क्या क्रोनिक किडनी रोग का कोई उपचार है?

अल्कोहोल और किडनी रोग

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क्या क्रोनिक किडनी रोग का कोई उपचार है?

हम अपने बाहरी शरीर की सफाई तो कर लेते हैं, लेकिन हम अपने आंतरिक शरीर की सफाई नहीं कर पातें। जिस प्रकार हमारे बाहरी शरीर की सफाई जरूरी है, ठीक उसी प्रकार हमारे आंतरिक शरीर की सफाई भी जरूरी है। किडनी हमारे शरीर को अंदर से साफ करने का कार्य करती है। किडनी हमारे रक्त को शुद्ध कर अपशिष्ट उत्पादों, क्षार और अम्ल को शरीर से बाहर निकाल कर शरीर की आतंरिक सफाई करती है। इससे शरीर में रसायनों का संतुलन बना रहता है, जिससे हमारा शरीर ठीक से कार्य कर पाता है। लेकिन कई कारणों के चलते हमारी किडनी खराब हो जाती है, उस समय शरीर में रसायनों का संतुलन बिगड़ जाता है। शरीर में रसायनों का संतुलन बिगड़ने के कारण व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। किडनी के अन्य रोगों के मुकाबले क्रोनिक किडनी डिजीज (किडनी फेल्योर) एक गंभीर समस्या है। इस बीमारी से बच पाना बहुत ही मुश्किल होता है। क्योंकि व्यक्ति को जब तक इस बीमारी के बारे में जानकरी मिलती है, उस समय तक रोगी की दोनों किडनियां 60 से 65 प्रतिशत तक खराब हो चुकी होती है।

क्रोनिक किडनी रोग क्या है?

जब शरीर में सीरम क्रिएटिनिन का स्तर लगातार धीमी गति के साथ बढ़ता रहे और ऐसा होने के कारण किडनी की कार्यक्षमता लगातार कम होने लगे तो इस स्थिति को क्रोनिक किडनी डिजीज यानि सी. के. डी. कहते हैं। इस रोग में व्यक्ति की दोनों किडनियां खराब हो जाती है। किडनी खराब होते समय इसके कुछ लक्षण हमारे शरीर में जरुर दिखाई देते हैं। लेकिन जानकारी के आभाव के कारण इस बीमारी की पहचान अंतिम चरण में होती है। क्रोनिक किडनी डिजीज में व्यक्ति की किडनी खराब होने में एक लम्बा समय लगता है। क्रोनिक किडनी डिजीज में किडनी खराब होने की पूरी क्रिया को पांच चरणों में विभाजित किया जाता है। किडनी खराब होने के पाँचों चरणों को किडनी की कार्यक्षमता की दर या GFR स्तर के आधार पर विभाजित किया जाता है। किडनी की कार्यक्षमता दर का अनुमान रक्त में मौजूद क्रिएटिनिन की मात्रा की जांच से किया जाता है। आपको बता दें कि एक स्वस्थ किडनी का GFR 90ml/min या इसके लगभग होता है और अंतिम चरण में यह GFR 15 प्रतिशत से भी कम हो जाता  है।

क्रोनिक किडनी रोग का उपचार :-

क्रोनिक किडनी रोग का सही समय पर उपचार कर रोगी को पुनः स्वस्थ किया जा सकता है। इस गंभीर बीमारी के मुख्य रूप से दो निम्नलिखित उपचार मौजूद हैं –

  1. एलोपैथी उपचार -

एलोपैथी द्वारा किडनी उपचार के दौरान रोगी के सामने दो विकल्प मौजूद होते हैं, पहला है “कृत्रिम रूप से रक्त शोधन” यानि डायलिसिस और दूसरा है “किडनी प्रत्यारोपण” जिसे आम भाषा में किडनी ट्रांसप्लांट के नाम से जाना जाता है। किडनी की विफलता से जूझ रहे रोगी के लिए यह दोनों ही उपचार बहुत जटिल और दुखदाई होते हैं। अगर रोगी डायलिसिस द्वारा अपनी किडनी को पुनः स्वस्थ करने की कोशिश करता है, तो उसे जीवन भर डायलिसिस के सहारे रहना पड़ता है। डायलिसिस रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि है, जिसमे रोगी के रक्त को शुद्ध करने की कोशिश की जाती है। रोगी को इस उपचार से थोड़ी बहुत राहत जरुर मिलती है, लेकिन यह राहत केवल कुछ समय के लिए ही होती है। डायलिसिस, रोगी की किडनी की स्थिति के आधार पर किया जाता है। डायलिसिस से किडनी को फिर से ठीक नहीं किया जा सकता, यह एक उम्र भर साथ रहने वाला कृत्रिम उपचार है।

