हम सभी लोग इस बात से भली तरह वाकिफ है कि किडनी हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग है, लेकिन यह हमारे शरीर का सबसे संवेदनशील अंग भी है. किडनी का कार्य किसी भी रोग या समस्या से प्रभावित हो जाता है, जिससे किडनी खराब होने की संभावना बढ़ जाती है. आज के इस लेख में हम एक ऐसे ही रोग के बारे में जानेंगे जिससे किडनी खराब हो जाने की संभवना काफी बढ़ जाती है.
सिस्टिनोसिस क्या है?
सिस्टिनोसिस किडनी से जुड़ा वंशानुगत चयापचय, लाइसोसोमल संचय रोग है. किडनी से जुड़े इस दुर्लभ रोग में कोशिकाओं के भीतर अमीनो एसिड (सिस्टीन) शरीर में जमा होने लगता है, जिसकी वजह से अतिरिक्त सिस्टीन कोशिकाओं को नुकसान पहुँचने लगता है. कोशिकाओं में बने सिस्टीन के कारण शरीर में क्रिस्टल बनने लगते है जो कि शरीर के कई अंगों के साथ ऊतकों में समस्याएं पैदा कर देते हैं, जिसमे किडनी, आंख, मांसपेशियों, अग्न्याशय जैसे कुछ जरूरी अंग शामिल है। यह दुर्लभ बीमारी गुणसूत्र 17p13 में सीटीएनएस जीन में उत्परिवर्तन की वजह से होती है।
सिस्टिन संचय से किडनी की विफलता, मांसपेशियों की क्षति, निगलने में कठिनाई, मधुमेह, हाइपोथायरायडिज्म, सेरेब्रल शोष, फोटोफोबिया, अंधापन, कॉर्नियल अल्सरेशन, वेंटिलेटरी हानि जैसी कई गंभीर बीमारियाँ हो सकती है। इस बीमारी की शुरुआत अक्सर बचपन में होती है, समय पर उचित उपचार ना मिलने के कारण यह समस्या अंत में किडनी की बीमारी का रूप ले लेती है, जिसके चलते बच्चे की मौत भी हो जाती है। अगर अमीनो एसिड का संचय केवल एक किडनी तक सिमित हो तो, किडनी प्रत्यारोपण की मदद से दूसरी किडनी को प्रभावित होने से बचाया जा सकता है। हालांकि, अमीनो एसिड सिस्टीन का संचय केवल किडनी तक ही सिमित नहीं रहता। आयुर्वेदिक उपचार की मदद से भी इस स्थिति से छुटकारा पाया जा सकता है.
सिस्टिनोसिस रोग कितने प्रकार का होता है?
सिस्टिनोसिस तीन प्रकार का होता है जिन्हें आयु के आधार पर निम्न प्रकारों में विभाजित किया जाता है :-
- पहले सिस्टिनोसिस को नेफ्रोपैथिक सिस्टिनोसिस या शिशु नेफ्रोपैथिक सिस्टिनोसिस (nephropathy cystinosis) के नाम से जाना जाता है। अन्य सिस्टिनोसिस के मुकाबले सिस्टिनोसिस की यह स्थिति सबसे गंभीर मानी जाती है क्योंकि यह 3 माह से 6 माह के बीच के शिशुओं को ही होती है. नेफ्रोपैथिक सिस्टिनोसिस में रोगी की स्थिति काफी तेजी से बिगड़ने लगती है जिसके चलते दस वर्ष की उम्र से पहले ही बच्चे की किडनी खराब होने लगती है। लेकिन बच्चे को ठीक से उपचार मिलता रहे तो इस स्थिति से बचा जा सकता है। लेकिन इससे भी कोई खास फायदा होता नज़र नहीं आता क्योंकि इससे केवल किडनी देरी से खराब होती है, ना की ठीक छुटकारा मिलता है। अगर उचित उपचार और उचित आहार के साथ बेहतर जीवनशैली प्रदान की जाए तो इससे काफी हद तक बचा जा सकता है।
- अमीनो एसिड सिस्टीन संचय होने के कारण होने वाले रोग के दुसरे रूप को मध्यवर्ती सिस्टिनोसिस (intermediate cystinosis) के नाम से जाना जाता है। मध्यवर्ती सिस्टिनोसिस के जोखिम कारक, कारण और लक्षण नेफ्रोपैथिक सिस्टिनोसिस के समान हैं। केवल इसके होने की उम्र अलग होती है, यह 8 से 20 वर्ष की आयु के बीच होता है।
- सिस्टिनोसिस के तीसरे रूप को गैर-नेफ्रोपैथिक सिस्टिनोसिस (non-nephropathic cystinosis) या ऑकुलर सिस्टिनोसिस (Ocular Cystinosis) के नाम से जाना जाता है। यह बाकी दोनों सिस्टिनोसिस का सबसे हल्का रूप माना जाता है, यह विशेषकर वयस्कता के दौरान होता है। गैर-नेफ्रोपैथिक सिस्टिनोसिस में किडनी खराब होने की आशंका काफी कम होती है, लेकिन अगर उपचार ना मिले तो किडनी तेजी से खराब होने लगती है।
सिस्टिनोसिस रोग जैसी गंभीर बीमारी होने के पीछे क्या कारण है?
