क्रिएटिनिन मांसपेशियों के मेटाबोलिज्म के रासायनिक अपशिष्ट उत्पाद है, जो कि किडनी के माध्यम से समाप्त हो जाती है। हाई लेवल क्रिएटिनिन के लगातार संकेत मिलता है कि, किडनी ठीक से काम नहीं कर रही है। रक्त में क्रिएटिनिन की सामान्य सीमा होती है –
- पुरूषों के लिए 0.6mg/dl से 1.2mg/dl (या 53 से 106 एमसीएमोल/एल)
- महिलाओं के लिए 0.5mg/dl से 1.1mg/dl (या 44 से 97 एमसीएमोल/एल)
विभिन्न प्रयोगशालाओं और उनकी तकनीकों के आधार पर मुल्य भिन्न हो सकते हैं। पुरूष आमतौर पर महिलाओं की तुलना में हाई लेवल पर होते हैं, क्योंकि मांसपेशियों के साथ क्रिएटिनिन बढ़ जाता है।
बता दें कि, हाई क्रिएटिनिन लेवल में योगदान करने वाले कारकों में निर्जलीकरण या अपर्याप्त पानी का सेवन होता है। एसीई इनहिबिटर जैसे – दवाएं, एस्पिरिन और आईबुप्रोफेन. केमोथेरेपी ड्रग्स और अन्य जैसे एनएसएआईडीएस, जोरदार अभ्यास, किडनी रोग, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और थायरॉयड विकार जैसे पुराने रोग, किडनी से संबंधित समस्याएं और अत्यधिक रक्त का नुकसान है। मांसपेशियों के निर्माण में आहार पूरक बनाने और बड़ी मात्रा में मांस खाने से क्रिएटिनिन का स्तर बढ़ सकता है।
हाई क्रिएटिनिन के कुछ सामान्य लक्षण मस्तिष्क, उल्टी और खराब भूख जैसी पाचन समस्याएं है। थकान, रात में यूरिन जैसे मूत्र परिवर्तन, यूरिन उत्पादन और काले रंग के यूरिन में कमी, सूजन, स्किन में खुजली और सांस की तकलीफ है जैसे कि, हाई क्रिएटिनिन लेवल से किडनी की समस्याएं और किडनी की क्षति का संकेत हो सकता है। उचित चिकित्सक और उपचार के लिए अपने चिकित्सक को देखने के लिए सबसे अच्छा है।
क्रिएटिनिन लेवल क्या है?
क्रियेटिन एक मेटाबॉलिक पदार्थ है, जो कि आहार को एनर्जी में बदलने के लिए सहायता देते समय टूट कर क्रिएटिनिन में बदल जाता है। वैसे तो किडनी क्रिएटिनिन को छानकर ब्लड से बाहर निकाल देती है।
बाद में यह वेस्ट पदार्थ यूरिन के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं, लेकिन कुछ स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं किडनी के इस कार्य में बाधा पहुंचाती है, जिसकी वजह से क्रिएटिनिन बाहर नहीं निकल पाता है और ब्लड में इसका लेवल बढ़ने लगता है। क्रिएटिनिन का बड़ा हुआ लेवल किडनी संबंधित बीमारी या समस्याओं की ओर इशारा करता है, लेकिन आहार में परिवर्तन, जीवनशैली में कुछ बदलाव, आयुर्वेदिक दवाओं से क्रिएटिनिन लेवल को कम किया जा सकता है।
हाई क्रिएटिनिन के कारण
किडनी की बीमारी हमारी रोज की दिनचर्या पर निर्भर करती है। दिनचर्या अगर नियमित नहीं है तो किडनी की बीमारी आपके शरीर में ओर बढ़ जाती है, जानिए इसके प्रमुख कारण –
- पेशाब रोकना
- कम पानी पीना
- अधिक नमक खाना
- उच्च रक्तचाप व शुगर के इलाज में लापरवाही
- अधिक मात्रा में दर्द निवारक दवाओं का सेवन करना
- सॉफ्ट ड्रिंक्स, सोडा और शराब लेना
- विटामिन-डी की कमी होना
- प्रोटीन, पोटेशियम, सोडियम, फास्फोरस वाले खाद्य पदार्थों को अधिक लेना
- अनियमित जीवनशैली
उच्च क्रिएटिनिन लेवल के लक्षण
