किडनी के लिए आयुर्वेदिक दवा

अल्कोहोल और किडनी रोग

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किडनी के लिए आयुर्वेदिक दवा

हर व्यक्ति द्वारा लिए गए आहार के प्रकार और उसकी मात्रा में हर दिन परिवर्तन होता रहता है। आहार की विविधता के कारण शरीर में पानी की मात्रा, अम्लीय और क्षारीय पदार्थों की मात्रा में निरंतर परिवर्तन होता है। आहार के पाचन के समय कई अनावश्यक पदार्थ शरीर में उत्पन्न हो जाते हैं। शरीर में पानी, अम्ल, क्षार तथा अन्य रसायनों और शरीर के अंदर उत्सर्जित होने वाले पदार्थों का संतुलन बिगड़ने या बढ़ने पर वह व्यक्ति के लिए जानलेवा हो सकता है। किडनी शरीर में अनावश्यक द्रव्यों और पदार्थों को यूरिन द्वारा दूर कर रक्त का शुद्धिकरण करती है और शरीर में क्षार और अम्ल का संतुलन कर रक्त में इनकी उचित मात्रा बनाए रखती है। इस तरह किडनी शरीर को स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखती है।

साथ ही किडनी शरीर के अधिक पानी, नमक और क्षार को पेशाब द्वारा दूर करके शरीर में इन पदार्थों का संतुलन बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करती है। किडनी फेल्योर के मरीजों में पानी, नमक, पोटेशियम युक्त आहार और खाद्य पदार्थ आदि अधिक मात्रा में लेने पर भी कई बार गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है। किडनी फेल्योर के केस में किडनी सही से काम नहीं कर पाती, जिससे किडनी पर काफी बोझ पड़ता है। जिसके लिए शरीर में पानी, नमक और क्षारयुक्त पदार्थ की उचित मात्रा बनाए रखने के लिए आहार में जरूरी परिवर्तन करना आवश्यक है। किडनी फेल्योर के सफल उपचार में आहार के इस महत्व को ध्यान में रखना चाहिए।

किडनी का मुख्य कार्य

  • रक्त का शुद्धिकरण करना
  • अपशिष्ट उत्पादों को निकलना
  • शरीर में पानी का संतुलन बनाए रखना
  • अम्ल और क्षार का संतुलन बनाए रखना
  • रक्त के दबाव पर नियंत्रण रखना
  • रक्तकणों के उत्पादन में सहायता करना
  • हड्डियों की मजबूती बनाएं रखना

किडनी की महत्वपूर्ण रंचना

किडनी शरीर के खून साफ करके यूरिन बनाती है। शरीर से यूरिन निकालने का कार्य मूत्रवाहिनी, मूत्राशय और मूत्रनलिका द्वारा होता है।

  • किडनी पेट के अंदर, पीछे के हिस्से में रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ, छाती की पसलियों के बीच सुरक्षित तरीके से स्थिति होती है।
  • किडनी पेट के भीतरी भाग में स्थित होती है, जिससे वह बाहर से स्पर्श करने पर महसूस नहीं होती है।
  • वयस्कों में एक किडनी लगभग 100 सेंटीमीटर लंबी, 6 सेंटीमीटर चौड़ी और 4 सेंटीमीटर मोटी होती है। हर किडनी का वजन लगभग 150-170 ग्राम होती है।
  • किडनी द्वारा बनाए गए यूरिन मूत्राशय तक पहुंचाने वाली नली को मूत्रवाहिनी कहते हैं। यह 25 सेंटीमीटर लंबी होती है और विशेष प्रकार की लचीली मांसपेशियों से बनी होती है।
  • मूत्राशय पेट के निचले हिस्से में सामने की तरफ स्थित एक स्नायु की थैली है, जिसमें यूरिन जमा होता है।
  • महिला और पुरूष दोनों में किडनी की रचना, स्थान और कार्यप्रणाली एक सामान होती है।
  • वयस्क व्यक्ति के मूत्राशय में 400-500 मिलीलीटर यूरिन एकत्रित हो सकता है। जब यूरिन की क्षमता के करीब यूरिन भर जाता है, तब व्यक्ति को यूरिन त्याग करने की तीव्र इच्छा होती है।
  • यूरिन नलिका द्वार शरीर से बाहर आता है। महिलाओं में पुरूषों की तुलना में मूत्रामार्ग छोटा होता है, लेकिन पुरूषों में मार्ग लंबा होता है।

