क्या आप किडनी की बीमारी को बढ़ने से रोक सकते हैं?

अल्कोहोल और किडनी रोग

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क्या आप किडनी की बीमारी को बढ़ने से रोक सकते हैं?

किडनी मानव शरीर का एक अति महत्वपूर्ण अंग है, यह अंग रक्त शोधन जैसे कई महत्वपूर्ण कार्यों को करता है। किडनी शरीर से अपशिष्ट उत्पादों, अतिरिक्त क्षार, और अम्ल जैसे रसायनों को शरीर से बाहर निकालने का कार्य करती है। किडनी के इस कार्य से शरीर का उचित विकास बिना किसी रूकावट के साथ होता है, अगर किडनी अपना यह कार्य ठीक से ना करे तो व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जब किडनी बीमार हो जाती है उस समय किडनी अपना यह महत्वपूर्ण कार्य करने में असमर्थ हो जाती है। अक्सर जब तक इस बारे में व्यक्ति को पता चलता है कि उसकी किडनी खराब हो चुकी है टीवी तक काफी देर हो चुकी होती है। इस स्थिति को क्रोनिक किडनी डिजीज के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें की क्रोनिक किडनी डिजीज के अलावा किडनी से जुड़ी और भी कई जानलेवा बीमारियाँ होती है।

क्या क्रोनिक किडनी डिजीज के अलावा भी किडनी से जुड़ी बीमारियाँ होती हैं?

क्रोनिक किडनी डिजीज या किडनी फेल्योर किडनी की सबसे गंभीर बीमारी है। इस किडनी की बीमारी से तकरीबन सभी लोग वाकिफ है। किडनी की इस बीमारी में रोगी की किडनी बहुत धीमे-धीमे खराब होती है। जिसमे महीनों से लेकर सालों तक का समय लग सकता है, इसी कारण सीकेडी को पकड़ पाना बहुत मुश्किल होता है, इस बीमारी को साइलेंट किलर भी कहा जाता है। क्रोनिक किडनी डिजीज के अलावा व्यक्ति को किडनी से जुड़ी पांच प्रकार की बीमारियाँ होने की आशंका रहती है। किडनी को कुल छः प्रकार की बीमारियाँ हो सकती है।  किडनी से जुड़ी चार बीमारियाँ सबसे ज्यादा गंभीर होती है, जिसमे क्रोनिक किडनी भी सम्मिलित है।

किडनी से जुड़ी गंभीर बीमारी निम्नलिखित है

एक्यूट किडनी डिजीज AKD

अगर किडनी अचानक काम करना बंद कर दें या किडनी की कार्यक्षमता में अचानक कमी आ जाए तो उस स्थिति को एक्यूट किडनी डिजीज (AKD) कहा जाता है। AKD से पीड़ित रोगियों की पेशाब की मात्रा में काफी कमी आ जाती है। एक्यूट किडनी डिजीज होने के मुख्य कारण सेपसिस का होना होता है। यह बीमारी दवाओं का अधिक मात्रा में सेवन, खून के दबाव में अचानक कमी आना, मलेरिया और खराब पाचन तंत्र के कारण होती है। किसी दुर्घटना के कारण से खराब हुई किडनी को भी एक्यूट किडनी डिजीज कहा जाता है। उचित उपचार के माध्यम से इस गंभीर बीमारी से निदान पाया जा सकता है।

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम डिजीज NSD

NSD यानि नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम डिजीज एक प्रकार का किडनी रोग है। बड़ों की तुलना में यह बच्चों में अधिक पाया जाता है। इस बीमारी में शरीर के कई हिस्सों में बार-बार सूजन देखी जाती है। सूजन आने-जाने का यह चक्र सालों तक चल सकता है। इसके अलावा नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम डिजीज होने के पीछे पेशाब में प्रोटीन की वृधि, रक्त में प्रोटीन की कमी और कोलेस्ट्रोल का बढ़ना होता है।

पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज PKD

पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज एक वंशानुगत किडनी रोग है, जिसे पीकेडी भी कहा जाता है। क्रोनिक किडनी रोग की तरह पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज भी एक जानलेवा बीमारी है। इस रोग में किडनी के ऊपर असंख्य पानी के बुलबुले बन जाते है। इन पानी के बुलबुलों को वैज्ञानिक भाषा में सिस्ट कहा जाता है। पोलिसिस्टिक किडनी रोग दो प्रकार का होता है, एक - ऑटोजोमल डोमिनेन्ट और ऑटोजोमल डोमिनेन्ट वंशानुगत रोग है। पोलिसिस्टिक किडनी रोग अधिकतर वयस्कों में पाया जाता है। इस रोग में मरीज के बाद उसकी संतान को किडनी रोग होने की 50% तक की आशंका रहती है। पीकेडी के मरीज के भाई – बहन और उसकी संतानों की अपनी जांच जरुर करवानी चाहिए। ताकि समय रहते इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकें।

