शकरकंद जिसे हम स्वीट पोटैटो को नाम से भी जानते हैं। आप सब ने मीठा आलू यानि शकरकंद तो जरूर खाया होगा, लेकिन इसके फायदे या नुकसान के बारे में सोचा है। लाल किस्म में मीठे आलू की सुगंध में एक विशेषता है जो उबलने पर और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। मीठे आलू के मांस का रंग अधिकतर लाल या नारंगी ही होता है जो इसको अधिक सुंगधित बना देता है। इसमें मौजूद बीटा-कैरोटीन की उपस्थिति की वजह से होता है।
शकरकंद के फायदे या नुकसान
- डायबिटीज – शकरकंद का ग्लाइसीमिक इंडेक्स स्केल कम होने की वजह से यह डायबिटीज रोगियों के रक्त शर्करा को कम करने और इंसुलिन रोजिस्टेंस को सामान्य रखने में मदद करता है। साथ ही रक्त शर्करा को कम करने के लिए सोडियम इनटेक लेने की सलाह दी जाती है, लेकिन शरीर में पोटेशियम लेने का सामान्य रखना भी जरूरी होता है, जो शकरकंद काफी अच्छी तरह से करता है। आप 200 उबले शकरकंद में 27 फीसदी पोटेशियम होता है।
- ह्रदय रोग – शकरकंद में विटामिन बी-6 की भरपूर मात्रा होती है जो होमोसिस्टीन (Homocysteine) केमिकल के लेवल को कम करने में मदद करते हैं। होमोसिस्टीन एक प्रकार का एमीनो एसिड है जिसकी अधिकता से ह्रदय रोग हो सकता है। पोटेशियम में समृद्ध शकरकंद दिल की धड़कन और तंत्रिका संकेतों को नियंत्रित करने में मदद करता है। पोटेशियम किडनी के कार्यों को नियंत्रित करने और सूजन को कम करने और मांसपेशियों में अकड़न को समाप्त करने में भी मदद करते हैं।
- हड्डियां मजबूत करें – हड्डियों के लिए कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटेशियम कारगर साबित होते है। साथ ही विटामिन ए को भी हड्डियां के स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। शकरकंद को मैग्नीशियम और पोटेशियम का अच्छा स्त्रोत है। शकरकंद में विटामिन ए भी पाया गया है। इस प्रकार ये मजबूत हड्डियों के फायदेमंद शकरकंद माना गया है।
- कैंसर की समस्या – हर युवकों को बीटा-कैरोटिन की प्रचुरता वाला फुड लेने की लिए कहा जाता है, क्योंकि यह प्रोस्टेट कैंसर से बचाव करने में मदद करता है। शकरकंद में बीटा-कैरोटीन की अच्छी मात्रा होती है, यह कोलोन कैंसर को फैलने से भी बचाता है। शकरकंद रोग प्रतिरोधक क्षमता को अच्छा बनाता है, इसी के साथ शकरकंद विटामिन सी और बीटा-कैरोटीन जैसे काफी असरदार पोषक तत्व होते हैं। यह दोनों ही कई प्रकार के रोगों से शरीर की रोकथाम करते हैं।
- सांस संबंधी समस्याओं के लिए – सांस से संबंधी रोग से परेशान लोगों के लिए भी शकरकंदी फायदेमंद हो सकती है। यह मीठा आलू कफ को दूर कर ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों से बचा सकता है। एक शोध के मुताबिक शकरकंद में बीटा-कैरोटीन पाया जाता है, जो सांस से संबंधी परेशानियों से छुटकारा दिलने में काफी फायदेमंद है।
अगर आप किसी न किसी बीमारी से पीड़ित है तो अपने डॉक्टर की सलाह अनुसार ही शकरकंद का सेवन करें।
किडनी रोगी न खाएं शकरकंद
यदि आपकी सही तरह से काम नहीं कर रही है या क्रोनिक किडनी डिजीज के रोग से पीड़ित हैं, तो शकरकंद न खाएं, क्योंकि इसमें पोटेशियम की अच्छी खासी मात्रा होती है। साथ ही जब किडनी रक्त में मिले पोटेशियम को अलग नहीं कर पाती है, तो तब यह पोटेशियम शरीर के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है।
किडनी में खराबी का आना
हमारे शरीर में किडनी सबसे नाजुक और महत्वपूर्ण अंगों में आती है। अगर इसका सही से ध्यान न रखें, तो इससे व्यक्ति की जान भी जा सकती है। अधिकतर लोग सोचते हैं कि ज्यादा शराब पीने से किडनी खराब होने लगती है लेकिन ऐसा नहीं है किडनी में खराबी के बहुत से कारण हो सकते हैं।
- किडनी हमारे शरीर के लिए बहुत से जरूरी कामों को बेहद खामोशी से करती है। इसलिए इन्हें सुरक्षित रखना चाहिए और ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए, जिससे किडनी को नुकसान पहुंचे।
- जब किडनी को नुकसान पंहुचता है और इसकी कार्यक्षमता में कमी आती है, तब तक स्थिति गंभीर हो चुकी होती है, क्योंकि किडनी अपनी कैपेसिटी के 20% लेवल तक पंहुचने पर भी वह अपना काम काफी अच्छे से करती है। इसलिए किडनी से जुड़े रोगों को “साइलेंट डिजीज” कहा जाता है।
इससे पहले किडनी को हुए नुकसान हद से बाहर हो जाएं, तो हमें किडनी की सेहत बनाएं रखने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए।
