किडनी हमारे शरीर का एक अभिन्न अंग है, यह हमारे शरीर को विकसित करने में काफी सहायता प्रदान करती है। किडनी के कार्यों की बात करे तो यह हमारे शरीर में रसायनो का संतुलन बनाएं रखने का जरुरी काम करती है। किडनी शरीर में रसायनो संतुलन बनाने के लिए रक्त को शुद्ध करते समय रक्त से अपशिष्ट उत्पादों, क्षार (salt), अम्ल (acid), पोटेशियम, जैसे कई रसायनों को पेशाब के साथ शरीर से बाहर निकाल देती है।
किडनी अतिरिक्त क्षार, अम्ल और पोटेशियम को ही शरीर से बाहर निकालने का काम करती है। लेकिन हमरी कुछ बुरी आदतों के चलते किडनी बीमार हो जाती है, जिसके कारण वह अपने इस जरुरी काम को करने में असमर्थ हो जाती है। किडनी से जुड़ी कई बीमारियाँ हैं, जिनमे से पॉलीसिस्टिक किडनी रोग भी एक है। किडनी से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है, जिससे बचना काफी मुश्किल माना जाता है।
क्या है पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज?
पॉलीसिस्टिक किडनी रोग बाकी किडनी रोगों भिन्न है। बाकि किडनी रोग हमारी बिगड़ती लाइफस्टाइल और अन्य स्वस्थ कारणों के चलते होती है, लेकिन पॉलीसिस्टिक किडनी रोग हमारे पूर्वजों के कारण होता है। किडनी से जुड़ी यह बीमारी एक वंशानुगत रोग है, जो हमें अपने पूर्वजों से हमारे जिन में अपने आप आ जाती है या कह सकते हैं कि यह हमें विरासत में मिलती है।
क्रोनिक किडनी रोग के मुकालबे किडनी का यह अधिक फैलता है, साथ ही अगर इस रोग में अगर रोगी को उचित ऊपर ना मिले तो रोगी की किडनी फेल भी हो सकती है। पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज एक प्रकार का ऑटोसोमल डोमिनेन्ट वंशानुगत रोग है, यह अधिकतर वयस्कों में पाया जाता है। इस रोग में मरीज के बाद उसकी संतान को किडनी रोग होने की 50% तक की आशंका रहती है। पीकेडी के मरीज के भाई – बहन और उसकी संतानों की अपनी जांच जरुर करवानी चाहिए। समय रहते जांच करवा कर आप इस गंभीर और जानलेवा बीमारी से बच सकते है।
पॉलीसिस्टिक किडनी रोग में व्यक्ति की दोनों किडनियों पर तरल से भरे हुए बुलबुले बन जाते है, जिसे सिस्ट कहा जाता है। किडनी पर बने सिस्ट काफी मात्रा में होते हैं, जिन्हें गिना नहीं जा सकता। कुछ सिस्ट आकर एक दुसरे से अलग होते है कुछ छोटे तो कुछ बड़े, वहीं कुछ सिस्टों को आँखों से सीधा देखना तक भी संभव नहीं होता। यह सिस्ट लगातार बड़े होते रहते हैं।
पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज का यह जीन संतान को उसके बचपन से ही मिल जाता है, जिसके कारण इस रोग से बचाना बहुत मुश्किल होता है। हाँ, कुछेक केसों में देखा गया हैं कि यह रोग वंशानुगत नहीं होता, जिसे गैर वंशानुगत पॉलीसिस्टिक किडनी रोग कहा जाता है। किडनी की यह गंभीर बीमारी भले ही रोगी में बचपन से होती है लेकिन यह रोग 35 वर्ष की उम्र के बाद अपना सर उठाना शुरू करती है।
40 की उम्र के करीब आते – आते किडनी की यह गंभीर बीमरी अपना विकराल रूप धारण कर चुकी होती है। इस समय रोगी को डायलिसिस की आवश्यकता पड़नी शुरू हो जाती है। डायलिसिस से किसी भी प्रकार के किडनी को ठीक नहीं किया जा सकता। हाँ, डायलिसिस की मदद से रोगी को कुछ समय के लिए इस पीड़ा से राहत जरुर दिलाई जा सकती है। अगर रोगी को समय रहते उपचार ना दिलवाया जाए तो उसकी मौत तक भी हो सकती हैं।
गैर वंशानुगत पॉलीसिस्टिक किडनी रोग क्या है?
