बढ़ती जीवनशैली की बीमारियों के प्रसार के साथ भारत में क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। चिकित्सकों का कहना है कि बढ़ता वायु प्रदूषण भी क्रोनिक किडनी रोगों के बढ़ते जोखिम का एक कारक है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सीकेडी की बढ़ती घटनाओं के साथ भारत में डायलिसिस से गुजरने वाले रोगियों की संख्या में भी हर साल 10 से 15 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। इस प्रतिशत में कई बच्चे भी शामिल हैं।
किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक इलाज
दुर्भाग्य से, लगातार बढ़ती घटनाओं के बावजूद, गुर्दे की बीमारी को अभी भी भारत में उच्च प्राथमिकता नहीं दी जाती है। सीकेडी के उपचार और प्रबंधन का आर्थिक कारक भी रोगियों और उनके परिवारों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। केवल भारत में ही औसतन 14 प्रतिशत महिलाएं एंव 12 प्रतिशत पुरुष किडनी की जानलेवा बीमारी से पीड़ित है। यह आकड़ा चौकाने वाला है की भारत में हर साल दो लाख लोगों को किडनी रोग हो जाता है। जब हमारी किडनी बीमार होना शुरू होती तो शुरुआती स्टेज में इस बीमारी यानि किडनी फेल्योर को पकड़ पाना मुश्किल है, क्योंकि दोनों किडनी 60 प्रतिशत खराब होने के बाद ही मरीज को इसका पता चल पाता है।
मरीज को जब तक इस बारे में पता चलता है की उसकी किडनी ख़राब हो चुकी है या फिर ख़राब होने की कगार पर उस समय तक काफी देर हो चुकी होती है। अक्सर देखा गया है जब हमें किडनी फेल्योर का पता चलता उस समय उसे फिर से ठीक करना बहुत मुश्किल सा महसूस होता है। डॉक्टर उस समय मरीज को सबसे पहले डायलिसिस की सलह देते है। और वहीं साथ में दूसरा विकल्प भी आपके सामने रखते है "किडनी ट्रांसप्लांट"। डॉक्टरों द्वारा बताएं गए उपचार के दोनों तरिके बहुत ही खर्चीले तो होते ही है साथ ही बहुत लंबे समय तक भी चलते है।
लेकिन आपके सामने एक विकल्प और खुला होता है, जोकि डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट से कहीं बेहतर है। डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के अलावा हम "आयुर्वेद" के जरिये भी इस भयानक बीमारी से मुक्ति पा सकते है। आयुर्वेद ही एकमात्र ऐसा जरिया है जिसकी सहायता से आप किसी भी प्रकार के रोग से छुटकारा पा सकते है।
आयुर्वेद में हर रोग को जड़ से खत्म किया है। बल्कि अंग्रेजी इलाज में बीमारी से बस कुछ समय के लिए राहत दिलाई जाती है। वहीं अंग्रेजी दवाएं अक्सर एक बीमारी को तक करने के साथ - साथ दूसरी बीमारी शरीर को दे जाती है। क्यूंकि अंग्रेजी दवाओं में केमिकल की मात्रा बहुत अधिक होती है। लेकिन आयुर्वेद में सिर्फ प्राकृतिक जड़ी बूटिओं का इस्तेमाल होता है ना की चेमिकल्स का।
आयुर्वेदिक किडनी उपचार
आज के समय में "कर्मा आयुर्वेदा" प्राकृतिक आयुर्वेद के सहारे से ना जाने कितने ही किडनी की बीमारी से पीड़ितों का इलाज कर चूका है। कर्मा आयुर्वेद का स्वयं का एक इतिहास है। कर्मा आयुर्वेद की नीवं वर्ष 1937 में धवन परिवार के द्वारा रखी गई थी। जिसका नेतृत्व वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन कर रहे है। आपको बता दें कि आयुर्वेद में किडनी डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना किडनी की इलाज किया जाता है। आज कर्मा आयुर्वेद का लोहा भारत के साथ-साथ विश्व भर में मन जा रहा है।
डॉ. पुनीत धवन ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। उत्तर प्रदेश के जिले अमेठी में किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक इलाज किया जा रहा है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता हैं। साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।