किडनी हमारे शरीर में कई महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम देती है। किडनी के बिना हमारे शरीर की कल्पना तक भी नहीं की जा सकती। किडनी रक्त को शुद्ध कर हमारे शरीर के अधिक पानी, नमक और अपशिष्ट तत्वों को पेशाब के जरिए शरीर से बहार निकाल देती है। जिसके कारण हमारा शरीर अपने संतुलन में बना रहता है और सभी अंग सुचारु रूप से अपना काम कर पाते है। लेकिन जब हमारी किडनी खराब हो जाती है, उस दौरान हमारे शरीर में बनने वाले अपशिष्ट उत्पादों को किडनी शरीर से बहार निकालने में असमर्थ हो जाती है। किडनी की यह स्थति जानलेवा होती है।
ऐसा नहीं है की किड़नी अचानक से खराब हो जाती है। हमारी किडनी धीरे-धीरे लम्बे समय के साथ खराब होती है, इसी कारण किडनी की बीमारी को साइलेंट किलर भी कहा जाता है। किडनी खराब होने के समय हमारे शरीर में कुछ बदलाव देखने को मिलते हैं। जिसे हम किडनी खराब होने के लक्षण भी कहते हैं। इन लक्षणों की पहचान कर हम यह जान सकते हैं कि कहीं हमारी किडनी बीमार तो नहीं। ठीक इसी प्रकार आप जीएफआर जांच के द्वारा भी किडनी के स्वास्थ्य के बारे में जान सकते हैं।
जीएफआर क्या है?
जीएफआर यानि ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट (glomerular filtration rate) एक तरह की जांच है जो किडनी की कार्यक्षमता के बारे में बताती है। ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट को हिंदी में “केशिकागुच्छीय निस्पंदन दर” कहा जाता है। इस जांच से पता चलता है कि आपके रक्त में कितनी मात्रा में अपशिष्ट उत्पाद मौजूद है, और किडनी कितनी प्रतिशत ठीक है या किडनी, क्रोनिक किडनी रोग के कौन-से स्तर पर है। इस जांच की आवश्यकता खासतौर पर मधुमेह के रोगियों को ज्यादा पड़ती है। क्योंकि मधुमेह होने के कारण रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे किडनी के नेफ्रोन (फिल्टर्स) को नुकसान पहुँचता है। ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट का कम स्तर किडनी में हो रहे नुकसान को दर्शाता है। ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है, एक GFR रक्त जांच और दूसरा eGFR रक्त जांच।
eGFR का अर्थ है अनुमानित ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट (estimated glomerular filtration rate), यह जांच रक्त मौजूद अपशिष्ट उत्पादों की अनुमानित दर के बारे में बताती है। जबकि जीएफआर रक्त जांच के दम सटीक परिणाम बताती है। जीएफआर का मान जितना नीचे गिरता जायगा उतनी ही किडनी खराब होती जायगी, एक स्वस्थ किडनी के लिए जीएफआर का उच्च होना चाहिए। एक स्वस्थ किडनी का GFR 90ml/min से ज्यादा या उसके लगभग हो सकता है।
जैसे-जैसे किसी व्यक्ति का जीएफआर स्तर कम होता उसकी किडनी की कार्यक्षमता उतनी ही कम होने लगती है। जीएफआर के घटते स्तर के आधार पर क्रोनिक किडनी डिजीज यानी किडनी फेल्योर को पांच चरणों में विभाजित किया गया है। क्रोनिक किडनी डिजीज के हर चरण में जीएफआर का मान गिरता है, जो निम्नलिखित है –
- पहले चरण के दौरान किडनी की कार्यक्षमता दर 90–100 % तक होती है और GFR की बात करे तो यह 90ml/min तक होता है।
- दुसरे चरण में रोगी का GFR 60 से 89 मि.लि./मिनिट तक हो सकता है।
- तीसरे चरण में किडनी की कार्यक्षमता या GFR 30 तो 59 मि.लि./मिनिट के लगभग हो सकता है।
- चौथे चरण में किडनी की कार्यक्षमता अथवा GFR 15-29 मि.लि./मिनिट तक हो जाती है
- अंतिम चरण यानी पांचवे चरण में किडनी का GFR अर्थात किडनी की कार्यक्षमता में 15 % से भी कम हो जाती है।
किडनी की कार्यक्षमता 15 % या उससे कम हो जाने पर व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे - पेट में दर्द, आँखों के नीचे और पैरो में सूजन, कमर के निचले हिस्से में दर्द, गठिया, कम पेशाब आना, उल्टियाँ आना, खाना ना पचना भूख में कमी, गैस और पेट में सूजन, खून की कमी, सांस फूलना या छोटे–छोटे सांस आना, नींद की कमी, रात में गंधदार पेशाब आना जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस चरण में रोगी का क्रीएटिनिन स्तर लगातार बढ़ता रहता है। अगर रोगी के रक्त में क्रीएटिनिन का स्तर कम नहीं किया जाए तो रोगी को जान से भी हाथ तक धोना पड़ सकता है।
आखिर क्यूँ गिरता है जीएफआर?
जीएफआर का स्तर गिरने के पीछे सबसे बड़ा कारण हमारी बिगड़ती हैं। इसके अलावा निम्नलिखित कारणों के चलते भी जीएफआर का स्तर गिर सकता है -
- यदि कोई व्यक्ति लम्बे समय से उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहा है तो उसके किडनी खराब होने की समस्या हो सकती है। जिसके कारण उसका जीएफआर स्तर लगातर गिरता रहता है. रक्त में सोडियम की अधिक मात्रा होने के कारण उच्च रक्तचाप की समस्या होती है, जिसके कारण किडनी के नेफ्रोन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किडनी खराब होना शुरू हो जाती है।
- किडनी में किसी कारण सूजन आने से व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में व्यक्ति का जीएफआर स्तर काफी गिर जाता है।
- मधुमेह होने पर रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक हो जाती है, शर्करा युक्त रक्त को शुद्ध करने पर किडनी के नेफ्रोन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और इसी कारण पीड़ित का जीएफआर स्तर कम होने लगता है.