किडनी फेल्योर में सबसे बड़ी समस्या यह है कि शुरूआत में इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं, लेकिन जब यह बीमारी अंतिम स्टेज पर पंहुच जाती है तब इसके लक्षण नजर आने लगते हैं जैसे –
- थकान और कमजोरी महसूस होना
- पेशाब करते वक्त दर्द होना
- चेहरे और पैरों में सूजन आना
- बार-बार पेशाब आना
- पीठ के नीचे के तरफ दर्द होना
- भूख न लगना
- उल्टी और उबकाई आना
- खुजली और पूरे शरीर रैशेज होना
- नींद न आना
क्रिएटिनिन लेवल को कम करने के लिए प्रभावशाली तरीके
- मीट का सेवन न करें - नॉनवेज में अधिक मात्रा में विटामिन और प्रोटीन होता है, जो कि हड्डियों को मजबूत रखने के लिए नॉनवेज का सेवन करते हैं, लेकिन ज्यादा मात्रा में नॉनवेज का सेवन करने से किडनी में खराबी आ सकती है। अधिक मात्रा में प्रोटीन डाइट लेने से किडनी पर मेटाबॉलिक लोड बढ़ जाता है, जिससे किडनी की पथरी की संभावना बढ़ जाती है।
- नमक और सोडियम कम लें – ज्यादा मात्रा में सोडियम लेने से शरीर में फ्लूड और स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाले लेवल तक एकत्रित करने लगता है, जिससे हाई बीपी की समस्या होने लगती है। इन दोनों वजह से क्रिएटिनिन लेवल बढ़ सकता है, इसलिए कम सोडियम वाला आहार लें। जिन खाद्य पदार्थों और पेय में नमक अधिक हो जैसे – प्रोसेस्ड फूड्स से दूर रहें और उनके स्थान पर उपलब्ध कम सोडियम युक्त प्राकृतिक आहार लें।
- शराब का सेवन न करें - वैसे तो शराब के नुकसानों के बारे में हर कोई जानता है, लेकिन फिर भी लोग शराब का सेवन करते हैं। अगर आपको किडनी से जुड़ी कोई शिकायत हो गई है, तो आज ही शराब पीना बंद करें। ज्यादा मात्रा और प्रतिदिन शराब का सेवन करने से लिवर के साथ-साथ किडनी पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
- अधिक समय तक पिशाब को न रोके - यूरिन को ज्यादा समय तक रोके रखने से किडनी पर दबाव पड़ता है, लेकिन जब भी यूरिन को रोके रखते हैं, तो हमारा ब्लैडर फुल जाता है और यूरिन रिफ्लैक्स की समस्या उत्पन्न हो जाती है जिससे यूरिन किडनी की ओर ऊपर आ जाता है। इस यूरिन की वजह से ही किडनी में इंफेक्शन की संभावना पैदा हो जाती है।
- नींद पूरी करे - आजकल की बिजी लाइफस्टाइल के चलते लोग भरपूर नींद नहीं ले पाते हैं। एक रिसर्च के अनुसार, 7 से 8 घंटे कम सोने वालों को हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट डिजीज का खतरा होता है, इसलिए पूरी नींद न लेने पर किडनी के ऊपर दबाल बढ़ता है और किडनी में खराबी आने लगती है।
- हर्बल टी और नेटल लीफ का सही मात्रा में उपयोग करे – कुछ खास तरह की हर्बल चाय ब्लड में उपस्थित क्रिएटिनिन की मात्रा को कम करती है। हर्बल टी किडनी को अधिक यूरिन उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करती है। ज्यादा मात्रा में क्रिएटिनिन शरीर के बाहर निकल जाते हैं, इसलिए बढ़े हुए क्रिएटिनिन के स्तर को कम करने के लिए नियमित रूप से हर्बल टी लें। साथ ही नेटल लीफ भी यूरिन निष्कासन को बढ़ाकर अतिरिक्त क्रिएटिनिन को भी बाहर निकालने में मदद करते हैं। नेटल लीफ में हिस्टामिन और फेल्वोनॉयड्स नामक तत्व होते हैं, जो कि किडनी में पहुंचकर रक्त सर्कुलेशन को बढ़ाते हैं। इससे यूरिन फिल्ट्रेशन बढ़ जाता है। नेटल लीफ को आप सप्लीमेंट्स के रूप में या इसकी चाय बनाकर पी सकते हैं।
