक्ति का एक्स-रे या अल्ट्रासाउंड टेस्ट न किया जाए। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि व्यक्ति के पास दोनों किडनियां तो होती है लेकिन काम केवल एक ही किडनी करती है। जो लोग इस समस्या से जूझ रहे होते हैं उनकी इस स्थिति को रेनल डिस्प्लेसिया कहा जाता है।

जिन लोगो को इस बात की खबर रहती है कि उनके पास एक ही किडनी है उनका जीवन स्तर उन लोगो के मुकाबले काफी अच्छा होता है, जिनकी किसी कारण के चलते एक किडनी अलग की गई हो। क्योंकि उन्हें यह ज्ञात रहता है कि उनके पास एक ही किडनी है और उन्हें इसी किडनी के सहारे से जीवन व्यतीत करना है। किडनी को स्वस्थ रखने के लिए वह लोग अच्छी लाइफस्टाइल का चयन करते हैं।

वहीं दूसरी ओर जिन लोगो के पास दोनों किडनियां होती है वह अपनी लाइफस्टाइल को खराब कर अपनी किडनी को नुकसान पहुंचाते है और समस्या गंभीर होने पर एक किडनी को शरीर से अलग भी करना पड़ता है। मगर यदि बड़े होने के बाद किसी कारणवश व्यक्ति की एक किडनी निकालनी पड़ती है, तो उसे कई चीजों का ख्याल रखना पड़ता है।

जन्म के अलावा एक किडनी की स्थिति कब आ सकती है?

किडनी के कार्य से तो आप सभी वाकिफ है कि यह हमारे शरीर में रक्त शुद्ध कर अपशिष्ट उत्पादों, अतिरिक्त क्षार और अम्ल को पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकाल देती है, जिससे शरीर में संतुलन बना रहता है। लेकिन जब किसी कारण के चलते किसी व्यक्ति की किडनी खराब हो जाती है और वह एलोपैथी उपचार लेना शुरू करता है तो उसको एक समय आने पर अपनी एक किडनी ट्रांसप्लांट (प्रत्यारोपण) यानि बदलवानी पड़ती है। इस स्थिति में दो व्यक्तियों को अपनी एक किडनी निकलवानी पड़ सकती है।

यदि किसी व्यक्ति की एक किडनी खराब हुई है तो चिकित्सक उसकी खराब किडनी को शरीर से बाहर निकाल देते हैं और वह अपना बाकी बचा सारा जीवन एक किडनी के सहारे से व्यतीत करता है। वाही अगर उस व्यक्ति की दोनों किडनियां खराब हो चुकी है तो चिकित्सक बरी-बरी उसकी दोनों किडनियां निकाल कर उसके शरीर में किसी व्यक्ति की किडनी लगा देते हैं।

ऐसे में जो व्यक्ति किडनी रोगी को अपनी एक किडनी देता है तो उसके पास भी एक ही किडनी बचती है। ऐसे में दोनों को ही अपना बाकि का बचा पूरा जीवन एक ही किडनी के भरोसे से जीना पड़ता है।

किडनी ट्रांसप्लांट किन लोगो का किया जाता है?

किडनी ट्रांसप्लांट आम तौर पर उन रोगियों का किया जाता है जो किडनी फेल्योर की जानलेवा बीमारी के अंतिम चरण में होते हैं। किडनी ट्रांसप्लांट का ओपरेशन किडनी डोनर पर निर्भर है। किडनी डोनर या तो एक मृत व्यक्ति होता है या जीवित व्यक्ति होता है।

जब किडनी मृत व्यक्ति से प्राप्त होती है, तो उसे मृत दाता गुर्दा (deceased donor kidney) कहा जाता है और जब यह एक जीवित व्यक्ति से आता है (आमतौर पर यह परिवार के सदस्य से आता है) इसे एक जीवित दाता गुर्दा (living donor kidney) कहा जाता है। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए केवल स्वस्थ व्यक्ति ही अपनी किडनी दान दे सकते हैं, वहीं मृत व्यक्ति की किडनी लेते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि व्यक्ति की मौत किस कारण हुई है। अगर व्यक्ति की मौत मस्तिष्क से जुड़ी किसी समस्या से हुई है तो उस व्यक्ति की किडनी नहीं ली जा सकती।

किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान रोगी को कई दवाओं का सेवन करवाया जाता है, जिससे रोगी का शरीर नई किडनी अपना सकें। इन दवाओं में रोगी को प्रतिरक्षादमनकारी  नामक एक खास दवा दी जाती है। इस दवा से रोगी को कई दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है।

किडनी ट्रांसप्लांट के बाद रोगी को बहुत ही महँगी दवाओं का सेवन सदा के लिए-आजीवन लेनी पडती है। शुरू में दवाइँ की मात्रा (और खर्च भी) ज्यादा लगती है, जो समय के साथ धीरे-धीरे कम होती जाती है। किडनी प्रत्यारोपण करने के बाद मरीजों द्वारा ली जानेवाली दवाईयों में उच्च रक्तचाप की दवा, कैल्शियम, विटामिन्स इत्यादि दवाईयाँ कम या बढ़ाया जा सकती हैं।

जिन लोगो के पास एक किडनी होती है उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

जिन लोगो के पास किसी भी कारण से अगर एक किडनी है तो उनको कई बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे की उन्हें अपने आहार और लाइफ स्टाइल का खास ध्यान रखना चाहिए। ऐसे लोगो को किडनी खराब होने के कारणों पर खास ध्यान रखना चाहिए, उन्हें किडनी खराब होने वाले कारणों को काबू में रखना चाहिए ताकि भविष्य में दोबारा उनकी एक किडनी फिर से खराब ना हो जाए। एक किडनी वाले व्यक्ति को निम्नलिखित बातों का खास ध्यान रखना चाहिए, जोकि किडनी खराब होने के मुख्य कारण है :-

मधुमेह को काबू रखे

मधुमेह किडनी खराब होने का मुख्य कारण माना जाता है। मधुमेह होने पर रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, शर्करा से भरे हुए रक्त को शुद्ध करते समय किडनी के नेफ्रोन पर दबाव पड़ता है। किडनी के नेफ्रोन पर लगातार दबाव पड़ने के कारण किडनी खराब हो जाती है। अगर आपकी एक किडनी है और आप इसके साथ मधुमेह से जूझ रहे हैं तो आपको अपने रक्त शर्करा को काबू में रखना चाहिए।

रक्त शर्करा को नियंत्रण में रखने के लिए आपको जामुन, नींबू, आंवला, टमाटर, पपीता, खरबूजा, कच्चा अमरूद, संतरा, मौसमी, जायफल, नाशपाती जैसे फलों का सेवन करना चाहिए। साथ ही ऐसे किडनी रोगियों को अपने आहार में करेला, मेथी, सहजन, पालक, तुरई, शलजम, बैंगन, परवल, लौकी, मूली, फूलगोभी, ब्रौकोली, टमाटर, पत्तागोभी और दूसरी अन्य पत्तेदार सब्जियों को शामिल करना चाहिए।

दर्दनिवारक दवाओं का सेवन करने से बचे

अधिक मात्रा में दर्द निवारक दवाओं के सेवन से किडनी की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है। जिससे किडनी धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती है। किडनी को नुकसान पहुंचाने वाली दवाओं को नेफ्रोटॉक्सिक (Nephrotoxic) दवाओं के नाम से जाना जाता है।

नेफ्रोटॉक्सिक दवाएं किडनी में रक्त प्रवाह को बाधित करने के साथ-साथ रक्त शुद्ध करने की प्रक्रिया को भी रोकती है। अगर आप पहले से ही किडनी से जुड़ी समस्या से जूझ रहे हैं, तो आपको इबुप्रोफेन जैसे एंटीबायोटिक्स का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह एंटीबायोटिक किडनी को और अधिक नुकसान पहुंचा सकती है। ऐसे में एक किडनी वाले व्यक्ति को इनका सेवन नहीं करना चाहिए।

