किडनी रोगी को फॉस्फोरस क्यों कम लेना चाहिए?

अल्कोहोल और किडनी रोग

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किडनी रोगी को फॉस्फोरस क्यों कम लेना चाहिए?

हमारा शरीर कई पोषक तत्वों और खनिजों की मदद से स्वस्थ बना रहता है और इन्ही की वजह से शरीर का विकास बिना किसी रूकावट के होता रहता है। हमारे शरीर के विकास के लिए सभी प्रकार के खनिज आवश्यक होते हैं, लेकिन अगर सभी खनिज सिमित मात्रा हो तो। मनुष्य के शरीर में ऐसा ही एक खनिज है फॉस्फोरस जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी आवश्यक होता है। फॉस्फोरस एक खास प्रकार का खनिज है जो कई यौगिक तत्वों (Compound) के सामान्य चयापचय के लिए के लिए खास भूमिका अदा करता है। इसकी महत्ता की बात कि जाए  तो यह ऊतक (Tissue), कोशिकाओं के नाभिक (Nucleus of cells) और साइटोप्लाज्म (Cytoplasm) की संरचना के लिए सबसे जरुरी तत्व होता है, इस खनिज के बिना यह सभी कार्य संभव ही नहीं हो सकतें। फॉस्फोरस के कार्य की बात करें तो यह हड्डियों को मजबूत करने वाला खास खनिज है। हमारे शरीर में पूरे फॉस्फोरस का 85 प्रतिशत हिस्सा हड्डियों और दांतों में मिलता है। फास्फोरस की पर्याप्त मात्रा के बिना शरीर का सामान्य रूप से काम करना असंभव होता है।

अगर हमारे शरीर में फॉस्फोरस के स्तर में गड़बड़ी आने लगे तो व्यक्ति को कई शारीरिक जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है, ऐसे में हृदय रोग, जोड़ों का दर्द, हड्डियों का रोग और थकान आदि जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर व्यक्ति हर दिन निश्चित मात्रा में फॉस्फोरस का उचित मात्रा में सेवन नहीं करता तो उन्हें और भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। फॉस्फोरस युक्त चीजों का सेवन एक स्वस्थ व्यक्ति को तो भरपूर मात्रा में करना चाहिए, लेकिन एक किडनी रोगी का इसका सेवन बहुत सिमित मात्रा में ही करना चाहिए। क्योंकि किडनी खराब होने के दौरान शरीर में रसायनों और खनिजों का संतुलन बिगड़ जाता है, जिसके चलते व्यक्ति को कई शारीरक जटिलताओं का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर रोगी के शरीर में फॉस्फोरस  की मात्रा सामान्य से ज्यादा होगी तो उसकी परेशानी और भी ज्यादा बढ़ सकती है, आज के इस लेख में हम इसी विषय पर बात करेंगे कि आखिर किडनी रोगी को फॉस्फोरस का सेवन कम क्यों करना चाहिए।

किडनी फेल्योर क्या है?

हमारी किडनी हमारे शरीर से अपशिष्ट उत्पादों को पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकाल देती है। किडनी हमारे शरीर में रक्त साफ करने के दौरान क्षार, अम्ल, अतिरिक्त शर्करा, सोडियम, पोटेशियम और भी कई गैरजरूरी  तत्वों को रक्त से बाहर निकाल देती है जो कि पेशाब के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। लेकिन जब किसी व्यक्ति की किडनी खराब हो जाती है उसके शरीर में सारे अपशिष्ट उत्पाद शरीर में ही जमा होने लगते हैं और व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना करना पड़ता है। क्रोनिक किडनी डिजीज या किडनी फेल्योर किडनी की सबसे गंभीर बीमारी है। इस किडनी की बीमारी से तकरीबन सभी लोग वाकिफ है। किडनी की इस बीमारी में रोगी की किडनी बहुत धीमे-धीमे खराब होती है। जिसमे महीनों से लेकर सालों तक का समय लग सकता है, इसी कारण सीकेडी को पकड़ पाना बहुत मुश्किल होता है, इस बीमारी को साइलेंट किलर भी कहा जाता है। किडनी फेल्योर में दोनों किडनियां काफी खराब हो चुकी होती है, जिसकी जानकारी रोगी को बहुत लम्बे समय बाद ही लगती है।

एक स्वस्थ व्यक्ति को कितनी मात्रा में फॉस्फोरस की जरूरत है?