आयुर्वेद और संतुलित आहार से किडनी की बीमारी को रोक सकते हैं

आपने ऊपर किडनी की कुछ बीमारियों के बारे में जाना। किडनी से जुड़ी हर बीमारी एक गंभीर और गंभीर स्थिति होती है। किडनी की किसी भी बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए आप आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन कर सकते हैं साथ ही आप आहार में कुछ बदलाव करके भी इस गंभीर समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।

आप आहार से जुड़ी निम्नलिखित बातों का ध्यान जरुर रखें 

मधुमेह किडनी खराब होने का मुख्य कारण माना जाता है। मधुमेह होने पर रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, शर्करा से भरे हुए रक्त को शुद्ध करते समय किडनी के नेफ्रोन पर दबाव पड़ता है। किडनी के नेफ्रोन पर लगातार दबाव पड़ने के कारण किडनी खराब हो जाती है। अगर किडनी रोगी मधुमेह की समस्या से जूझ रहे हैं, तो उन्हें रक्त शर्करा को काबू में रखना चाहिए। रक्त शर्करा को नियंत्रण में रखने के लिए आपको जामुन, नींबू, आंवला, टमाटर, पपीता, खरबूजा, कच्चा अमरूद, संतरा, मौसमी, जायफल, नाशपाती जैसे फलों का सेवन करना चाहिए। साथ ही ऐसे किडनी रोगियों को अपने आहार में करेला, मेथी, सहजन, पालक, तुरई, शलजम, बैंगन, परवल, लौकी, मूली, फूलगोभी, ब्रौकोली, टमाटर, पत्तागोभी और दूसरी अन्य पत्तेदार सब्जियों को शामिल करना चाहिए।

किडनी खराब होने के पीछे उच्च रक्तचाप सबसे बड़ा कारण माना जाता है। रक्त में सोडियम की मात्रा अधिक हो जाने पर व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की समस्या उत्पन्न होने लगती है। उच्च रक्तचाप के कारण शरीर में रक्त प्रवाह में समस्या होती है। रक्त में सोडियम की अधिक मात्रा होने के कारण किडनी को रक्त शुद्ध करने के दौरान फिल्टर्स पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और किडनी खराब हो जाती है। बता दें उच्च रक्तचाप के कारण व्यक्ति को दिल से जुडी समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझने वाले व्यक्तियों को अपने आहार में बैंगन, नारियल पानी, मशरूम, ओट्स, दही जैसी चीजों को अपने आहार में शामिल करना चाहिए। साथ ही रोगी को नमक का सेवन ना के बराबर ही करना चाहिए, आप साधारण नमक की जगह सेंधा नमक को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं।

अगर आप चाय या कॉफी के अधिक शोकिन है तो आपको इसका अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। आप इसके विकल्प में ग्रीन टी का सेवन कर सकते हैं। कैफीन का सेवन अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए, यह चाय या कॉफी में उपलब्ध है जो आपकी किडनी को तनाव दे सकती है। ग्रीन टी किडनी को डिटॉक्स करती है, इसलिए वे शरीर से कचरे को छानने और बाहर निकालने के लिए अच्छी तरह से काम कर सकती हैं। ग्रीन टी पचान तन्त्र को सुधारने में भी मदद करती है।

किडनी की समस्याओं से बचने के लिए व्यक्ति को अपने आहार में से पोटेशियम युक्तर खाद्य पदार्थों की कटौती करनी चाहिए। पोटेशियम की मात्रा को कम करने के लिए कम मात्रा में फलों और सब्जियों का उपभोग करना चाहिए। पोटेशियम उच्च रक्तचाप की समस्या से निदान पाने के लिए जरुरी होता है, लेकिन इसकी अधिक मात्रा किडनी पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। शरीर में पोटेशियम की मात्रा कम करने के लिए आप संतरा, पालक, अनार, केला, अंगूर, टमाटर, केला आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