वंशानुगत पॉलीसिस्टिक किडनी रोग के सामान यह भी एक पॉलीसिस्टिक किडनी रोग है, बस गैर वंशानुगत पॉलीसिस्टिक किडनी रोग व्यक्ति को अपने पूर्वजों से विरासत में नहीं मिलता। व्यक्ति को यह किडनी रोग कुछ स्वस्थ कारणों के चलते हो जाता है।
वंशानुगत पॉलीसिस्टिक किडनी रोग में किडनी बने सिस्ट आकर में बड़े होते है और छोटे सिस्ट लगातार बड़े होते रहते हैं, जबकि गैर पॉलीसिस्टिक किडनी रोग में बने सिस्ट आकर में छोटे ही रहते हैं। जिसके कारण किडनी पर इसका ज्यादा नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। हां, अगर इसका उचित उपचार ना लिए जाए तो रोगी को कई स्वस्थ समस्यों का सामना करना पड़ता है।
गैर वंशानुगत पॉलीसिस्टिक किडनी रोग किसे होता है?
वैसे तो यह रोग किसी भी व्यक्ति को हो सकता है लेकिन जो लोग पहले से किसी अन्य किडनी रोग से पीड़ित है उन्हें इस रोग के होने का खतरा अधिक होता है, जो निम्नलिखित है –
गैर वंशानुगत पॉलीसिस्टिक किडनी रोग वैसे तो किसी भी व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन जो लोग पहले से ही किडनी से जुड़ी किसी बीमारी से जूझ रहें हो उनको यह रोग होने का ज्यादा खतरा रहता है। निम्नलिखित कारणों के चलते गैर पॉलीसिस्टिक किडनी रोग हो सकता है -
- जो लोग क्रोनिक किडनी रोग से जूझ रहे हैं।
- जिन लोगो की किडनी खराब हो चुकी हो, जिसे एंड-स्टेज रीनल डिजीज (ESRD) के रूप में भी जाना जाता है।
- जो लोग काफी लम्बे समय से डायलिसिस से जूझ रहें हो, उन्हें भी इस बीमारी का खतरा रहता है।
- जो लोग हाइपोकैलिमिया से जूझ रहें हो। इसके कारण किडनी को गहरी चोट पहुचने का खतरा रहता है और कुछ चयापचय की स्थिति भी बिगड़ जाती है।
- अगर कोई व्यक्ति काफी लम्बे समय किडनी संक्रमण से जूझ रहा हो, उसे यह रोग होने का खतरा रहता है।
लगभग हर मामले में, यह स्वास्थ्य स्थिति लक्षणों को दिखाती है जब किडनी केवल अपने समग्र कार्यों का 10-20 प्रतिशत प्रदर्शन करने में सक्षम होते हैं। यही कारण है कि हम हर व्यक्ति को समय पर स्वास्थ्य जांच कराने और ऐसे सामान्य स्वास्थ्य विकारों से अवगत रहने की सलाह देते हैं।
पॉलीसिस्टिक किडनी रोग होने से किडनी पर क्या-क्या दुष्प्रभाव पड़ते हैं?