तमाम खनिजों के साथ फॉस्फोरस हमारे शरीर के लिए जरूरी होता है, ऐसे में यह सवाल उठता है कि एक स्वस्थ व्यक्ति को कितनी मात्रा में फॉस्फोरस की आवश्यकता होती है। आपको बता दें कि हमारे शरीर में उम्र के अनुसार खनिजों की मात्रा कि मात्रा बदलती रहती है। इसके अलावा आपकी स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार भी खनिजों की मांग बदलती है। यहाँ नीचे व्यक्ति की उम्र के अनुसार फॉस्फोरस की मांग की मात्रा बताई गई है जो कि स्वस्थ और किसी अन्य खास स्थिति के अनुसार बदल भी सकती है:-

  • 0 से 6 महीने तक के शिशु के लिए – 100 मिलीग्राम फॉस्फोरस,
  • 7 से 12 महीने तक के शिशु के लिए – 275 मिलीग्राम फॉस्फोरस,
  • 1 से 3 साल तक के बच्चे के लिए – 460 मिलीग्राम फॉस्फोरस,
  • 4 से 8 वर्ष तक के बच्चे के लिए – 500 मिलीग्राम फॉस्फोरस,
  • 9 से 18 वर्ष तक के बच्चे के लिए – 1,250 मिलीग्राम फॉस्फोरस,
  • 19 वर्ष और अधिक उम्र के वयस्क के लिए – 700 मिलीग्राम फॉस्फोरस।

ध्यान दें, जो महिलाऐं गर्भवती और स्तनपान कराती हैं उन महिलाओं को सिमित मात्रा में फॉस्फोरस का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा मासिक धर्म के दौरान भी महिलाओं को फॉस्फोरस की मात्रा का खासा ध्यान रखना चाहिए।

किडनी रोगी को आखिर फॉस्फोरस का सेवन कम क्यों करना चाहिये?

किडनी खराब होने पर व्यक्ति को अपने आहार का खास ध्यान रखने की सलाह दी जाती है। क्योंकि किडनी खराब होने के चलते शरीर में रसायनों और खनिजो का संतुलन एक दम बिगड़ जाता है। ऐसे में किडनी फेल्योर रोगियों को फॉस्फोरस युक्त आहार का सेवन बहुत कम मात्रा में या बिलकुल नहीं करना चाहिए। फॉस्फोरस मुख्य रूप से किडनी को स्वस्थ रखने और उसकी कार्य क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। फॉस्फोरस किडनी के अपशिष्ट पदार्थ को पेशाब और अन्य उत्सर्जन क्रियाओं के माध्यम से उचित निवारण का कार्य करता है। इसी के साथ फॉस्फोरस उत्सर्जन द्वारा शरीर से बाहर निकाले गए सभी तरल पदार्थों और खनिजों का एक स्वस्थ संतुलन बनाये रखने में भी मदद करता है। यह पेशाब की मात्रा और आवृत्ति को बढ़ाकर शरीर में यूरिक एसिड के स्तर को संतुलित करने और विषाक्त पदार्थों को मुक्त रखने में मदद करता है। फॉस्फोरस का सेवन करने से किडनी रोगी को कई शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

अगर क्रोनिक किडनी रोगी फॉस्फोरस का सेवन करता है तो उसे निम्नलिखित समस्याएं होने का खतरा रहता है

चिंता – अगर किडनी खराब होने के दौरान रोगी फॉस्फोरस का सेवन करता है तो उसे मानसिक तौर पर चिंता हो सकती है। ऐसा होने पर रोगी के दिमाग पर दबाव पड़ना शुरू हो जाती है, जिसके चलते रोगी का उच्च रक्तचाप बढ़ सकता है। उच्च रक्तचाप बढ़ने से किडनी की कोशिकाओं और फिल्टर्स के क्षतिग्रस्त होने का खतरा रहता है।