लंबे समय तक डायलिसिस के बाद एक समय ऐसा आता है जब रोगी को इस उपचार से भी कोई राहत नहीं मिलती। उस दौरान चिकित्सक रोगी को किडनी प्रत्यारोपण कराने की सलाह देते हैं। किडनी प्रत्यारोपण के लिए रोगी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है, ‘किडनी दानदाता की खोज’। मनुष्य एक किडनी के सहारे से एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकता है। लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि किडनी प्रत्यारोपण के बाद रोगी को कुछ समय बाद किडनी से जुड़ीं समस्याएं फिर से उत्पन्न होने लगती हैं। किडनी प्रत्यारोपण के बाद रोगी को अपना शारीरिक तौर पर विशेष ख्याल रखना पड़ता है। साथ ही एलोपैथी उपचार बहुत खर्चीला होता है। यह रोगी पर तो नकारात्मक प्रभाव डालता ही है साथ ही रोगी के परिवार पर भी बुरा प्रभाव डालता है। एलोपैथी द्वारा किडनी को पुनः स्वस्थ करना बहुत मुश्किल है।

ध्यान दें, “कर्मा आयुर्वेदा किडनी रोगी को डायलिसिस और किडनी प्रत्यारोपण की सलाह नहीं देता। कर्मा आयुर्वेदा केवल आयुर्वेदिक उपचार द्वारा किडनी फेल्योर का सफल उपचार करता है।”

  1. आयुर्वेदिक उपचार –

आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। जिससे हमारे शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। आयुर्वेदिक उपचार में औषधि और दर्शन शास्त्र दोनों को शामिल कर व्यक्ति को नया जीवन प्रदान किया जाता है। आयुर्वेद हर बीमारी को जड़ से खत्म करता है। आयुर्वेद भले ही अपना असर धीरे-धीरे दिखाए लेकिन यह अंग्रेजी दवाइयों की तरह शरीर पर कोई अन्य प्रभाव नहीं छोड़ता। क्योंकि आयुर्वेदिक दवाओं में कोई कैमिकल नहीं होता, जिसके चलते यह हमारे शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। आयुर्वेदिक उपचार लेने पर किडनी रोगी को अंतिम चरण में रोगी को डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट जैसे जटिल उपचार से नहीं गुजरना पड़ता। आयुर्वेद की सहायता से किडनी फेल्योर का उपचार कर रोगी को नया स्वस्थ जीवन प्रदान किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार ही एकमात्र ऐसा उपचार है, जिससे हर बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है। आयुर्वेद में हर रोग का 100% रामबाण इलाज मौजूद है। कर्मा आयुर्वेदा वर्ष 1937 से प्राचीन भारतीय आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर का सफल इलाज कर रहा है। आयुर्वेद में किडनी फेल्योर के लिए कुछ खास जड़ी बूटियों का प्रयोग किया जाता है। किडनी फेल्योर में निम्नलिखित आयुर्वेदिक औषधियों का भी प्रयोग किया जाता है -

  • पुनर्नवा- पुनर्नवा का वैज्ञानिक नाम बोरहैविया डिफ्यूजा है। यह औषधि रक्त शुद्ध करने में सहायता करती है। किडनी खराब होने के दौरान, वह रक्त शुद्ध करने में समर्थ नहीं होती।
  • गोरखमुंडी- किसी व्यक्ति को अगर किडनी संक्रमण हो जाता है, तो उसे बार-बार पेशाब आने लगता है। साथ ही रोगी को पेशाब मे जलन, गंधदार पेशाब आने लगता है और पेशाब मे रक्त आने की समस्या का सामना करना पड़ता है। इस समस्या से निजात पाने के लिए गोरखमुंडी काफी असरदार साबित हुई है।
  • गोखरू- गोखरू को गोक्षुर नाम से भी जाना जाता है। गोखरू वात-पित्त को संतुलित, सूजन, दर्द को कम करने में मददगार होती है। यह मूत्राशय संबंधी रोगों में भी लाभकारी है। किडनी की पथरी में गोखरू काफी लाभकारी है। साथ ही यह औषधि शक्तिवर्द्धक और स्वादिष्ट होती है।

क्रोनिक किडनी रोगी के लिए आहार :-

क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित लोगो को अपने आहार का खास ख्याल रखना चाहिए। उचित आहार रोगी को जल्दी ठीक होने में मदद करता है। किडनी रोगी को अपने आहार में निम्नलिखित बातों का ख्याल रखना चाहिए –

