बच्चों में किडनी फेल्योर और मूत्र संक्रमण को कैसे समझे?

अल्कोहोल और किडनी रोग

dr.Puneet
+91
OR CALL
9971829191
बच्चों में किडनी फेल्योर और मूत्र संक्रमण को कैसे समझे?

बच्चों का शरीर पुष्प की भांति नाजूक होता है, जिसकी वजह से बच्चे बड़ी आसानी से किसी भी बीमारी के चपेट में आ जाते हैं, जिसमे विशेषकर बुखार, खांसी-जुखाम या किसी प्रकार का संक्रमण जैसी समस्याएँ हो सकती है। लेकिन बच्चों में यूरिन इन्फेक्शन यानि मूत्र संक्रमण भी बड़े स्तर पर देखा जाता है, बड़ों के मुकाबले बच्चों में यह बीमारी सबसे ज्यादा होती है। यह गंभीर बीमारी विशेषकर 10 से कम वर्ष के बच्चों को होती है। इस बीमारी की चपेट में सबसे ज्यादा लडकियाँ आती है, प्रतिशत में बात करे तो 8-9 प्रतिशत लड़कियां इस बीमारी की शिकार होती है और 5 प्रतिशत लड़के इस बीमारी की चपेट में आते हैं। बच्चों में आई इस समस्या के कारण उनकी किडनी खराब होने का खतरा बना रहता है। यह दोनों समस्याएं परसपर एक दुसरे से जुड़ी हुई होती है, अगर बच्चे को मूत्र पथ संक्रमण है और उसका उपचार नहीं किया जा रहा, तो यह संभव है कि उसकी किडनी खराब हो सकती है। आज के इस लेख में हम में इन्हीं दोनों विषयों के बारे में चर्चा करेंगे।

मूत्र पथ संक्रमण क्या है और यह क्यों होता है?

सामान्य तौर पर जब किसी व्यक्ति या बच्चे को पेशाब करते समस्या जलन हो, दर्द या आम दिनों से अलग किसी अन्य समस्या का सामना करना पड़े, तो उस स्थिति को मूत्र पथ संक्रमण कहा जाता है। बच्चों में मूत्र संकर्मण के वैसे तो कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण है बैक्टीरिया यानि जीवाणु। जब कोई जीवाणु शरीर में गुदा (ANAL), लिंग या योनी के रास्ते शरीर में प्रवेश कर जाए तो उससे मूत्र पथ संक्रमण हो जाता है। इसके अलावा निम्न वर्णित वजहों से बच्चों में मूत्र पथ संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है –

  • बच्चों के मलत्याग करने के बाद ठीक तरह से साफ ना करने की वजह से मूत्र पथ संक्रमण हो सकता है। इसके अलावा गुदा को पीछे से आगे की ओर साफ करने की आदत के कारण से भी मूत्र पथ संक्रमण हो सकता है।
  • बहुत से बच्चे सोते समय बिस्तर गीला करते हैं, उस दौरान पेशाब पूरी तरह बाहर नहीं आता और बचा हुआ पेशाब मूत्राशय से वापिस किडनी की ओर चला जाता है, जिसके कारण मूत्र संक्रमण हो जाता है।
  • लड़कियों की मुत्रवाहिनी की लम्बाई, लड़कों की मुत्रवाहिनी के मुकाबले काफी छोटी होती है। जिसके कारण वह मलनलिका के एकदम समीप होती है। इसकी वजह से मल मुत्रवाहिनी या मुत्रनालिका में जाने की आशंका रहती है, ऐसा होने से मूत्र पथ पर संक्रमण हो जाता है। (लड़कों में मूत्र संक्रमण की आशंका लड़किओं से कम होती है। खास कर जिन लड़कों का खतना किया गया हो उन लडकों को मूत्र संक्रमण होने की संभावना बहुत ही कम हो जाती है।)
  • मुत्रवाहिका में वाल्व उत्पन्न होने के कारण बच्चों को पेशाब करने में परेशनी हो जाती है। जिससे उनको मूत्र संकर्मण होने का खतरा रहता है, इसे पोस्टीरियर युरेटेरिक वाल्व के नाम से जाना जाता है।
  • मूत्र पथ पर पथरी होने के कारण से भी मूत्र संक्रमण हो सकता है।
  • बच्चों के आसपास विशेषकर शौचालय में ठीक से साफ सफाई ना होने के कारण से भी मूत्र विकार हो सकता है।
  • लड़कियों के ज्यादा झागदार पानी में नहाने से भी मूत्र पथ संक्रमण हो सकता है।
  • यदि बच्चे ज्यादा टाइट कपडें पहने तो भी मूत्र पथ संक्रमण होने का खतरा रहता है।
  • टॉयलेट सीट से भी मूत्र पथ संक्रमण हो सकता है, क्योंकि टॉयलेट सीट पर करोडो की संख्या में जीवाणु होते हैं जो कि शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और पेशाब से जुड़ी समस्या उत्पन्न होने लगती है।
  • अधिक देर तक पेशाब रोकने के कारण मूत्र संक्रमण होता है, बच्चे अक्सर पेशाब रोकते हैं।
  • शरीर में पोटेशियम की कमी के चलते भी पेशाब से जुड़ी समस्या हो सकती है।
  • किसी कारण सर पर चोट लगने के कारण से भी यह गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • बच्चे के कम पानी पीने की आदत या ज्यादा जरूरत से ज्यादा पानी पीने से भी मूत्र पथ संक्रमण हो सकता है।
  • अगर बच्चा मधुमेह से पीड़ित है तो भी उसको मूत्र पथ संक्रमण हो सकता है।

