किडनी की बीमारी और गर्भावस्था की जटिलताएं

अल्कोहोल और किडनी रोग

dr.Puneet
+91
OR CALL
9971829191
किडनी की बीमारी और गर्भावस्था की जटिलताएं

हर महिला के मन में यहीं सवाल आता है कि अगर किसी महिला को किडनी की बीमारी हो, तो क्या वह मां बनने का जोखिम उठा सकती हैं? इसके लिए स्वस्थ गर्भावस्था महिला को जोखिम वाले कुछ कारकों पर नजर रखना जरूरी है। इनमें किडनी की बीमारी किस अवस्था में हैं, आपका सामान्य स्वास्थ्य कैसा है, आपकी आयु कितनी है, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और ह्रदय रोग की स्थिति कैसी है, कोई और गंभीर समस्या तो नहीं है और अंत में आपके यूरिन में प्रोटीन की क्या स्थिति है आदि। इन बातों पर ध्यान दिया जाता है, इसलिए गर्भ धारण करने की योजना बनाने से पहले किडनी के मरीजों को यह सलाह दी जाती है कि वह अपने डॉक्टर से जरूर जांच करवाएं। आज हम गर्भावस्था और किडनी की बीमारी के बारे में जानेंगे।

गर्भावस्था में किडनी की देखरेख की बात करें, तो गर्भावस्था में गर्भाशय के बढ़ने तथा शिशु के विकास के कारण ह्रदय को लगभग 30 से 40% अधिक काम करना पड़ता है। इसी प्रकार किडनी को भी 30 से 40% अधिक मेहनत करनी पड़ती है। गर्भावस्था के समय महिला का वजन 8 से 12 किलोग्राम बढ़ता है, इसलिए इस समय महिला की किडनी में परिवर्तन होता है। तो चलिए जानते हैं गर्भावस्था के समय किडनी में होने वाले परिवर्तन के बारे में।

गर्भावस्था में किडनी की बीमारी के जोखिम –

स्टेज 1 और 2 में किडनी की शुरूआती अवस्था की बीमारी, सामान्य ब्लड प्रेशर और पेशाब में शून्य या बेहद कम मात्रा में प्रोटीन (प्रोटीनुरिया) की स्थिति वाली महिलाओं में सफलापूर्वक गर्भा धारण के अच्छे प्रमाण मौजूद होते हैं। प्रोटीनुरिया किडनी के क्षतिग्रस्त होने के लक्षण है। हमारे शरीर में प्रोटीन की जरूरत होती है, लेकिन यह हमारे रक्त को सही तरह से साफ नहीं कर रही है और इसलिए प्रोटीन रिसकर यूरिन में जा रहा है। साथ ही अगर महिलाओं को स्टेज 3 से 5 तक की किडनी की बीमारी है तो गर्भधारण करने में जोखिम बहुत अधिक बढ़ जाता है। कुछ मामलों में तो, मां और बच्चे के लिए यह जोखिम इतना अधिक होता है कि, महिलाओं को गर्भ धारण करने से परहेज ही करना चाहिए। इसलिए अगर आप मां बनने के बारे में सोच रही हैं तो अपनी बीमारी की गंभीरता और अन्य जटिलताओं के बारे में डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

गर्भावस्था में किडनी में होने वाले बदलाव –

  • गर्भावस्था में किडनी का आकार और वजन बढ़ता है और इसकी लंबाई एक सेंटीमीटर तक बढ़ सकती है।
  • मूत्रवाहिनी के निचले अंग पर गर्भाशय का दबाव पड़ने की वजह से इसका ऊपरी अंग तथा किडनी के मूत्रग्राही भार (Collecting system) में फैलाव आ सकता है।
  • यूरिन में शुगर और एल्ब्युमिन का अत्यधिक क्षय हो सकता है। जिसे ग्लाइकोसुरिया और एल्ब्युमिनुरिया कहा जाता है।
  • महिला के ब्लड प्रेशर में अधिक वृद्धि हो सकती है।