किडनी की बीमारी

किडनी की बीमारी के चलते लाखों लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं, लेकिन अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी तब होती है जब बहुत देर हो चुकी होती है। किडनी की बीमारी के लक्षण उस वक्त उभरकर सामने आते हैं। जब किडनी 60 से 65% डैमेज हो चुकी होती है, इसलिए इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है। किडनी शरीर से विषाक्त पदार्थों को छानकर यूरिन के माध्यम से शरीर से बाहर निकालती है, लेकिन मधुमेह जैसी बीमारियों, खराब जीवनशैली और कुछ दवाओं की वजह से किडनी के ऊपर बुरा प्रभाव पड़ता है।

साथ ही मधुमेह और उच्च रक्तचाप किडनी फेल होने के सबसे बड़े कारण है। मधुमेह के 30 से 40% मरीजों की किडनी खराब होती है। इनमें से 50% रोगी ऐसे होते हैं, जिन्हें बहुत देर से इस बीमारी का पता चलता है और फिर उन्हें डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है।

किडनी की बीमारी के लक्षण

  • हाथ, पैर और आंखों के नीचे सूजन
  • कमजोरी महसूस होना
  • थकावट
  • बार-बार यूरिन आना
  • भूख न लगना या कम लगना
  • बार-बार उल्टी आना व उबकाई आना
  • मांसपेशियों में ऐंठन
  • यूरिन पास करते वक्त जलन या दर्द होना

किडनी की बीमारी में करें बचाव

  • हाई ब्लड प्रेशर और शुगर पर कंट्रोल करना बहुत जरूरी है।
  • हर 3 से 6 महीने में यूरिन टेस्ट करवाएं।

किडनी के लिए आयुर्वेदिक दवा

आयुर्वेद लगभग 5 हजार वर्ष पहले भारत में शुरू हुआ था, जो कि काफी लंबे समय का विज्ञान है और दुनिया में स्वास्थ्य की देखभाल की सबसे पुरानी प्रणाली है जिसमें औषधि और दर्शन शास्त्र दोनों के गंभीर विचार शामिल है। आयुर्वेद ने दुनिया भर की मानव जाति का संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक विकास किया जाता है। यह चिकित्सा की अनुपम और अभिन्न शाखा है। साथ ही यह प्रणाली आपके शरीर का सही संतुलन प्राप्त के लिए वात, पित्त और कफ का नियंत्रित करने पर निर्भर करती है।

आपको बता दें कि, आयुर्वेद आज भी इसके इस्तेमाल से कई गंभीर बीमारियों का इलाज किया जाता है। यह बात सबने सुना होगा कि, आयुर्वेद के जरिए किसी भी बीमारी का इलाज निश्चित है उसी प्रकार कर्मा आयुर्वेदा की मदद से किसी भी प्रकार की किडनी की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। यहां आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाली जड़ी-बूटियों की मदद से किडनी से जुडी समस्या का इलाज करते हैं। इनकी औषधि में शामिल है यह जड़ी-बूटियां जैसे –

