पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज किडनी से जुड़ी एक ऐसी बीमारी है जो हमें अपने अपने परिवार वालों से मिलती है, यह एक जुड़ा एक वंशानुगत रोग है। किडनी से जुड़ा यह रोग अगर माता पिता के अलावा भी और उनसे पहले किसी को रहा तो भविष्य में यह रोग परिवार में किसी को होने का खतरा रहता है। इस किडनी रोग में व्यक्ति की दोनों किडनियों पर तरल से भरे हुए बुलबुले बन जाते है, जिसे सिस्ट कहा जाता। किडनी पर होने वाले सिस्ट लाखों की संख्या में होते हैं। किडनी पर हुए सिस्ट में से कुछ सिस्ट को आँखों से देखा जा सकता है, जबकि कुछ सिस्ट को नंगी आँखों देखना संभव नहीं होता। अगर इन सिस्टो का उपचार ना किया जाए तो यह रोग क्रोनिक किडनी रोग यानि किडनी फेल्योर में भी बदल सकता है।
क्रोनिक किडनी डिजीज पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज क्रोनिक किडनी के मुकाबले ज्यादा फैलता है। पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज एक प्रकार का ऑटोसोमल डोमिनेन्ट वंशानुगत रोग है, यह अधिकतर वयस्कों में पाया जाता है। इस रोग में मरीज के बाद उसकी संतान को किडनी रोग होने की 50% तक की आशंका रहती है। पीकेडी के मरीज के भाई – बहन और उसकी संतानों की अपनी जांच जरुर करवानी चाहिए। समय रहते जांच करवा कर आप इस गंभीर और जानलेवा बीमारी से बच सकते है। पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज का यह जीन संतान को उसके बचपन से ही मिल जाता है, जिसके कारण इस रोग से बचाना बहुत मुश्किल होता है। हाँ, कुछेक केसों में देखा गया हैं कि यह रोग वंशानुगत नहीं होता, जिसे गैर वंशानुगत पॉलीसिस्टिक किडनी रोग कहा जाता है।
किडनी की यह गंभीर बीमारी भले ही रोगी में बचपन से होती है लेकिन यह रोग 35 वर्ष की उम्र के बाद अपना सर उठाना शुरू करती है। 40 की उम्र के करीब आते – आते किडनी की यह गंभीर बीमरी अपना विकराल रूप धारण कर चुकी होती है। इस समय रोगी को डायलिसिस की आवश्यकता पड़नी शुरू हो जाती है। डायलिसिस से किसी भी प्रकार के किडनी को ठीक नहीं किया जा सकता। हाँ, डायलिसिस की मदद से रोगी को कुछ समय के लिए इस पीड़ा से राहत जरुर दिलाई जा सकती है। अगर रोगी को समय रहते उपचार ना दिलवाया जाए तो उसकी मौत तक भी हो सकती हैं।
पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज होने पर ऐसे पाए निदान
अगर आप पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज से पीड़ित है तो आप निम्नलिखित चीजों को अपना कर इस समस्या से निदान पा सकते हैं :-
- सूर्योदय से कम से कम 1 घंटा पहले उठें
- किडनी की इस बीमारी में जैतून के तेल का इस्तेमाल करे या अपनी त्वचा पर तिल का तेल (तिल का तेल) लगाएँ, रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देता है और मधुमेह के कारण होने वाली सुन्नता को रोकता है। किडनी खराब होने पर शरीर में सूजन आ सकती है।
- इस रोग के दौरान रोगी को एवोकैडो का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए। एवोकाडोस पोटेशियम का अच्छा स्रोत है जो पॉलीसिस्टिक किडनी रोग होने पर अच्छा नहीं होता है।
- जमे हुए और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में संरक्षक के रूप में सोडियम होता है जो पीकेडी रोगी के लिए हानिकारक होते हैं।
- शीतल पेय (COLD DRINKS) और शराब के सेवन से बचें; इसमें फास्फोरस होता है जो मानव शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित होता है।
- भूरे चावल (brown rice) से बचें वे पोटेशियम और फास्फोरस में समृद्ध हैं। सफेद चावल की तुलना में ब्राउन राइस में पोटेशियम और फास्फोरस अधिक होता है।
- डेयरी उत्पाद पोटेशियम, फास्फोरस और प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं, जैसे दही, पनीर आदि। इसलिए पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज आयुर्वेदा वालों को इनका सेवन करने से बचना चाहिए।
- इस दौरान रोगी को केले और संतरे के सेवन से बचना चाहिए। इन दोनों फलों में पोटेशियम समृद्ध मात्रा में होता है’। सेब, अंगूर, क्रैनबेरी और उनके रस का प्रयास करें।
- अचार और प्रसंस्कृत जैतून (Processed Olive) का सेवन बिलकुल ना करे, यह सोडियम में उच्च होते हैं जिन्हें पीकेडी आयुर्वेदिक उपचार के दौरान बचा जाना चाहिए।
- तरल पदार्थ पिएं: पानी और जूस पिएं (जिसमें पोटेशियम, सोडियम और फॉस्फोरस न हों) और मूत्र के रंग का निरीक्षण करें।
पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज का आयुर्वेदिक उपचार
पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज के लिए आयुर्वेदिक उपचार सबसे पहले आप अपने आहार में परिवर्तन करे जिससे बीमारी को कुछ हद कर ठीक करने में आसानी होती है। प्रोटीन की मात्रा का सेवन कम करें। इसके अलावा आलवा आप नमक यानि सोडियम का सेवन ना के बराबर ही करें। इसके अधिक सेवन से शरीर में उच्च रक्तचाप की समस्या उत्पन्न होने लगती है। मधुमेह को काबू में रखना चाहिए। अगर आप पी।के।डी। के साथ साथ मधुमेह के भी रोगी है तो आपको रक्त शर्करा को कम करने वाले भोजन को ही अपने आहार में अपनाना चाहिए। इस रोग में निम्नलिखित औषधियों की मदद से छुटकारा पाया जा सकता है –
- गोखरू
- कासनी
- अश्वगंधा
- पुनर्नवा
- सिंहपर्णी
- शतावरी
- गिलोय
- गोरखमुंडी
कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार
कर्मा आयुर्वेद पूर्णतः प्राचीन भारतीय आयुर्वेद के सहारे से किडनी फेल्योर का इलाज कर रहा है। कर्मा आयुर्वेदा साल 1937 से किडनी रोगियों का इलाज करते आ रहे हैं। वर्ष 1937 में धवन परिवार द्वारा कर्मा आयुर्वेद की स्थापना की गयी थी। वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन कर्मा आयुर्वेदा को संभाल रहे है। डॉ. पुनीत धवन ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं, वो भी किडनी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।