  • क्रोनिक किडनी रोगी को कार्बोहाइड्रेट का सेवन संतुलित मात्रा में ही करना चाहिए। आप कार्बोहाइड्रेट को नियंत्रण में करने के लिए ब्रोकली, फूलगोभी, सेब, ब्लूबेरी जैसी चीजों को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं।
  • अगर रोगी उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहे हैं, तो उन्हें नमक का सेवन ना के बराबर करना चाहिए। उच्च रक्तचाप के कारण किडनी पर दबाव पड़ता है। उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझने वाले रोगी अपने आहार में बैंगन, करेला, नारियल पानी, मशरूम, ओट्स, दही जैसी चीजों को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। आप इसके लिए चिकित्सक की सलाह जरुर लें।
  • अगर किडनी रोगी मधुमेह की समस्या से जूझ रहे हैं तो उन्हें अपने आहार में करेला, मेथी, सहजन, पालक, तुरई, शलजम, बैंगन, परवल, लौकी, मूली, फूलगोभी, ब्रौकोली, टमाटर, पत्तागोभी और दूसरी अन्य पत्तेदार सब्जियों को शामिल करना चाहिए। शर्करा को नियंत्रण में रखने के लिए रोगी को जामुन, नींबू, आंवला, टमाटर, पपीता, खरबूजा, कच्चा अमरूद, संतरा, मौसमी, जायफल, नाशपाती जैसे फलों का सेवन करना चाहिए।
  • किडनी रोगी को प्रोटीन बहुत कम मात्रा में लेना चाहिए। क्योंकि अधिक प्रोटीन किडनी पर दबाव डालता है, जिससे किडनी को पुनः ठीक करना मुश्किल हो जाता है। अगर आप मांसाहारी हैं, तो आप चिकित्सक की सलाह से आपने आहार में अंडे का सफेद भाग, पनीर और ताजा चिकन जैसी उच्च प्रोटीन वाली चीजों को शामिल कर सकते हैं। ध्यान दें, इन खाद्य उत्पादों को सप्ताह में एक बार ही लें।
  • इस बीमारी के रोगियों को कम वसा वाली चीजों को अपने आहार में शामिल करना चाहिए। जैसे खीरा और तरबूज।
  • ऐसे रोगी सब्जियों का सेवन अधिक मात्रा में करें। आप लौकी, खीरा, गाजर, फूलगोभी, पत्ता गोभी, तुरई जैसी सब्जियों को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। अगर रोगी सब्जियों का सेवन करने में असमर्थ हैं, तो वह सब्जियों का सेवन को जूस के रूप में भी कर सकते हैं। लेकिन ध्यान दें, रोगी ताज़ा जूस का ही सेवन करे।
  • आप धनिया की पत्तियों के जूस का सेवन कर सकते हैं। इस जूस के सेवन से निश्चित ही किडनी को आराम मिलता है। घनिया किडनी को साफ करने में मदद करता है।
  • क्रोनिक किडनी डिजीज के रोगी चिकित्सक की सलाह से सेब के सिरके को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। सेब का सिरका किडनी को साफ कर उसकी क्षतिग्रस्त हुई कोशिकाओं को राहत देने का कार्य करता है।
  • किडनी फेल्योर के रोगियों को आम, केला, सेब, चीकू, खजूर और अंगूर जैसे फलों का सेवन नहीं करना चाहिए। इन फलों में पोटेशियम, प्रोटीन, और मीठे की मात्रा अधिक होती है, जो किडनी पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
  • किडनी रोगी को अपने आहार में लहसुन को शामिल करना चाहिए। जब लहसुन को पीसा या कुचला जाता है, तो इसमें से एलिसिन नाम का एंटीऑक्सीडेंट निकलता है। यह तत्व एंटीडायबिटिक होता है, जो मधुमेह को प्रभावी ढंग से रोकने में मदद करता है, साथ ही यह उच्च रक्तचाप की समस्या को भी दूर करने में मदद करता है।

किडनी खराब होने के कारण :-

किडनी कभी भी अपने आप खराब नहीं होती। किडनी कुछ कारणों के चलते खराब होती है। किडनी खराब होने के खास कारण निम्नलिखित हैं –

मूत्र संक्रमण –

मूत्र संक्रमण या यूरिन ट्रैक इन्फेक्शन (UTI) एक गंभीर समस्या है। बड़ों की तुलना में बच्चे इस बीमारी के अधिक शिकार होते हैं। मूत्र संक्रमण के दौरान किडनी पर नकारत्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे किडनी संक्रमण होने का खतरा रहता है। किडनी संक्रमण की समस्या समय के साथ किडनी फेल्योर जैसी गंभीर बीमारी बन जाती है। यह गंभीर बीमारी विशेषकर 10 से कम वर्ष के बच्चों को होती है। इस बीमारी की चपेट में सबसे ज्यादा महिलाऐं आती है, प्रतिशत में बात करे तो 8-9 प्रतिशत महिलाऐं इस बीमारी की शिकार होती है और 5 प्रतिशत पुरुष इस बीमारी से घिरते है।

