आयुर्वेद में पी.के.डी उपचार

अल्कोहोल और किडनी रोग

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आयुर्वेद में पी.के.डी उपचार

‘आयुर्वेद’ वह शब्द है जो कई गंभीर से गंभीर बीमारियों को जड़ से ख़त्म कर एक नया जीवन जीने की ख्वाहिश को पूरा करता है। आयुर्वेद एक प्राकृतिक उपचार है जो हर बीमारी को प्रकृति रूप से ठीक करता है। आयुर्वेद में योग, आहार और जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल से बीमारी का इलाज किया जाता है, इसलिए हर बीमारी में अब बाकि इलाज के विकल्प के बाद, आजकल लोग वापिस आयुर्वेद को ही चुन रहें। आयुर्वेद के इस्तेमाल से किसी भी तरह का नुकसान या दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। आयुर्वेद किसी भी बीमारी का इलाज करने में सक्षम है इसलिए दुनिया में बढ़ रही किडनी की बीमारी को आजकल आयुर्वेद की मदद से ठीक करने पर लोगों का विश्वास बढ़ता जा रहा है। किडनी की समस्या जो प्रतिदिन बढ़ रही है और अंत में लोगों को किडनी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट कराना पड़ता है, उस दर्दनाक उपचार से गुजरने से बचने के लिए लोग अब आयुर्वेद को चुनते हैं।

किडनी क्यों महत्वपूर्ण है?

एक व्यक्ति को अपने शरीर में खून को सही से संचार करने के लिए दिल और किडनी की आवश्कता होती है क्योंकि दिल खून को पूरे शरीर में प्रसारित करता है और वही किडनी हमारे शरीर में खून से अपशिष्ट उत्पादों को पेशाब के ज़रिए बाहर निकालने में मदद करती है।

हमारे शरीर में मौजूद दोनों किडनियां एक मिनट में लगभग 125 मि.ली रक्त का शोधन करने में समर्थ रखती है। अगर किडनी सही से काम नहीं कर पाती तो हमारे शरीर में कई तरह के रोग अपना घर बना लेते हैं या किडनी के सही से काम न कर पाने के कारण किडनी फेल्योर का खतरा बढ़ जाता है। यदि किसी व्यक्ति की किडनी खराब हो जाती है या किडनी फेल्योर हो जाता है तो इंसान की जान भी जा सकती है।

पी.के.डी क्या है?

किडनी की एक अहम समस्या का कारण पी.के.डी हो सकता है। पी.के.डी का अर्थ है पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज है। आमतौर पर किडनी रोगों में पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज यानि पी. के. डी. की समस्या सबसे अधिक पाई जाती है और यह रोग जानलेवा है। इस बीमारी में सीधा असर किडनी पर पड़ता है क्योंकि दोनों किडनियों में बड़ी संख्या में सिस्ट यानि पानी से भरे हुए बुलबुले की रचना बन जाती है।

किडनी की एक समस्या जिसक नाम क्रोनिक किडनी फेल्योर है, उसका मुख्य एक कारण पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज भी होता है। पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज वंशानुगत होती है, मतलब अगर आपके परिवार में कभी भी किसी व्यक्ति को पी.के.डी की समस्या रही हैं तो यह बीमारी आने वाली पीढ़ी में किसी को भी हो सकती है। अगर इस बीमारी का अनुमान लगाया जाए तो 1000 में से 1 व्यक्ति को यह समस्या हो सकती है। यदि किसी मरीज को डॉक्टर ने किडनी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट का सुझाव दिया है तो उनमें से लगभग 5% लोगों को  पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज होती है।

वैसे तो यह बीमारी वयस्कों में ज्यादा पाई जाती है जो ऑटोजोमल डोमिनेन्ट प्रकार का वंशानुगत रोग है। इसमें रोगी के लगभग 50 प्रतिशत यानि सभी संतानों में से आधी संतानों को यह रोग होने की संभावना होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह बीमारी 35 से 55 वर्ष के लोगों में देखी जाती है और इस उम्र में आने से पहले ही बच्चों का जन्म हो चूका होता है, जिस वजह से इस बीमारी को बच्चों में होने से रोकने का कोई विकल्प नहीं बच पाता है।

पी.के.डी के लक्षण क्या है?

  • पेट में दर्द महसूस होना,
  • पेट में गाँठ का महसूस होना,
  • पेशाब में खून का आना।
  • पेशाब में संक्रमण का बार-बार होना।
  • किडनी में पथरी का होना।
  • पी.के.डी बढ़ने के साथ ही क्रोनिक किडनी फेल्योर के लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं।
  • किडनी कैंसर होने की संभावना में बढ़ोतरी।
  • शरीर के अन्य भाग जैसे दिमाग, लिवर, आंत आदि में भी किडनी की तरह सिस्ट होने की संभावना बढ़ जाती है। इस कारण उन अंगों में भी लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
  • सिरदर्द होना, आदि।

किडनी पर पी.के.डी का क्या बुरा असर पड़ता है?