- गठिया की समस्या किडनी की बीमारी तरफ इशारा करती है। ऐसे में आपका जीएफआर स्तर गिर सकता है।
- किडनी की पथरी के कारण से भी जीएफआर का स्तर गिरता है। आप आयुर्वेद द्वारा इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।
- अगर आप दर्द निवारक दवाओं का सेवन अधिक मात्रा में करते हैं, तो आपको सावधान रहने की जरुरत है। लम्बे समय तक दर्द निवारक दवाओं का सेवन करने से किडनी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके चलते किडनी की कार्यक्षमता कम होने लगती है।
घटते जीएफआर को प्राकृतिक रूप से कैसे बढ़ाए?
घटता जीएफआर किडनी फेल्योर को दर्शाता है। इसके लगातार गिरने से रोगी को कई जटिल उपचारों से भी गुजरना पड़ता है, जिसमे डायलिसिस भी एक है। जो व्यक्ति किडनी फेल्योर से छुटकारा पाने के लिए एलोपैथी उपचार का चयन उन्हें डायलिसिस जैसे जटिल उपचार से गुजरना पड़ता है। डायलिसिस की मदद से रोगी का जीएफआर स्तर बढाने की कोशिश की जाती है। लेकिन आप प्राकृतिक रूप से भी जीएफआर के स्तर को बढ़ा सकते है, आप निम्नलिखित कुछ उपायों की मदद से जैसा कर सकते हैं –
- प्रोटीन वैसे तो शरीर के लिए बहुत जरुरी होता है, लेकिन प्रोटीन का अधिक सेवन करने से किडनी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शरीर में अधिक मात्रा में प्रोटीन होने पर किडनी के फिल्टर्स पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किडनी खराब होना शुरू हो जाती है। इसी कारण आपको प्रोटीन युक्त आहार का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए।
- आप अपने आहार में कम का इस्तेमाल करे। ज्यदा नमक के सेवन से उच्च रक्तचाप की समस्या होती है, जिससे किडनी पर दबाव पड़ता है।
- धुम्रपान ना करे, क्योंकि इसके सेवन से शरीर में जहरीले तत्वों की मात्रा बढती है। जिसके कारण जीएफआर का स्तर गिर सकता है।
- पोटेशियम युक्त आहार का सेवन संतुलित मात्रा में ही करना चाहिए। आपको आम, केला, सेब, चीकू, खजूर और अंगूर जैसे फलों का सेवन नहीं करना चाहिए, इन फलों में पोटेशियम अधिक मात्रा में होता है।
- लौकी, तुरई, टिंडा जैसी सब्जियों का सेवन करें।
- चिकित्सक से मिलें और आयुर्वेदिक उपचार लेना शुरू करें।
- रक्तचाप और रक्त शर्करा को काबू में रखें।
कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार :-
आयुर्वेद द्वारा हर प्रकार की जानलेवा बीमारी से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। भारत की पवित्र भूमि पर लगभग पाँच हज़ार वर्ष पूर्व आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति विज्ञान की शुरुआत की गयी थी। आयुर्वेद में औषधि और दर्शन शास्त्र दोनों को शामिल कर व्यक्ति को नव जीवन प्रदान किया जाता है। “कर्मा आयुर्वेदा” पारम्परिक आयुर्वेद की सहयता से किडनी फेल्योर के तमाम रोगों का उपचार कर रोगी को नया स्वस्थ जीवन प्रदान करता है। आयुर्वेद में केवल प्राकृतिक जड़ी बूटियों का प्रयोग कर रोगी की किडनी को पुनः स्वस्थ किया जाता है। इस चिकित्सा पद्धति में डायलिसिस और किडनी प्रत्यारोपण जैसे जटिल उपचार का सहारा नहीं लिया जाता। आयुर्वेदिक उपचार में गोखरू, कासनी, शिरीष, पलाश और पुनर्नवा जैसी जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है।
कर्मा आयुर्वेदा में हर प्रकार के किडनी रोग को जड़ से खत्म किया जाता है, वो भी बिना डायलिसिस और बिना किडनी ट्रांसप्लांट किये। कर्मा आयुर्वेदा में सिर्फ आयुर्वेदिक दवाओं से ही इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना सन 1937 में धवन परिवार द्वारा की गयी थी। जिसके बाद से लेकर अब धवन परिवार की पांचवी पीढ़ी इस क्षेत्र में काम कर रही है। वर्तमान में कर्मा आयुर्वेदा को डॉ. पुनीत धवन संभाल रहे है। डॉ. पुनीत धवन आयुर्वेदिक दुनिया में एक जानेमाने चिकित्सक है। इन्होने आयुर्वेद की मदद से किडनी जैसे हानिकारक रोग को जड़ से खत्म अपना लोहा मनवाया है।
आयुर्वेद बीमारी को जड़ से ख़त्म करता है। आयुर्वेद भले ही अपना असर धीरे - धीरे दिखाए लेकिन यह अंग्रेजी दवाइयों की तरह शरीर पर कोई अन्य प्रभाव नहीं छोड़ता। क्यूंकि आयुर्वेदिक दवाओं में कोई कैमिकल नहीं होता, जिसके चलते यह हमारे शरीरपर कोई दुष्प्रभाव नहीं छोड़ता। डॉ. पुनीत धवन ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता हैं।