गर्भावस्था में किडनी की बीमारी होने का खतरा –

किडनी की बीमारी से प्रभावित स्त्रियों में गर्भ धारण की संभावना घट जाती है। साथ ही गर्भ धारित होने पर गर्भपात, शिशु के कमजोर होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। किडनी रोग के साथ गर्भ का होना, मां और शिशु दोनों के लिए जोखिम भरी स्थिति है। किडनी रोग के साथ गर्भ ठहरने पर ब्लड प्रेशर बढ़ने तथा यूरिन में एल्ब्यूमिन स्त्राव की शिकायत अधिक होती है।

  • यूरिन इंफेक्शन (यू.टी.आई., यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन) – गर्भावस्था के समय शरीर में होने वाली संरचनात्मक, कार्यिकी और हार्मोन में बदलाव की वजह यूरिन इंफेक्शन अधिक होता है। मूत्राशय और किडनी में जीवाणु इंफेक्शन की वजह से यूरिन में जलन, बार-बार यूरिन के लिए जाना, बदबूदार यूरिन एंव यूरिन में रक्त आने की शिकायत हो सकती है। इन लक्षणों के साथ पेट में और पेडू में दर्द, बुखार और मितली हो सकती है, जो यूरिन इंफेक्शन के गंभीर होने और पाइलोनेफ्राइटिस के द्योतक हैं। गर्भावस्था में किडनी और यूरिन की इस तकलीफ के लिए यूरिन का साधारण एंव कल्चर जांच के अलोक में ऐसी जीवाणुरोधक दवा दी जाती है जो गर्भावस्था के लिए सुरक्षित हो।
  • गर्भावस्था में डायबिटिज की समस्या – गर्भावस्था में किडनी सुचारू रूप से कार्य करें, इसके लिए महिलाओं को डायबिटीज से मुक्त रहना चाहिए। लेकिन लगभग पांच से दस प्रतिशत गर्भ धारण करने वाली स्त्रियों को गर्भ के पांचवे महीने के आस-पास खून में शुगर का स्तर बढ़ने की शिकायत होती है। डायबिटीज की यह स्थिति गर्भ के समय पहली बार दिखती है। इसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं। गर्भावस्था में प्लेसेंटा के द्वारा ऐसे हार्मोन बनाएं जाते हैं, जो इंसुलिन की कार्य क्षमता घटाते है और इंसुलिन प्रतिरोध की स्थिति पैदा करती है। जो महिलाओं को गर्भ पूर्व से डायबिटीज की रोगी होती है। इंसुलिन प्रतिरोध की वजह उनके रक्त शर्करा में भी बढ़ोत्तरी होती है तथा शुगर कंट्रोल करने के लिए दवाओं और इंसुलिन की खुराक बढ़ानी पड़ सकती है। गर्भावस्था में डायबिटीज से बचने के लिए गर्भावस्था के प्रांरभ से ही टहलना, जॉगिंग, योग, हल्के (एरोबिक्स) व्यायाम करना चाहिए। लेकिन हेवी व्यायाम और योग न करें, जिससे पेट पर दबाव पड़ता हो। साथ ही भोजन में दानेदार अनाज, दलिया, चावल, ताजे फल और सब्जियों का सेवन अधिक करें। बाहर के पदार्थ मैदा, चीनी, चॉकलेट, टॉफी आदि इस्तेमाल न करें।
  • गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर – लगभग 5 से 10% गर्भवती महिलाएं हाई ब्लड प्रेशर का शिकार होती हैं। ब्लड प्रेशर से प्रभावित महिला में हो सकता है या पहली बार गर्भावस्था के समय दिख सकता है। इन दोनों स्थितियों में विभेद करना, चिकित्सक के लिए इलाज की दिशा और प्रकार के निर्धारण में मददगार सिद्ध होता है। गर्भावस्था के समय ब्लड प्रेशर अधिक बढ़ जाने पर शरीर में सूजन और यूरिन में एल्ब्यूमिन का अत्यधिक स्त्राव हो सकता है, जिस स्थिति को प्री इक्लैप्सिया कहते हैं। ब्लड प्रेशर का सही समय पर नियंत्रण नहीं करने पर मरीज को मिर्गी समान दौरा आ सकता है। साथ ही गर्भस्थ शिशु के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है और उसकी जान खतरे में जा सकती है। गर्भावस्था के समय उच्च रक्तचाप की इन स्थितियों में किडनी भी सही ढंग से काम नहीं करती है, जिससे गर्भावस्था में किडनी रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। गर्भावस्था में बढ़े रक्तचाप और यूरिन में एल्ब्यूमिन के अत्यधिक स्त्राव को खतरे की घंटी और आपातुस्थिति मान कर विशेषज्ञों की देख-रेख में इलाज कराने पर ही मां और गर्भस्थ शिशु के जीवन की रक्षा की जा सकती है।
  • गर्भावस्था का मूत्रतंत्र पर प्रभाव – गर्भ की वजह से गर्भाशय के आकार में वृद्धि होने की वजह से यूरेटर पर बाहर से दबाव पड़ता है और इसके द्वारा मूत्र-प्रवाह में रूकावट पैदा होती है। जिसके कारण ऊपर कलैक्टिंग सिस्टम फैल हो जाता है। यूरेटर में कुछ फैलाव हार्मोन के असर से भी होता है। इस रूकावट की वजह से जमें हुए यूरिन में इंफेक्शन हो सकता है। जिससे गर्भावस्था में किडनी पर भी विपरीत असर पड़ने का खतरा रहता है।