किडनी पर हुए इन सिस्टों का आकर लगातर बढ़ने के कारण व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो निम्नलिखित है -
- जिन किडनी सिस्ट को नंगी आँखों से नहीं देखा जाता वह किडनी को अंदरूनी रूप से ज्यादा नुकसान दे सकते हैं। जैसे किडनी फिल्टर्स को खराब करना।
- छोटे सिस्ट समय के साथ बड़े हो जाते हैं और बड़े सिस्ट भी समय के साथी बढ़ते रहते हैं। जिसके कारण किडनी का आकर भी बड़ा हो जाता है। इससे किडनी में सूजन भी आ जाती है।
- सिस्ट की मात्रा और आकार लगातार बढ़ने से किडनी पर दबाव बढ़ता है। दबाव बढ़ने से किडनी की कार्यक्षमता कम होती जाती है और इसके अलावा रोगी का रक्तचाप भी बढ़ जाता है।
- अगर यह बीमारी कई सालो तक रह जाने के कारण तो यह बीमारी क्रोनिक किडनी डिजीज में परिवर्तित हो सकती है। किडनी फेल्योर हो जाने के कारण रोगी की हालत और भी खराब हो जाती है। जिसके कारण रोगी को डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट की जरुरत पड़ जाती है।
- महिला को गर्भधारण करने में, गर्भावस्था और प्रसव के दौरान परेशनी आ सकती है।
- पेट में असहनीय और अस्पष्ट दर्द होता है।
- मूत्र संक्रमण की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज के लक्षण
किडनी पर सिस्ट होने के लक्षण 30 से 40 की उम्र के बाद ही दिखाई देते है। इस पहले बहुत ही कम लोगो में इस बीमारी के लक्षण दिखाई देते है। किडनी पर सिस्ट होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते है –
- पेट में तेज़ दर्द होनापेट में गांठ होना
- पेट के आकार में वृधि
- पेशाब के जरिये खून आना
- किडनी में बार बार पथरी होना
- थोड़े समय के अन्तराल के बाद मूत्र संक्रमण होते रहना
- बीमारी अधिक फैलने पर किडनी का कैंसर होना
- खून का दबाव बढ़ना
- रक्तचाप में वृधि
- उल्टी होना
- जी मचलना
- खुजली होना
- थकान, कमजोरी
- भूख की कमी
- लगातार पेशाब आना
पॉलीसिस्टिक किडनी रोग का आयुर्वेदिक उपचार
कुछ लोगो का मानना है कि आयुर्वेद द्वारा इस किडनी रोग से निजात पाना संभव नहीं है। लेकिन हम आपको बता दें कि इस समय आयुर्वेदिक उपचार की सहायता से पॉलीसिस्टिक किडनी रोग से निजात पाया जा सकता है। अगर आप पॉलीसिस्टिक किडनी रोग से जूझ रहे हैं तो आपको एलोपैथी उपचार की बजाय आयुर्वेदिक उपचार ही लेना चाहिए। इस बाज़ार में बहुत सी आयुर्वेदिक औषधि मौजूद है,
लेकिन आपको बिना चिकित्सक की सलाह के दवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करना जानलेवा साबित हो सकता है। खास कर आप एलोपैथिक दवाओं का सेवन इस बीमारी में बिना चिकित्सक की सलाह से ना करे, ऐसा करने से आपको गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। इस रोग में निम्नलिखित औषधियों की मदद से छुटकारा पाया जा सकता है –
- गोखरू
- कासनी
- अश्वगंधा
- पुनर्नवा
- सिंहपर्णी
- शतावरी
- गिलोय
- गोरखमुंडी
अगर आप इस गंभीर रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपनी जीवनशैली में बदलाव करने की खास जरुरत है। जैसे – नमक और तेज मसलों वाले आहार का सेवन ना करें। अगर आप मधुमेह से पीड़ित हैं तो आपको मीठे का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए, इससे किडनी पर दबाव नहीं पड़ेगा और आप जल्द स्वस्थ हो जाओगे।
कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर क आयुर्वेदिक उपचार
कर्मा आयुर्वेदा में केवल आयुर्वेद द्वारा ही रोग का निवारण किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा काफी लंबे समय से किडनी की बीमारी से लोगो को मुक्त कर रहा है। कर्मा आयुर्वेदा सिर्फ आयुर्वेदिक दवाओं से किडनी फेल्योर का सफल इलाज कर रहा है। किडनी की बीमारी से जीने की आस छोड़ चूके रोगियों को कर्मा आयुर्वेदा ने नया जीवन प्रदान किया है। क्योंकि वह किडनी फेल्योर जैसी खतरनाक बीमारी से पीड़ित थे। कर्मा आयुर्वेद में प्राचीन भारतीय आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर का इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेद की स्थापना 1937 में धवन परिवार द्वारा की गयी थी। वर्तमान में इसकी बागडौर डॉ. पुनीत धवन संभाल रहे है।
आपको बता दें कि कर्मा आयुर्वेदा में डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना किडनी की इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा पीड़ित को बिना डायलिसिस और किडनी ट्रांस्पलेंट के ही पुनः स्वस्थ करता है। कर्मा आयुर्वेद बीते कई वर्षो से इस क्षेत्र में किडनी पीड़ितों की मदद कर रहा है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता हैं। डॉ. पुनीत धवन ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।