उच्च रक्तचाप को काबू रखें

उच्च रक्तचाप के पीछे सोडियम यानि नमक होता है, अगर रक्त में सोडियम की मात्रा अधिक हो जाए तो व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की समस्या उत्पन्न होने लगती है। उच्च रक्तचाप के कारण शरीर में रक्त प्रवाह में समस्या होती है, साथ ही अधिक क्षार युक्त रक्त को बार बार शुद्ध करने के कारण किडनी पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किडनी खराब हो जाती है।

बता दें उच्च रक्तचाप के कारण व्यक्ति को दिल से जुडी समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में एक किडनी वाले व्यक्ति को अपना उच्च रक्तचाप काबू में रखना चाहिए।

मूत्र संक्रमण से बचे

मूत्र संक्रमण या यूरिन ट्रैक इन्फेक्शन (UTI) एक गंभीर समस्या है। बड़ों की तुलना में बच्चे इस बीमारी के अधिक शिकार होते हैं। मूत्र संक्रमण के दौरान किडनी पर नकारत्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे किडनी संक्रमण होने का खतरा रहता है। किडनी संक्रमण समय के साथ किडनी फेल्योर जैसी गंभीर बीमारी बन जाता है। यह गंभीर बीमारी विशेषकर 10 से कम वर्ष के बच्चों को होती है।

इस बीमारी की चपेट में सबसे महिलाऐं ज्यादा आती है और बहुत कम पुरुष इस बीमारी की चपेट में आती है। अगर आपके पास एक ही किडनी है तो आपको पेशाब से जुड़ी समस्या होने पर डॉक्टर से जरुर मिलना चहिये।

जिम और खेलने से पहले चिकित्सक से बात करें

आमतौर पर जब हम एक्सरसाइज करते हैं, तो हमारे शरीर में रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है और पसीना भी निकलता है। इन कार्यों की वजह से किडनी का काम बढ़ जाता है। ऐसे में अगर एक किडनी वाले व्यक्ति ज्यादा देर तक व्यायाम करते हैं या खेल खेलते हैं, तो उन्हें कुछ स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए अगर अगर आप जिम जाते हैं या खेल में रूचि रखते हैं, तो आपको अपने डॉक्टर से बात करके उनकी सलाह लेनी चाहिए।

कर्मा आयुर्वेदा भारत का श्रेष्ट किडनी आयुर्वेदिक उपचार केंद्र

कर्मा आयुर्वेदा में केवल आयुर्वेद द्वारा ही किडनी रोगी के रोग का निवारण किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा काफी लंबे समय से किडनी की बीमारी से लोगो को मुक्त करता आ रहा है। कर्मा आयुर्वेदा सिर्फ आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से किडनी फेल्योर का सफल उपचार कर रहा है।

किडनी की बीमारी से जीने की आस छोड़ चुके उन सभी रोगियों को कर्मा आयुर्वेदा ने जीने की नयी आस प्रदान की है जो जीने की आस एक दम छोड़ चुके थे। कर्मा आयुर्वेद में प्राचीन भारतीय आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर का इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेद की स्थापना 1937 में धवन परिवार द्वारा की गयी थी। वर्तमान में इसकी बागडौर डॉ. पुनीत धवन संभाल रहे हैं।

आपको बता दें कि कर्मा आयुर्वेदा में किडनी डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना ही विफल हुई किडनी का सफल इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा पीड़ित को बिना डायलिसिस और किडनी ट्रांस्पलेंट के ही पुनः स्वस्थ करता है। कर्मा आयुर्वेद बीते कई वर्षो से इस क्षेत्र में किडनी पीड़ितों की मदद कर रहा है।

आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता हैं। डॉ. पुनीत धवन ने  केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। साथ ही आपको बता दें कि डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।

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