उच्च प्रोटीन युक्त आहार का सेवन नहीं करना चाहिए। उच्च प्रोटीन किडनी की विफलता का कारण बन सकता है। इसी कारण आपको उच्च प्रोटीन वाले आहार का सेवन नहीं करना चाहिए। दूध, पनीर, दही, मीट में अधिक प्रोटीन होता है। प्रोटीन बार का सेवन नहीं करना चाहिए। सामान्यतः 0।8 से 1।0 ग्राम/ किलोग्राम प्रतिदिन शरीर के वजन के बराबर प्रोटीन लेने की सलाह दी जाती है। आमतौर पर प्रोटीन बार में एक चॉकलेट ब्राउनी के रूप में दोगुनी मात्रा में फैट और कॉर्बोहाइड्रेट पाया जाता है, जोकि नुकसानदायक होता है।

आयुर्वेदिक उपचार शुरू करे 

आयुर्वेद द्वारा विफल हुई किडनी को स्वस्थ किया जा सकता है। एलोपैथी उपचार के मुकाबले आयुर्वेदिक उपचार से किसी भी प्रकार के रोग को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है, बशर्ते कि रोगी औषधियों के साथ-साथ परहेज का सही से पालन करें। आयुर्वेदिक औषधियों भले ही रोग को खत्म करने में समय लगाए लेकिन वह रोग को जड़ से खत्म करता है, साथ ही उसके भविष्य में होने की संभावनाओं को भी नष्ट करता है। आयुर्वेदिक उपचार द्वारा विफल हुई किडनी को स्वस्थ करते समय डायलिसिस जैसे जटिल उपचार का सहारा नहीं लिया जाता। डायलिसिस रक्त शोधन की एक कृत्रिम क्रिया है, इसे एलोपैथी उपचार के दौरान प्रयोग किया जाता है। जबकि आयुर्वेदिक उपचार में कुछ खास जडी-बुटीयों का प्रयोग कर किडनी को स्वस्थ किया जाता है, जिनमे से दो निम्नलिखित है -

  • गोखरू किडनी को स्वस्थ रखने के लिए सबसे उत्तम आयुर्वेदिक औषधि है। यह औषधि ना केवल किडनी के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह और भी कई बीमारियों में लाभकारी है। गोखरू की तासीर बहुत गर्म होती है, इसलिए इसका प्रयोग सर्दियों में करने की सलाह दी जाती है। गोखरू के पत्ते, फल और इसका तना तीनों रूपो में उपयोग किया जाता है, इसके फल पर कांटे लगे होते हैं। किडनी के लिए गोखरू किसी वरदान से कम नहीं है।
  • किडनी रोगी के लिए वरुण वृक्ष काफी लाभकारी होता है। इसके सेवन से हमें किडनी से जुड़ी कई बीमारी से छुटकारा तो मिलता ही है, साथ ही भविष्य में किडनी संबंधित रोग होने के संभावना एक दम खत्म हो जाती है। यह पथरी, मधुमेह, और रक्त विकार जैसी बीमारियों से बचा कर रखता है।

कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार

कर्मा आयुर्वेदा में केवल आयुर्वेद द्वारा ही किडनी रोगी के रोग का निवारण किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा काफी लंबे समय से किडनी की बीमारी से लोगो को मुक्त करता आ रहा है। कर्मा आयुर्वेदा सिर्फ आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से किडनी फेल्योर का सफल उपचार कर रहा है। किडनी की बीमारी से जीने की आस छोड़ चुके उन सभी रोगियों को कर्मा आयुर्वेदा ने जीने की नयी आस प्रदान की है जो जीने की आस एक दम छोड़ चुके थे। कर्मा आयुर्वेद में प्राचीन भारतीय आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर का इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेद की स्थापना 1937 में धवन परिवार द्वारा की गयी थी। वर्तमान में इसकी बागडौर डॉ. पुनीत धवन संभाल रहे हैं।

आपको बता दें कि कर्मा आयुर्वेदा में डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना ही विफल हुई किडनी का सफल इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा पीड़ित को बिना डायलिसिस और किडनी ट्रांस्पलेंट के ही पुनः स्वस्थ करता है। कर्मा आयुर्वेद बीते कई वर्षो से इस क्षेत्र में किडनी पीड़ितों की मदद कर रहा है।  आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता हैं। डॉ. पुनीत धवन ने  केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। साथ ही आपको बता दें कि डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।

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