उच्च क्रिएटिनिन लेवल की जांच
शरीर में संकेत और लक्षण यह बताते है कि, आप किडनी फेल्योर से ग्रस्त हैं तो आपको डॉक्टर से पृष्टि करने के लिए कुछ जांच करवा सकते हैं जिनमें निम्न शामिल है –
- पेशाब उत्पादन को मापना - आपके द्वारा एक दिन में उत्सर्जित की गई पेशाब की मात्रा, आपकी किडनी की खराबी के कारण को निर्धारित करने में मदद कर सकता है।
- पेशाब की जांच - पेशाब विश्लेषण प्रक्रिया द्वारा आपके पेशाब के नमूने का विश्लेषण करने से उन असामान्यताओं का पता चल सकता है, जो किडनी की खराबी को बढ़ाती है।
- रक्त की जांच - आपके रक्त का नमूना यूरिया और क्रिएटिनिन के तेजी से बढ़ते स्तरों को प्रकट कर सकता है।
- इमेजिंग टेस्ट - अल्ट्रासाउंड और कम्पयूटरीकृत टोमोग्राफी (सीटी) जैसे इमेजिंग टेस्ट, डॉक्टर द्वारा आपकी किडनी का निरीक्षण करने में मदद कर सकते हैं।
- परीक्षण के लिए किडनी के ऊतक का नमूना लेना - डॉक्टर प्रयोगशाला परिक्षण के लिए किडनी के ऊतक के छोटे से नमूने को निकालने के लिए किडनी बायोप्सी की सिफारिश कर सकते हैं। किडनी के ऊतक का नमूना लेने के लिए डॉक्टर एक पतली सुई से आपकी त्वचा के माध्यम से किडनी में डाल सकते हैं।
आयुर्वेदिक किडनी उपचार
किडनी रोग की समस्या अधिक बढ़ती जा रही है और एलोपैथी में इस बीमारी का कोई सफल इलाज मौजूद नहीं है। एलोपैथी उपचार में कहा जाता है कि क्रिएटिनिन कभी कम नहीं होगा, बल्कि बढ़ता ही रहेगा। फिर किडनी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट करवाना पड़ेगा। लेकिन ऐसी नहीं है कर्मा आयुर्वेदा में हजारो बार सिद्ध किया है कि आयुर्वेदिक की मदद से और बिना डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के क्रिएटिनिन को कम किया जा सकता है।
आयुर्वेद को चिकित्सा की सबसे प्राचीन और प्रमाणिक उपचार माना जाता है, जो आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है। स्वस्थ या रोगग्रस्त व्यक्तियों के लिए आयुर्वेद का जो समग्र द्दष्टिकोण है, किसी भी अन्य चिकित्सा विज्ञान से तुलना नहीं की जा सकती है। व्यक्ति को रोग से बचाना और स्वस्थ बनाए रखना आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य रहा है।
भारत का प्रसिद्ध किडनी उपचार केंद्र कर्मा आयुर्वेदा, जहां किडनी की बीमारियों का आयुर्वेदिक इलाज किया जाता है। यह सन् 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इसका नेतृत्व डॉ. पुनीत धवन कर रहे हैं। कर्मा आयुर्वेदा में सिर्फ आयुर्वेदिक किडनी उपचार पर भरोसा किया जाता है।
साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने सफलतापूर्वक और आयुर्वेदिक उपचार की मदद से 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके उन्हें रोग मुक्त किया है, वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। आयुर्वेदिक उपचार में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे पुनर्नवा, शिरीष, पलाश, कासनी, लाइसोरिस रूट और गोखरू आदि। यह जड़ी-बूटियां किडनी रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करती हैं।