आयुर्वेद प्राकृतिक उपचार हैं जो किडनी के मरीजों का जड़ी-बूटियों के साथ इलाज करते हैं। ये रोग को जड़ से खत्म करने मं मदद करती हैं और इससे कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता हैं। एलोपैथी में किडनी इलाज संभव नहीं हैं, लेकिन भारत एकमात्र किडनी उपचार केंद्र कर्मा आयुर्वेदा ने साबित कर दिखाया हैं कि डायलिसिस और ट्रांसप्लांट के बिना किडनी का इलाज संभव हैं।
ये दिल्ली में 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और इसमें एक अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सा हैं जिन्हें अब तक करियर में हजारों किडनी रोगियों का इलाज किया हैं। डॉ. पुनीत धवन ने आयुर्वेदिक की मदद से सफलतापूर्वक 35 हजारे से भी ज्यादा मरीजों का इलाज कर चुके हैं।
किडनी कार्य
किडनी शरीर के बेहद जरूरी हिस्सा हैं जो रक्त साफ करती हैं और फिल्टर पदार्थ को पेशाब में बदलती हैं। किडनी के सही से काम न करने पर शरीर रोग ग्रसित हो जाता हैं। किडनी रीढ़ की हड्डी के दोनों सिरों पर फैली होती हैं ये दो अंग होते हैं। हमारे शरीर रक्त में मौजूद विकारों को छानकर साफ करती हैं और शरीर को स्वच्छ रखती हैं।
खून को साफ कर पेशाब बनाने का कार्य भी किडनी के द्वारा ही पूरा होता हैं। किडनी रक्त में उपस्थित अनावश्यक कचरे को पेशाबमार्ग से शरीर से बाहर निकाल देती हैं। फिल्टर पेशाब के माध्यम से शरीर की किडनी हानिकारक पदार्थ जैसे- यूरिया क्रिएटिनिन और अन्य प्रकार के अम्ल निकल जाते हैं।
किडनी लाखों छलनियों तथा लगभग 140 लंबी नलिकाओं से बनी होती हैं। किडनी में उपस्थित नलिकाएं छने हुए द्रव्य में से जरूरी चीजों जैसे सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम आदि को दोबारा सोख लेती हैं और बाकी अनावश्यक पदार्थों को पेशाब के रूप में बाहर निकाल देती हैं। किसी खराबी की वजह से अगर एक किडनी कार्य करना बंद कर देती हैं तो उस स्थिति में दूसरी किडनी पूरा कार्य संभाल लेती हैं।
किडनी फेल्योर
शरीर में किडनी का मुख्य कार्य शुद्धिकरण का होता हैं, लेकिन शरीर में किसी रोग की वजह से जब दोनों किडनी अपना सामान्य कार्य करने में अक्षम हो जाती हैं तो इस स्थिति को हम किडनी फेल्योर कहते हैं। गुरदासपुर में किडनी फेल्योर आयुर्वेदिक उपचार हैं।
किडनी फेल्योर के लक्षण:
रक्त में क्रिएटिनिन और पेशाब की मात्रा की जांच से किडनी की कार्यक्षमता का पता किया जा सकता हैं वैसे तो किडनी की क्षमता शरीर की आवश्यकता से ज्यादा होती हैं, इसलिए किडनी को थोड़ा नुकसान हो भी जाए, तो भी रक्त की जांच में कोई खराबी देखने को नहीं मिलती हैं। जब रोग की वजह किडनी 50% से ज्यादा खराब हो जाती, तभी रक्त की जांच में यूरिया और क्रिएटिनिन की बढ़ी हुई मात्रा का प्रदर्शन होता हैं, जो किडनी खराब होने के लक्षणों में प्रमुख हैं।
किडनी का विशेष संबंध ह्रदय, फेफड़ों, लिवर और प्लीहा के साथ होता हैं। ज्यादातर ह्रदय और किडनी परस्पर सहयोग के साथ कार्य करती हैं, इसलिए जब किसी को ह्रदयरोग होता हैं तो उसके किडनी खराब होने के लक्षण दिखते हैं, तब उस व्यक्ति का रक्तचाप बढ़ जाता हैं और वह रोगी धीरे-धीरे कमजोरी भी हो जाती हैं। किडनी के रोगियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। इसका मुख्य कारण हमारे द्वारा ह्रदय रोग, दमा, श्वास, टीबी, मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसे रोगों में किया जा रहा हैं एलोपैथी दवाओं का लंबे समय तक अथवा आजीवन इस्तेमाल होता हैं।
किडनी का आयुर्वेदिक उपचार
आहार और आयुर्वेदिक दवाएं इसे बंद कर सकती हैं। अनिश्चित काल तक जोये दर्शाती हैं कि स्वास्थ्य को बनाए रखने में किडनी महत्वपूर्ण आहार हैं। एक पोषण विशेषज्ञ की सलाह को सुनना बीमारी के किसी भी स्तर पर एक किडनी रोगी के लिए महत्वपूर्ण हैं। कभी-कभी ये बीमारी और अधिक गंभीर हो जाएगी।
साथ ही कर्मा आयुर्वेदा भारत के प्रसिद्ध आयुर्वेदिक उपचार केंद्र में से एक हैं। कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल 1937 में स्थापित किया गया था। जिसके नेतृत्व में डॉ. पुनीत धवन हैं जो धवन परिवार की 5वीं पीढ़ी हैं। साथ ही कर्मा आयुर्वेदा में सिर्फ आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल करके उन्हें किडनी रोग से मुक्त किया जाता हैं। डॉ. पुनीत धवन ने सफलतापूर्वक 35 हजार किडनी के सभी मरीजों का इलाज कर चुके हैं।