आपने ऊपर सिस्टिनोसिस जैसी गंभीर बीमारी के तीनों प्रकारों के बारे में विस्तार से जाना, चलिए अब बात करते है इसके होने के पीछे के कारण के बारे में।
सिस्टिनोसिस होने के पीछे सीटीएनएस जीन (CTNS gene) में आया परिवर्तन होता है। यह तब होता है जब शिशु को प्रत्येक माता-पिता से 2 उत्परिवर्तित जीन आपस में मिलते हैं। इस प्रक्रिया को ऑटोसोमल रिसेसिव प्रक्रिया के नाम से जाना जाता है। यदि माता या पिता में से कोई एक पहले से इस दोष से जूझ रहा है और एक सामान्य है, तो दोष वाला व्यक्ति रोग का वाहक बन जाता है और आमतौर पर वाहक को इस बारे में कोई जानकारी नहीं होती। एक दोषपूर्ण साथी के कारण हुई संतान को सिस्टिनोसिस होने की संभावना 25% तक होती है।
यदि माता और पिता दोनों दोषपूर्ण जीन रखते हैं, तो उनके मेल से होने वाली संतान को सिस्टिनोसिस होने की 50% तक आशंका होती है। यह जोखिम महिलाओं के प्रत्येक गर्भधारण के दौरान एक समान बना रहता है। साथ ही, उस विशिष्ट लक्षण के लिए आनुवंशिक रूप से सामान्य होने वाले बच्चे के होने की अन्य 25% संभावना है। इस विकार से प्रभावित होने के लिए पुरुषों और महिलाओं को समान जोखिम होता है, साथ ही सिस्टिनोसिस जैसी गंभीर बीमारी के साथ पैदा होने के पीछे माता और पिता दोनों जिम्मेवार माने जाते हैं।
क्या सिस्टिनोसिस होने पर इसके लक्षण दिखाई देते हैं?
हर बीमारी होने पर उसके लक्षण जरूर दिखाई देते हैं, लेकिन सिस्टिनोसिस के लक्षण सिस्टिनोसिस से अलग होते हैं जो कि हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं और सभी लक्षण समय के साथ बढ़ते जाते हैं। सिस्टिनोसिस में दिखाई देने वाले लक्षण निम्नलिखित हैं :-
नेफ्रोपैथिक सिस्टिनोसिस
नेफ्रोपैथिक सिस्टिनोसिस से गुजरने वाले शिशु में अक्सर छोटे कद, रेटिना में परिवर्तन (रेटिनोपैथी), प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता (फोटोफोबिया), उल्टी, सूजन, भूख न लगना और कब्ज होता है। इन बच्चों में फैंकोनी सिंड्रोम की समस्या के चलते किडनी के कार्य में परेशानी आ सकती है। फैंकोनी सिंड्रोम के लक्षणों में अत्यधिक प्यास, अत्यधिक पेशाब, और कुछ में रक्त पोटेशियम (हाइपोकैलिमिया) भी हो सकता हैं।
मध्यवर्ती सिस्टिनोसिस
इस सिस्टिनोसिस से गुजरने वाले बच्चों में सिस्टिन क्रिस्टल आंख के कॉर्निया, कंजाक्तिवा और अस्थि मज्जा में जमा होने लगते है, जिससे रोगी को कई शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में किडनी का कार्य सामान्य रूप से नहीं होता है और साथ ही फैंकोनी सिंड्रोम भी विकसित होने की संभावना बनी रहती है।
गैर-नेफ्रोपैथिक सिस्टिनोसिस
सिस्टिनोसिस का यह रूप वयस्कता में शुरू होता है और इसके परिणामस्वरूप किडनी की कमजोर नहीं होती है। सिस्टिन क्रिस्टल आंख के कॉर्निया और कंजाक्तिवा में जमा होते हैं और प्रकाश (फोटोफोबिया) के प्रति संवेदनशीलता मौजूद होती है।
सिस्टिनोसिस का क्या कोई उपचार है?
नहीं, फ़िलहाल सिस्टिनोसिस जैसे गंभीर रोग से बचने का कोई सफल उपचार मौजूद नहीं है। हाँ, लक्षणों की पहचान कर कुछ चिकित्सीय जांचों से इसकी पुष्टि करने के बाद औषधियों द्वारा इसके विकास को रोका या धीमा किया जा सकता है, जिसमे आयुर्वेद आपकी अच्छे से मदद करता है। अगर अमीनो एसिड सिस्टीन का संचय केवल एक किडनी तक सिमित रहे, तो किडनी प्रत्यारोपण कर इसके विकास से काफी हद तक बचा जा सकता है। साथ ही उचित आहार और दिनचर्या में बदलाव कर इसके लक्षणों को आगे बढ़ने से बचा जा सकता है। ऐसी बीमारी से गुजरने वाले बच्चे को योग साधना को जरूर अपनाना चाहिए, साथ ही उन्हें ऐसी किसी भी चीज़ का सेवन नहीं करना चाहिए जिससे उनकी किडनी पर नकारात्मक प्रभाव पड़े।
ध्यान दें, “कर्मा आयुर्वेदा किसी भी किडनी रोगी को कभी-भी किडनी प्रत्यारोपण करवाने की सलाह नहीं देता. कर्मा आयुर्वेदा केवल आयुर्वेदिक उपचार में विश्वास रखता है, जिससे किडनी रोग को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है.”
कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार
कर्मा आयुर्वेद में प्राचीन भारतीय आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर का इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना 1937 में धवन परिवार द्वारा की गयी थी। वर्तमान में इसकी बागडौर डॉ. पुनीत धवन संभाल रहे हैं। आपको बता दें कि डॉ. पुनीत धवन ने ना केवल भारत में बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है, वो भी बिना किडनी डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट की सहायता के बिना। आपको यह जानकार हैरानी होगी डॉ. पुनीत धवन ने आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से 48 हजार से भी ज्यादा किडनी रोगियों का इलाज किया हैं।