किडनी हमारे शरीर का वो खास अंग है जो कि शरीर में बहने वाले खून की सफाई करने का सबसे जरूरी काम करता है। किडनी हमारे शरीर के लिए जितना महत्वपूर्ण अंग है उतना ही संवेदनशील भी । यह अक्सर हमारी कुछ गलत आदतों के कारण कई समस्याओं की चपेट में आ जाती है। अब चाहे वो किडनी स्टोन की समस्या हो या किडनी संक्रमण की या फिर किडनी फेल्योर, यह सब बीमारियाँ हमारी गलत लाइफस्टाइल के कारण से ही होती है। लेकिन पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज, किडनी से जुड़ी एकलौती ऐसी बीमारी है जो हमें अपने परिवार वालों से विरासत में मिलती है, यह किडनी से जुड़ा एक वंशानुगत रोग है।
हाँ, पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज किडनी की वो बीमारी है जो कि आनुवांशिक रूप से विरासत में मिल सकती है। अगर परिवार में पहले किसी को यह बीमारी रही हो तो आने वाली पीढ़ी में भी यह रोग हो सकता है। अन्य किडनी रोगों के मुकाबले यह किडनी रोग सबसे गंभीर है क्योंकि जब तक इस रोग के लक्षण दिखाई ना देते, तब तक इसको पकड़ पाना काफी मुश्किल होता है। इस किडनी रोग में व्यक्ति की दोनों किडनियों की सतह पर तरल से भरे हुए बुलबुले बन जाते हैं, जिन्हें सिस्ट कहा जाता। किडनी के इस रोग में बनने वाले यह सिस्ट लाखों की संख्या में भी हो सकते हैं।
पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज के दौरान किडनी पर बने कुछ सिस्ट आकार में बड़े होते हैं और कुछ काफी छोटे, जिन्हें एक निर्धारित परिक्षण के बिना नहीं देखा जा सकता। बड़े सिस्ट के मुकाबले छोटे सिस्ट काफी गम्भीर माने जाते हैं, क्योंकि वह किडनी को बारीकी से नुकसान पहुँचाने का काम करते हैं। अगर समय रहते इस किडनी रोग का उपचार ना किया जाए तो यह वंशानुगत किडनी रोग किडनी के खराब होने का कारण भी बन सकता है। एक बार किडनी खराब होने के बाद इस रोग से छुटकारा पाना और ज्यादा मुश्किल हो जाता है, क्योंकि किडनी फेल्योर शरीर को तेजी से नुकसान पहुंचाता है।
पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज एक प्रकार का ऑटोसोमल डोमिनेन्ट वंशानुगत रोग है, यह अधिकतर वयस्कों में पाया जाता है। पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज का यह जीन संतान को उसके बचपन से ही मिल जाता है, जिसके कारण इस रोग से बच पाना बहुत मुश्किल होता है। हाँ, कुछेक केसों में देखा गया हैं कि यह रोग वंशानुगत नहीं होता, जिसे गैर वंशानुगत पॉलीसिस्टिक किडनी रोग कहा जाता है। किडनी की यह गंभीर बीमारी भले ही रोगी में बचपन से होती है लेकिन यह रोग 35 वर्ष की उम्र के बाद अपना सर उठाना शुरू करता है। इस रोग में मरीज के बाद उसकी संतान को किडनी रोग होने की 50% तक की आशंका रहती है।
किडनी की यह वंशानुगत बीमारी कितने प्रकार की होती है?