मधुमेह –

जीवनभर साथ चलने वाली बीमारी यानि "मधुमेह" को किडनी खराब होने का मुख्य कारण माना जाता है। एक बार मधुमेह होने के बाद इससे बच पाना मुश्किल होता है। मधुमेह के कारण हमारे शरीर में और भी कई प्रकार की बीमारियां होना शुरू हो जाती है। जैसे रक्तचाप में अधिक मात्रा में उतार-चढाव का होना,  मोटापा बढ़ना आदि। मधुमेह होने पर रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, शर्करा युक्त रक्त को शुद्ध करते समय किडनी पर दबाव पड़ता है। किडनी पर लगातार दबाव पड़ने के कारण किडनी खराब हो जाती है।

उच्च रक्तचाप –

हमेशा उच्च रक्तचाप रहने के कारण से भी किडनी खराब हो सकती है। उच्च रक्तचाप के पीछे सोडियम यानि नमक होता है, अगर रक्त में सोडियम की मात्रा अधिक हो जाए तो व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की समस्या उत्पन्न होने लगती है। उच्च रक्तचाप के कारण शरीर में रक्त प्रवाह में समस्या होती है, साथ ही अधिक क्षार युक्त रक्त को बार बार शुद्ध करने के कारण किडनी पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किडनी खराब हो जाती है। जो लोग हमेशा गुस्से में रहते हैं  उनका रक्तचाप भी हमेशा बढ़ा हुआ रहता है। बता दें उच्च रक्तचाप के कारण व्यक्ति को दिल से जुडी समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

एंटीबायोटिक्स का अधिक सेवन -

अगर आप एंटीबायोटिक दवाओं या अन्य किसी प्रकार की दवाओं का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं, तो यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपकी किडनी के कार्य को नुकसान पहुंचाता है, जिसके कारण किडनी खराब हो सकती है। किडनी को नुकसान पहुंचाने वाली दवाओं को नेफ्रोटॉक्सिक (Nephrotoxic) दवाओं के नाम से जाना जाता है। नेफ्रोटॉक्सिक दवाएं किडनी में रक्त प्रवाह को बाधित करने के साथ-साथ रक्त शुद्ध करने की प्रक्रिया को भी रोकती है। हाँ, अगर आप आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करते हैं, तो आपके शरीर पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

किडनी की विफलता के लक्षण :-

किडनी खराब होने पर शरीर में इस अगम्भीर बीमारी के निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं –

  • सांस लेने में तकलीफ
  • बार-बार उल्टी आना
  • पेशाब करने में दिक्कत होना
  • शरीर के कुछ हिस्सों में सूजन
  • आंखों के नीचे सूजन
  • कंपकंपी के साथ बुखार होना
  • पेट में दर्द
  • पेशाब में रक्त और प्रोटीन का आना
  • बेहोश हो जाना
  • पेशाब में प्रोटीन आना
  • गंधदार पेशाब आना
  • पेशाब में खून आना
  • अचानक कमजोरी आना
  • पेट में दाई या बाई ओर असहनीय दर्द होना
  • नींद आना
  • कमर दर्द होना

कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार :-

“कर्मा आयुर्वेदा” किडनी फेल्योर ( Kidney Failure Treatment )का आयुर्वेद की मदद से सफल उपचार करता है। कर्मा आयुर्वेदा बिना किसी डायलिसिस और बिना किडनी ट्रांसप्लांट के ही खराब किडनी को ठीक करता है। वर्ष 1937 में कर्मा आयुर्वेदा की नींव धवन परिवार द्वारा रखी गयी थी तभी से कर्मा आयुर्वेदा किडनी फेल्योर के रोगियों को इस जानलेवा बीमारी से छुटकारा दिलाता आ रहा है। वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन कर्मा आयुर्वेद की बागडोर को संभाल रहे है। डॉ. पुनीत धवन पुर्णतः आयुर्वेद पर ही विश्वास करते हैं और आयुर्वेद की मदद से किडनी से जुड़ी बीमारी का निदान करते है। डॉ. पुनीत ने अभी तक 35 हजार से भी ज्यादा रोगियों को किडनी फेल्योर की जानलेवा बीमारी से छुटकारा दिलवाया है, वो भी बिना डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट किये।

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