इसके अलावा बच्चों में ई. कोलाई नाम के जीवाणु के कारण से भी मूत्र संक्रमण हो सकता है। यह एक किस्म का जीवाणु है जो कि हमारे शरीर में पहले से ही मौजूद होता है। लेकिन यह बहार से भी हमारे शरीर में प्रवेश कर लेता है। ई. कोलाई का पूरा नाम इशचेरिचिया कोलाई है। यह योनी और गुदा के रस्ते शरीर में प्रवेश करता है, जिसके कारण मूत्र पथ पर संक्रमण होने का खतरा रहता है।

बच्चों की किडनी क्यों खराब होती है?

बड़ों और बच्चों में किडनी खराब होने के अलग-अलग कारण होते हैं। जहां बड़ों की किडनी उनकी गलत आदतों और बिगड़ती लाइफस्टाइल के कारण खराब होती है, वहीं बच्चों की किडनी कुछ अलग कारणों के चलते खराब होती है जो कि निम्नलिखित है :–

यूरिनरी ट्रैक्ट या मूत्र पथ में संकर्मण के कारण

बड़ों के साथ-साथ बच्चों में भी मूत्र पथ संक्रमण देखा जाता है। बड़ों में इस बात का पता आसानी से चल जाता है, लेकिन बच्चों में इस बात की जानकारी देरी से लगती है। क्योंकि बच्चे अपनी समस्या को बताने में असमर्थ होते हैं, जिसके कारण यह बीमारी बढती जाती है और किडनी खराब हो जाती है। मूत्र पथ का सीधा संबंध किडनी से होता है, अगर मूत्र पथ पर किसी भी प्रकार का संक्रमण होगा तो उसका सीधा असर किडनी पर जरुर पड़ेगा। इसके अलावा बच्चों की किडनी बड़ों की तुलना पूरी तरह से विकसित नहीं होती जिसके चलते भी बच्चों की किडनी जल्दी खराब हो जाती है। आपको बता दें कि  एक किडनी को पूरी तरह से विकसित होने में तकरीबन 11 साल का वक्त लगता है। अगर बच्चे को संतुलित आहार के साथ संतुलित जीवन प्राप्त है तो उसकी किडनी जल्दी ही विकसित हो जाती है।

किडनी संक्रमण के कारण

सोते समय कुछ बच्चे बिस्तर गिला करने के आदि होते हैं, ऐसा करने पर पेशाब पूरा बाहर नहीं निकलता और बाकी पेशाब किडनी में वापिस चला जाता है। ऐसा होने पर किडनी संक्रमण हो जाता है और समय के साथ उनकी किडनी भी खराब हो सकती है। यह समस्या जन्म से ही होती है जो कि योवन तक साथ रह सकती है। वैज्ञानिक भाषा में इसे वेसिको युरेटेरिक रेफलक्स कहा जाता है।

गर्भावस्था के दौरान

बच्चों की किडनी गर्भ में सबसे ज्यादा संक्रमित होती है। गर्भ में बच्चों की किडनी खराब नहीं होती बल्कि संक्रमित होती है। असल में बच्चों की किडनी माँ के कारण संक्रमित होती है। अगर माँ को मधुमेह की शिकायत है, तो उसका असर बच्चे पर भी जरुर पड़ेगा। शिशु पर इसका दो तरह से प्रभाव पड़ता है,  पहला – शिशु को जन्म से ही मधुमेह का खतरा हो सकता है और दूसरा – शिशु की किडनी संक्रमित हो सकती है। इसमें दोनों के होने की आशंका रहती है।

अगर शिशु की किडनी संक्रमित होती है, तो उसे शुरुआत में ही काबू में किया जा सकता है। शिशु की किडनी पूरी तरह से विकसित नहीं होती, इसलिए संक्रमण के कारण उसकी किडनी खराब होने में ज्यादा समय नहीं लगता। अगर माँ मधुमेह की रोगी है, तो शिशु की किडनी की जांच करवा कर इसका उपचार किया जा सकता है। साथ ही गर्भावस्था के दौरान 16वें सप्ताह में माँ की मधुमेह की जांच कर बच्चे को इस रोग से बचाया जा सकता है।