भूख की कमी – किडनी खराब होने से रोगी को बिलकुल भूख नहीं लगती। जिसके कारण रोगी के शरीर में काफी कमजोरी देखि जा सकती है। ऐसे में अगर रोगी फॉस्फोरस का सेवन करते हैं तो उसकी भूख काफी कम होने खतरा रहता है, जिससे रोगी और भी ज्यादा कमजोर हो जायगा।

सांस लेने में दिक्कत – किडनी खराब होने पर रोगी के शरीर में तरल पदार्थों की मात्रा बढ़ने लगती है, जो छाती में जमा होने लगती है। ऐसा होने रोगी को सांस लेने में समस्या होना शुरू हो जाती है। अगर ऐसे में किडनी रोगी फॉस्फोरस का सेवन करते हैं तो उनको भी सांस लेने में समस्या हो सकती है।

अंगों का सुन्न होना – जब किसी व्यक्ति की किडनी खराब हो जाती तो उस दौरान शरीर में अपशिष्ट उत्पादों की अधिकता और तरल पदार्थों की अधिकता होने पर रोगी के शरीर के कई अंगों में सूजन आ जाती है। अगर कोई व्यक्ति किडनी खराब होने पर फॉस्फोरस युक्त आहार का सेवन करता है तो उसके शरीर के कई हिस्सों में सूजन आ सकती है।

चिड़चिड़ापन – किडनी खराब होने पर शरीर में अपशिष्ट उत्पाद जमा हो जाते हैं जिसके चलते किडनी रोगी को उत्तेजना महसूस होती और उसे त्वचा पर खुजली महसूस होने लगती है। जिसके चलते रोगी अक्सर चिडचिडा हो जाता है। अगर किडनी खराब होने पर व्यक्ति फॉस्फोरस का सेवन करता है तो उसे  चिड़चिड़ापन हो सकता है।

कमजोरी और थकान – किडनी खराब होने पर रोगी को आहार में कमी, अंगों में सूजन, कमर दर्द आदि समस्याओं ला सामना करना पड़ता है, जिसके चलते पीड़ित के शरीर में कमजोरी और थकान होती है। अगर ऐसे में रोगी फॉस्फोरस का सेवन करता है उसे थकान और कमजोरी जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

फॉस्फोरस कहा से मिलता है?

आपने ऊपर जाना की हमें किस उम्र में कितनी मात्रा में फॉस्फोरस की जरूरत होती है और किडनी रोगी को क्यों इसकी जरूरत नहीं होती। अब हम आपको बताते हैं की हमें फॉस्फोरस मिलता कहा से हैं। हमें अपना दैनिक फॉस्फोरस हमारे आहार से प्राप्त होता है जो कि निम्नलिखित है :-

सोयाबीन – सोयाबीन फास्फोरस और प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है। इसके साथ ही इसमें विटामिन बी भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। एक सामान्य कप सोयाबीन का सेवन करने से करीब 1309 मिलीग्राम फास्फोरस मिलता है, जो आपकी फास्फोरस की रोजाना जरूरत का 131 प्रतिशत होता है।

अलसी के बीज – फोस्फोरस के साथ ही अलसी के बीजों में ओमेगा-3 फैटी एसिड मौजूद होता है। एक चम्मच अलसी के बीजों से करीब 65।8 मिलीग्राम फास्फोरस प्राप्त होता है, जोकि फास्फोरस की प्रतिदिन की आवश्यकता का 7% होता है।

दालें – दालों में फास्फोरस के अलावा उच्च मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, पोटेशियम और फोलेट पाया जाता है। एक कप दाल का सेवन करने से आपको करीब 886 मिलीग्राम फोस्फोरस मिलता है, जो आपकी दैनिक जरूरत का 87 प्रतिशत होता है।

राई – एक कप राई से करीब 632 मिलीग्राम फास्फोरस ग्रहण किया जा सकता है। यह फास्फोरस की दैनिक आवश्यकता का 63 प्रतिशत भाग होता है।

मूंगफली  एक कप मंगूफली से करीब 523 मिलीग्राम फास्फोरस मिलता है। जो रोजाना जरूरत का करीब 52 प्रतिशत हिस्सा पूरा करता है।

