कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल दुनिया भर में बेस्ट किडनी उपचार केंद्र हैं। जो भारत में 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और इसके नेतृत्व में डॉ. पुनीत धवन है। जो हर साल हजारो किडनी रोगियों का आयुर्वेदिक इलाज करते हैं। डॉ. पुनीत सिर्फ आयुर्वेदिक किडनी उपचार पर भरोसा करते है और सिर्फ आयुर्वेदिक दवाओं से ही रोगियों को ठीक करते हैं।
किडनी फेल्योर
किडनी हमारे शरीर में संतुलन बनाए रखने का कार्य करती है। वह अपशिष्ट पदार्थों को फिल्टर करके पेशाब से बाहर निकालती है और निष्कासन करती है। साथ ही शरीर में पानी की मात्रा, सोडियम, पोटेशियम और कैल्शियम की मात्रा को संतुलित करते हैं। वह अतिरिक्त अम्ल और क्षार निकालने में मदद करते हैं जिससे शरीर में एसिड और क्षार का संतुलन बना रहता है। शरीर में किडनी का मुख्य कार्य रक्त का शुद्धिकरण करना है। जब बीमारी के कारण दोनों किडनी अपना सामान्य कार्य नहीं कर सके तो किडनी की कार्यक्षमता कम हो जाती है और इसी को किडनी फेल्योर कहते हैं।
किडनी फेल्योर के लक्षण
- थकान और कमजोरी
- पेशाब कम आना
- छोटी सांसे आना
- उच्च रक्तचाप
- तंद्रा
- छाती में दर्द होना
- पेशाब करते समय दर्द या जलन होना
किडनी फेल्योर का निदान
रक्त में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा की जांच से किडनी की कार्यक्षमता की जानकारी मिलती है, क्योंकि किडनी की कार्यक्षमता शरीर की आवश्यकता से अधिक होती है। इसलिए अगर किडनी की बीमारी से थोड़ा नुकसान हो भी जाए तो रक्त से अधिक खराब हो गई। रक्त में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा सामान्य से अधिक पाई जाती है।
किडनी खराब होने से किडनी फेल्योर हो सकता है?
अगर किसी व्यक्ति की दोनों स्वास्थ किडनी में से एक किडनी खराब हो गई हो या उसे शरीर से किसी कारणवश निकाल दिया गया हो तो भी दूसरी किडनी अपनी कार्यक्षमता को बढ़ाने हुए शरीर का कार्य पूर्ण रूप से कर सकती है।
आयुर्वेदिक किडनी उपचार
आयुर्वेद लगभग 5 हजार वर्ष पहले से भारत की पवित्र भूमि में शुरू हुआ था आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति लंबे जीवन का विज्ञान है और दुनिया में स्वास्थ्थ की देखभाल की सबसे पुरानी प्रणाली है जिसमें औषधि और दर्शन शास्त्र दोनों के गंभीर विचारों शामिल है। आयुर्वेद प्राचीन काल से दुनिया भर की मानव जाति के संपूर्ण शारीरिक, मानसिक, और अध्यात्मिक विकास किया है। ये चिकित्सा आज अनुपम और अभिन्न शाखा है एक संपूर्ण प्राकृतिक प्रणाली है जो आपको शरीर का सही संतुलन प्राप्त करने के लिए वात, पित्त और कफ को सिमित रखते हैं।