पॉलीसिस्टिक किडनी रोग

बच्चों में किडनी की बीमारी वंशानुगत भी हो सकती है। इसे आम भाषा में पीकेडी यानि पॉलीसिस्टिक किडनी रोग। यह रोग हज़ार लोगो में से किसी एक को ही होता है। इस रोग में बच्चे को उसके माता पिता से किडनी रोग मिलता है।

अस्वच्छ शौचालय

अगर आप शौचालय की ठीक से सफाई नहीं करते हैं, तो आपके बच्चे की किडनी खराब होने का खतरा रहता है। टॉयलेट सीट पर असंख्य खतरनाक जीवाणुओ का बसेरा रहता है, यह खतरनाक जीवाणु करोड़ों की संख्या में गुदा मार्ग (ANAL) से शरीर में पहुँच जाते हैं और संक्रमण पैदा कर देते हैं। जिससे बच्चों को पेट से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसमें हैजा, उल्टी, बुखार, कुपोषण, पेट में ऐठन, शरीरिक कमजोरी आदि समस्याएँ हो जाती है और आखिर में इन सभी रोगों के कारण बच्चे की किडनी खराब हो जाती है। इसलिए शौचालय को हर रोज़ अच्छे से साफ़ करना चाहिए।

बच्चों की किडनी खराब होने और मूत्र संक्रमण होने के क्या लक्षण दिखाई देते हैं?

किडनी चाहे बच्चे की खराब हो या फिर किसी बड़े व्यक्ति की इसके लक्षण शरीर में जरुर दिखाई देते हैं, जिनकी पहचान कर इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। किडनी खराब होने और मूत्र संक्रमण होने के लक्षण बच्चों और बड़ों में अलग होते हैं।

बच्चों में किडनी खराब होने के निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं

  1. आँखों के आसपास सूजन
  2. हड्डियों का अधुरा विकास या किसी प्रकार की विकृति
  3. बार बार प्यास लगना
  4. पुरे दिन में चार बार से कम पेशाब आना
  5. पेशाब की धार कमजोर होना
  6. पाचन तन्त्र खराब होना
  7. दिन में 12 बार से ज्यादा पेशाब आना
  8. सोते समय पेशाब करना (सोते समय पेशाब करने से सारा पेशाब बहार नहीं आता आधे से ज्यादा पेशाब वापिस किडनी में चला जाता है)
  9. लम्बे समय तक लाल या फिर केसरी रंग का पेशाब आना
  10. पेशाब के समय दर्द महसूस होना
  11. मूत्र पथ पर किसी प्रकार का संक्रमण
  12. पेशाब के दौरान खून आना

बच्चों में मूत्र संक्रमण होने के लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. पेशाब के दौरान खून
  2. पेशाब के दौरान लिंग में दर्द महसूस होना
  3. लाल या केसरी रंग का पेशाब आना
  4. पेशाब के दौरान पीठ के निचले हिस्से और नाभि में तेज़ दर्द होना
  5. दुर्गन्ध वाला पेशाब
  6. गढ़ा पेशाब आना (यह मधुमेह की शिकायत भी हो सकती है)
  7. पेशाब की धार कमजोर होना
  8. बार बार पेशाब करना
  9. पेशाब करते समय तेज़ दर्द महसूस होना
  10. नवजात शिशु अगर पेशाब करते समय रोने लगे तो ध्यान दें
  11. पेशाब होने की इच्छा होने लेकिन पेशाब का नहीं आना
  12. नियमित रूप से सोते समय बिस्तर गिला करना
  13. पेशाब का अपने आप निकल जाना
  14. भूख की कमी
  15. चिडचिडापन
  16. बार-बार बुखार होना
  17. कमजोरी
  18. हड्डियों में विकार
  19. दस्त लगाना
  20. बार-बार उल्टियाँ होना
  21. अधिक दवाओं का सेवन

इन दोनों समस्याओं से कैसे निजात पाई जा सकती है?

आयुर्वेदिक उपचार की मदद से किडनी फेल्योर और मूत्र संक्रमण से छुटकारा पाया जा सकता है। आप आयुर्वेदिक उपचार के लिए कर्मा आयुर्वेदा में संपर्क कर सकते हैं। कर्मा आयुर्वेदा’ आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर की जानलेवा बीमारी का सफल उपचार करता है। कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना 1937 में धवन परिवार द्वारा की गयी थी और वर्तमान समय में इसकी बागड़ोर डॉ. पुनीत धवन संभाल रहे हैं। डॉ. पुनीत धवन एक जाने माने आयुर्वेदिक चिकित्सक है, इन्होने अब तक 48 हज़ार से भी ज्यादा लोगो की खराब किडनी को पुनः ठीक किया है। कर्मा आयुर्वेद में बिना डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना ही रोगी की किडनी ठीक की जाती है।

लेख प्रकाशित