साथ ही किडनी की बीमारी के चलते लाखों लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं, लेकिन अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी तब होती है जब बहुत देर हो चुकी होती है। किडनी की बीमारी के लक्षण उस वक्त उभरकर सामने आते हैं। जब किडनी 60 से 65% डैमेज हो चुकी होती है, इसलिए इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है। किडनी शरीर से विषाक्त पदार्थों को छानकर यूरिन के माध्यम से शरीर से बाहर निकालती है, लेकिन मधुमेह जैसी बीमारियों, खराब जीवनशैली और कुछ दवाओं की वजह से किडनी के ऊपर बुरा प्रभाव पड़ता है। मधुमेह और उच्च रक्तचाप किडनी फेल होने के सबसे बड़े कारण है। मधुमेह के 30 से 40% मरीजों की किडनी खराब होती है। इनमें से 50% रोगी ऐसे होते हैं, जिन्हें बहुत देर से इस बीमारी का पता चलता है और फिर उन्हें डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है।
किडनी की बीमारी के लक्षण
- मूत्र कम होना
- अधिक थकान रहना
- मूत्र में रक्त या झाग आना
- भूख कम लगना
- चिड़चिड़ापन रहना
- एकाग्रता में कमी
- एनीमिया (शरीर में रक्त की कमी)
- कमजोरी रहना
- सांस लेने में दिक्कत होना
- मतली और उल्टी होना
- सीने में दर्द होना
- हाथ-पैर और टखने में सूजन आना
- अधिक समस्या बढ़ने पर चेहरा सूज जाना
- पीठ में दर्द होना
अगर आपको शरीर में कुछ इस तरह के संकेत नजर आते हैं, तो समझ जाइए कि आप किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं। साथ ही तुरंत इस बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज शुरू करें।
किडनी की बीमारी में रोगियों के लिए आहार
जो लोग स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी तरह की खतरनाक जटिलता का सामना करते हैं, उन्हें अपने आहार में आवश्यक बदलाव करने के लिए कहा जाता है। यह एक कठिन कार्य हो सकता है, लेकिन दवाओं की प्रभावशीलता को बढ़ाने और तेजी से हुई क्षति को ठीक करने के लिए काम करने की आवश्यकता है। यह कुछ आहार प्रतिबंध है –
- अपने समग्र प्रोटीन सेवन को प्रतिबंधित करें
- सोडियम या नमक को सीमित मात्रा में लें
- ऐसे मौसम से बचें जिसमें नमक की मात्रा अधिक हो
- घर का बना खाना खाने की कोशिश करें
- जैतून या नारियल के तेल जैसे स्वस्थ तेलो में भोजन तैयार करें
- अपने रात के खाने में नमक लेना छोड़ दें
- बिना किसी नमक के ताजी या
- डिब्बाबंद सब्जियों का सेवन करें
किडनी में खराबी आने पर अपनाएं आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेद 5 हजार वर्ष पहले भारत में शुरू हुआ था। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति लंबे समय के जीवन का विज्ञान है और दुनिया में स्वास्थ्य की देखभाल की सबसे पुरानी प्रणाली है। प्राचीन काल से ही आयुर्वेद ने दुनिया भर में मानव जाति की संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक प्रणाली है जो आपके शरीर का सही संतुलन प्राप्त करने के लिए वात, पित्त और कफ को सीमित करने पर निर्भर करती है। आयुर्वेद प्राकृतिक जड़ी-बूटियों में पुनर्नवा, गोखुर, वरुण, कासनी और शिरीष जैसी आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है जो किडनी मरीजों को ठीक करने में बहुत सहायता करता है।
बता दें कि, आयुर्वेद को चिकित्सा की सबसे प्राचीन और प्रमाणिक उपचार माना जाता है, जो आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है। स्वस्थ या रोगग्रस्त व्यक्तियों के लिए आयुर्वेद का जो समग्र द्दष्टिकोण है, किसी भी अन्य चिकित्सा विज्ञान से तुलना नहीं की जा सकती है। व्यक्ति को रोग से बचाना और स्वस्थ बनाए रखना आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य रहा है।
आयुर्वेदिक किडनी उपचार केंद्र
भारत का प्रसिद्ध किडनी उपचार केंद्र कर्मा आयुर्वेदा, जहां किडनी की बीमारियों का आयुर्वेदिक इलाज किया जाता है। यह सन् 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इसका नेतृत्व डॉ. पुनीत धवन कर रहे हैं। साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने सफलतापूर्वक और आयुर्वेदिक किडनी उपचार की मदद से 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके उन्हें रोग मुक्त किया है, वो भी किडनी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। आयुर्वेदिक उपचार में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे पुनर्नवा, शिरीष, पलाश, कासनी, लाइसोरिस रूट और गोखरू आदि। यह जड़ी-बूटियां रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करती है।