किडनी की बीमारी –

किडनी की बीमारी के कई शारीरिक लक्षण हैं, लेकिन कभी-कभी लोग उन्हें अन्य स्थितियों के लिए जिम्मेदार मानते हैं। किडनी की बीमारी वाले लोग कई स्टेजों के बाद लक्षणों का अनुभव करते हैं। जब किडनी खराब होने लगती है या यूरिन में अधिक मात्रा में प्रोटीन बनने लगता है। तब यह क्रोनिक किडनी डिजीज के कारण महज कुछ ही लोगों को पता चल पाता है। यह सुनिश्चित करने के लिए, आपको किडनी की बीमारी है या नहीं। यह जानने का एकमात्र तरीका है संकेत, जो किडनी की बीमारी की ओर इशारा करती है। अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह, किडनी फेल्योर का पारिवारिक इतिहास रहा है या 60 वर्ष से अधिक आयु की वजह से किडनी की बीमारी का खतरा हो सकता है। किडनी की बीमारी को जानने के लिए हर साल जांच करवाना महत्वपूर्ण है।

किडनी की बीमारी के लक्षण -

किडनी खराब होने लगी है तो, यूरिन पास करते समय दर्द होता है और रक्त भी आता है। इसके अलावा किडनी रोग में और भी बहुत से लक्षण दिखाई देते हैं जैसे –

  • गर्म मौसम में भी ठंड लगना
  • भूख कम लगना
  • हाथ और पैरों में सूजन आना
  • थकान और कमजोरी आना
  • पेशाब में प्रोटीन अधिक आना
  • पेशाब करते के समय जलन होना
  • हाई ब्लड प्रेशर
  • त्वचा पर चकते पड़ना और खुजली होना
  • मुंह का स्वाद खराब होना और मुंह से बदबू आना

गर्भावस्था में किडनी की बीमारी का आयुर्वेदिक उपचार –

दिल्ली के प्रसिद्ध आयुर्वेदिक उपचार केंद्र में से एक है कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल। यह अस्पताल सन् 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इसका संचालन डॉ. पुनीत धवन कर रहे हैं। यहां आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से किडनी के मरीजों का इलाज किया जाता है। डॉ. पुनीत धवन ने आयुर्वेद की मदद से 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके, उन्हें रोग से मुक्त किया है वो भी डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। कर्मा आयुर्वेदा में आयुर्वेदिक उपचार के साथ आहार चार्ट और योग करने की सलाह दी जाती है जिससे रोगी जल्द स्वस्थ हो सकें।

प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है। आयुर्वेद किडनी की समस्या जिसका लक्ष्य प्राकृतिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्वों में उचिक इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण सामाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है, बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्वों के अनुरूप एक जीवनशैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक संपूर्ण क्रांति है। इस प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में प्राकृतिक भोजन विशेषकर ताजे फल तथा कच्ची व हल्की पक्की सब्जियां विभिन्न बीमारियों के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाती है। प्राकृतिक चिकित्सा निर्धन व्यक्तियों और गरीब देशों के लिए विशेष रूप से वरदान है।

लेख प्रकाशित