अंडे – अंडे में फास्फोरस कड़ी अच्छी मात्रा में मिलता है, साथ ही विटामिन बी2, प्रोटीन व अन्य पोषक तत्व होते हैं। एक अंडे के सेवन से आपको करीब 84 मिलीग्राम फास्फोरस प्राप्त होता है। यह आपकी दैनिक आवश्यकता का 8 प्रतिशत हिस्सा होता है।

इसके अलावा आपको निम्नलिखित खाद्य उत्पादों से भी फॉस्फोरस प्राप्त होता है

  • चिकन
  • बादाम
  • ब्राउन राइस
  • सूरजमुखी के बीज
  • राजमा
  • पनीर
  • दही
  • आलू
  • मटर

किडनी रोगी को किन चीजों का सेवन करना चाहिए?

जो लोग किडनी फेल्योर की समस्या से जूझ रहे हैं उनको अपने आहार का खास ध्यान रखना चाहिए। उनको कुछ ऐसी चीजों को अपने आहार में शमिल करना चाहिए जिनमे फॉस्फोरस की मात्रा कम हो या फिर बिलकुल न हो, ताकि किडनी रोगी को आराम मिले। किडनी रोगी निम्नलिखित चीजों को अपने चिकित्सक की सलाह से बड़े आराम से अपने आहार में शामिल कर सकते हैं :-

किडनी रोगी के लिए शुद्ध शाकाहारी आहार सामग्री

फलों में :-

  • सेब
  • अनानास
  • नाशपाती
  • अमरुद (बिना बीज के)
  • लाल अंगूर
  • ब्लूबेरी
  • क्रैनबेरी
  • पपीता (अगर मधुमेह नहीं है तो)

सब्जियों में :-

  • लौकी
  • टिंडा
  • परवल
  • गाजर
  • करेला
  • उबले आलू
  • तुरई
  • हरा कद्दू
  • लाल शिमला मिर्च
  • मूली
  • खीरा
  • हरी मिर्च
  • लहसुन

मसालें :-

  • सेंधा नमक
  • हल्दी
  • जीरा
  • धनिया पाउडर
  • दालचीनी (शुरूआती समय में)

अनाज :-

  • गेंहू, चावल (केवल सफ़ेद चावल) और धूलि मूंग दाल

तेल :-

  • सरसों और जैतून का तेल

किडनी रोगी को अपने आहार में ऊपर बताई गई चीजों को कितनी मात्रा में अपने आहार में शामिल करना है इस बारे में वह अपने चिकित्सक से चर्चा करें। क्योंकि हर किडनी रोगी का आहार उसके स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।

कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार

आयुर्वेदिक उपचार ही ऐसा उपचार है जिसकी मदद से हम किसी भी प्रकार के रोग को जड़ से खत्म कर सकते हैं। आयुर्वदिक पद्धत्ति द्वारा उपचार कराते हुए हम इस बात से निश्चित होते हैं कि यह दवाएं अंग्रेजी दवाओं की तरह हमारे शरीर को नुकसान नहीं पहुँचने वाली। क्योंकि अयुर्वेदिक दवाओं में किसी तरह के रासायनिक उत्पाद का प्रयोग नहीं होता, बल्कि आयुर्वेद में सभी उपचार प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से किया जाता है। आयुर्वेद के सहायता से किडनी फेल्योर का सफल उपचार किया जा सकता है। इस समय देशभर में अनेक आयुर्वेदिक उपचार केंद्र उपलब्ध है, कर्मा आयुर्वेदा एक ऐसा किडनी उपचार केंद्र है जो पूरी तरह से आयुर्वेदिक दवाओं से किडनी फेल्योर का उपचार करता है।

कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना वर्ष 1937 में हुई थी। तभी से कर्मा आयुर्वेदा किडनी रोगियों का इलाज करते आ रहा हैं। वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन इसका नेतृत्व कर रहे हैं। आपको बता दें कि आयुर्वेद में डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना किडनी की इलाज किया जाता है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता हैं। डॉ. पुनीत धवन ने  केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने 48 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। कर्मा आयुर्वेदा किडनी ठीक करने को लेकर चमत्कार के रूप में साबित हुआ हैं।

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