किडनी की यह वंशानुगत बीमारी एक से ज्यादा प्रकार की होती है, लेकिन इसका मूल एक ही है कि यह किडनी रोगी को अपने विरासत में प्राप्त हुई है। पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज के निम्न वर्णित तीन प्रकार है:
ऑटोसोमल डोमिनेंट पीकेडी (इसे पीकेडी या ADPKD भी कहा जाता है) : किडनी की बीमारी का यह रूप माता-पिता से बच्चे तक सीधा विरासत में मिलता है, यह जीन द्वारा बच्चे में पारित होता है। दूसरे शब्दों में, रोग का कारण बनने के लिए असामान्य जीन की केवल एक प्रति की आवश्यकता होती है। इसके लक्षण आमतौर पर 30 और 40 की उम्र के बीच शुरू होते हैं, लेकिन कुछ केसों में पहले भी शुरू कर सकते हैं, यहां तक कि बचपन में भी इसकी शुरुआत हो सकती है। ADPKD वंशानुगत किडनी रोग का सबसे सामान्य रूप है। वास्तव में, सभी PKD मामलों में से लगभग 90 प्रतिशत ADPKD हैं।
शिशु या ऑटोसोमल रिसेसिव पीकेडी (इसे ARPKD के नाम से पुकारा जाता है) : पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज का यह रूप माता-पिता से बच्चे को आवर्ती विरासत द्वारा पारित किया जाता है। लक्षण जीवन के शुरुआती महीनों में, यहां तक कि यह किडनी रोग गर्भ में भी शुरू हो सकता है। यह बहुत गंभीर हो जाता है, तेजी से बढ़ता है और जीवन के पहले कुछ महीनों में अक्सर घातक होता है। ARPKD का यह रूप अत्यंत दुर्लभ है, यह 25,000 लोगों में से 1 में होता है।
अधिग्रहित सिस्टिक किडनी रोग (इस किडनी रोग को ACKD भी कहा जाता है) : ACKD दीर्घकालिक क्षति और गंभीर निशान वाले गुर्दे में हो सकता है, इसलिए यह अक्सर किडनी की विफलता और डायलिसिस से जुड़ा होता है। 5 वर्षों के लिए डायलिसिस पर लगभग 90 प्रतिशत लोग एसीकेडी विकसित करते हैं। एसीकेडी वाले लोग आमतौर पर मदद मांगते हैं क्योंकि वे अपने मूत्र में रक्त को नोटिस करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि अल्सर मूत्र प्रणाली में खून बहता है, जो मूत्र को निष्क्रिय कर देता है।
क्या किडनी के इस वंशानुगत रोग को समय रहते रोका जा सकता है?
पॉलीसिस्टिक किडनी रोग से पीड़ित रोगी के परिवार वालो द्वारा अक्सर यह सवाल पूछा जाता है की “क्योंकि यह वंशानुगत किडनी रोग है तो क्या इसे होने से पहले रोका जा सकता है या नहीं अगर नहीं तो क्यों?” ऊपर पूछे गये सवाल का जवाब है “नहीं”, पॉलीसिस्टिक किडनी रोग में आयुर्वेदिक उपाय को पहले होने से नहीं रोका जा सकता है। इसके पीछे मुख्य रूप से तीन तर्क है,
- यह किडनी रोग वंशानुगत रोग है जो कि 35 की उम्र के बाद होना शुरू होता है और इस उम्र तक अक्सर किडनी रोगी के बच्चे हो चुके होते हैं, जिसके कारण भावी पीढ़ी में इस ओग को होने से रोका नहीं जा सकता।
- ऐसा जरुरी नहीं है की अगर पिता या माता इस रोग से पीड़ित है तो बच्चे भी इस रोग के शिकार होंगे। यह रोग एक दो पीढ़ी के बाद भी हो सकता है। जैसे - दादा के बाद सीधा पोते या पोती को।
- यह एक वंशानुगत रोग इसे जड़ से खत्म करने की कोई औषधि इस समय उपलब्ध नहीं है।
क्या पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज का उपचार असंभव है?
नहीं, पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज का आयुर्वेदिक उपचार संभव है। अगर किडनी रोगी समय रहते आयुर्वेदिक किडनी उपचार अपनाता है तो वह इस वंशानुगत किडनी रोग से हमेशा से छुटकारा पा सकता है।