  • कासनी - कासनी एक बारहमासी पौधा है, जिसका वैज्ञानिक नाम सिकोरियम इंटीबस है। भारत में यह औषधि चिकोरी के नाम से जानी जाती है। इसके इस्तेमाल से कई तरह की बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है जैसे कि, कैंसर की बीमारी को रोकने में मदद करना, किडनी खराब होने के कारण पैरों में आनी वाली सूजन, मोटापा कम करने में सहयोग देना, दिल के रोगियों के लिए भी फायदेमंद साबित हुई है।
  • हल्दी - लो यूरिन वॉल्यूम, रीनल फेल्योर और कुछ सामान्य इंफेक्शन के इलाज में हल्दी का इस्तेमाल होता है। इसके कई फायदे हैं जैसे, इंफेक्शन के खतरे को घटाता है, सूजन कम करता है, किडनी की पथरी बनने से बचाव करता है और हल्की किडनी सिस्ट को भी ठीक करता है।
  • चंद्रप्रभा वटी - व्यक्ति को किडनी की समस्या होने पर उसका खून साफ नहीं हो पाता जिसके कारण आपके शरीर में विषैले पदार्थ बढ़ जाते हैं। चंद्रप्रभा वटी के सेवन से विषैले पदार्थ बाहर निकलने लगते हैं और किडनी स्वस्थ होने लगती है। इसका नियमित रूप से इस्तेमाल करने से व्यक्ति के शरीर से दूषित पदार्थ धीरे-धीरे खत्म होने लगते हैं और रक्त साफ हो जाता है।
  • गोखरू - गोखरू के वृक्ष की छाल यूटीआई (यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन) के इलाज, पेशाब के समय होने वाली जलन के लिए अद्भूत जड़ी-बूटी है। यह बार-बार यूरिन होने की इच्छा के समय गोखरू की छाल ठीक तरीके से फ्लो को नियंत्रित करती है। किडनी स्टोन को खत्म करने के लिए गोखरू का इस्तेमाल सदियों से होता आ रहा है।
  • अदरक - शरीर से अपशिष्ट उत्पादों को बाहर निकालने के लिए अदरक का सालों से इस्तेमाल होता आ रहा है। यह किडनी और लिवर से टॉक्सिन्स हटाता है। अदरक एंटी-इंफ्लेमेटरी असर इंफेक्शन की वजह हुए किडनी में सूजन और दर्द को कम करने में मदद करता है।
  • गोरखमुंडी - अगर किसी को किडनी का इन्फेक्शन है तो पेशाब के लिए बार जाना पड़ता है, पेशाब पास करते समय जलन या खून आ सकता है। इसके लिए यह जड़ी-बूटी बहुत लाभदायक साबित हुई है।
  • त्रिफला - तीन कार्याकल्प कर देने वाली जड़ी-बूटियों से तैयार त्रिफला किडनी के सभी फंक्शन के सुधार में मददगार है। त्रिफला उत्सर्जन तंत्र के दो प्रमुख अंग लिवर और किडनी को मजबूत बनाता है।
  • वरुण - यह प्राकृतिक रूप से किडनी के स्टोन की समस्या को ठीक करता है साथ ही अन्य किडनी से जुडी बीमारियों को ठीक करने में मददगार है। यह खून को साफ करता है और यूरिन फंक्शन को मजबूत करता है।
  • पलाश - पलाश एक पेड़ है, जिस पर लाल या नारंगी रंग के फूल होते हैं। यह फूल ठंडक देने वाले होते हैं और यूरिन के फ्लो को नियमित करने में मदद करते हैं। साथ ही यूरिन पास करने के दौरान होने वाली जलन से भी आराम देने में मददगार हैं।
  • पुनर्नवा - इसका वैज्ञानिक नाम बोअरहेविया डिफ्यूजा है। यह सभी जानते हैं कि किडनी शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है और पुनर्नवा ही ऐसी जड़ी-बूटी हैं, जो किडनी की सफाई का कार्य करती है।
  • गुदुची - गुदुची के एस्ट्रिन्जेंट गुण के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके कारण यूरिनरी दिक्कतों के इलाज के लिए यह एक बेहतरीन जड़ी-बूटी है। जिन लोगों को यूरिन पास करने में मुश्किल होती है, वो डॉक्टर की सलाह से गुदुची ले सकते हैं।

इन जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल खुद से इलाज के तौर पर न करें। किडनी से जुड़ी दिक्कतों के इलाज के लिए कर्मा आयुर्वेदा में डॉक्टर पुनीत धवन से संपर्क जरूर करें।

कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल भारत का प्रसिद्ध आयुर्वेदिक किडनी उपचार केंद्र है। जहां किडनी की बीमारियों का आयुर्वेदिक इलाज किया जाता है। यह सन् 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इसका नेतृत्व डॉ. पुनीत धवन कर रहे हैं। कर्मा आयुर्वेदा में सिर्फ आयुर्वेदिक उपचार पर भरोसा किया जाता है। साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने सफलतापूर्वक और आयुर्वेदिक उपचार की मदद से 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके उन्हें रोग मुक्त किया है, वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। आयुर्वेदिक उपचार में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे पुनर्नवा, शिरीष, पलाश, कासनी, लाइसोरिस रूट और गोखरू आदि। यह जड़ी-बूटियां रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करती हैं।

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