  • बढ़ते हुए सिस्ट की वजह से किडनी के काम करने वाले भागों पर दबाव पड़ता है, जिस कारण उच्च रक्तचाप की समस्या उत्पन्न हो सकती है साथ ही किडनी की कार्यक्षमता कम हो जाती है।
  • पी. के. डी. की समस्या में कई सालों बाद क्रोनिक किडनी फेल्योर हो जाता है या मरीज अंतिम चरण की किडनी की बीमारी की ओर अग्रसर हो जाता है।
  • किडनी के वंशानुगत में पी. के. डी. सबसे ज्यादा पाया जानेवाला रोग माना जाता है।

पी.के.डी. रोग का निदान

  • किडनी की सोनोग्राफी- अगर आपको लगता है कि आपको किडनी की कोई की समस्या है तो आप सोनोग्राफी करवा सकते हैं, लेकिन छोटे-छोटे सिस्ट इस प्रक्रिया में नहीं दिखाई देते हैं। सही समय पर इलाज शुरू करने से किडनी की बाकि बीमारियों से बचा जा सकता है।
  • सी.टी. स्कैन- पी.के.डी की समस्या को पता लगने के लिए सबसे बेहतरीन विल्कप सी.टी. स्कैन है, जिसमें किडनी पर छोटे-छोटे सिस्ट होने की जानकारी के पाई जाता सकती है।
  • पेशाब और खून की जांच- अगर आपको मूत्र संक्रमण की समस्या लम्बे समय से बार-बार हो रही है, तो एक बार आप पी.के.डी. को सुनिश्चित करने के लिए खून की जाँच भी ज़रूर करवाए।

आयुर्वेद में पी.के.डी उपचार

किडनी हमारे शरीर का एक अहम अंग है जो हमारे शरीर में बनने वाले व्यर्थ पदार्थ को पेशाब के जरिए शरीर से बाहर निकालने में मदद करती है और किडनी ख़राब होने पर डॉक्टर ज्यादातर डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट जैसे इलाज का सुझाव देते हैं। लेकिन आयुर्वेद एक मात्र ऐसा उपचार है जो किडनी की समस्या का इलाज बिना किसी दर्दनाक प्रक्रिया को अंजाम दिए, ठीक कर सकता है। कुछ बातों का ध्यान रखकर, आप किडनी की किसी भी समस्या से बच भी सकते हैं और किडनी रोग को ठीक भी कर सकते हैं।

पी.के.डी की रोकथाम के लिए सुझाव

  • किसी भी बीमारी में आप डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी दवाई का सेवन न करें। अपनी किडनी को स्वस्थ रखने के लिए ऐलोपैथिक दवाओं का सेवन बिना चिकित्सक की सलाह के नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से आपको गंभीर परिणामों या परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है और कई बार यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।
  • बदलते लाइफस्टाइल की वजह से हमारे खान-पान का कोई समय तय नहीं है, जिसकी वजह से किडनी की समस्या के साथ अन्य समस्या भी हो सकती है। किसी भी बीमारी से बचने के लिए अपने आहार में परिवर्तन के साथ-साथ भोजन को समय से करने की कोशिश कीजिए।
  • किडनी के रोग से बचने के लिए आप अपने आहार में प्रोटीन और नमक की मात्रा को कण्ट्रोल कीजिए। अगर आपको पी.के.डी. के साथ मधुमेह की समस्या भी है तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें और आहार में तुरंत बदलाव लाए साथ ही अपने मीठे पर रोक लगाए।

किडनी की समस्या के लिए कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • गोरखमुंडी- किडनी का इन्फेक्शन होने पर व्यक्ति को पेशाब के लिए बार-बार जाना पड़ता है। कई बार पेशाब मे जलन या पेशाब मे खून भी नज़र आ सकता है, उस स्थिति में इस जड़ी-बूटी का सेवन करना बहुत लाभदायक होता है।
  • कासनी- कासनी एक बारहमासी जड़ी-बूटी है, जिसका वैज्ञानिक नाम सिकोरियम इंट्यूबस है। भारत में इस औषधि को चिकोरी के नाम से भी जाना जाता है। इसके इस्तेमाल से कई तरह की बीमारियों से राहत मिलती है, जैसे कि कैंसर की बीमारी को रोकने में, किडनी खराब होने के कारण पैरों में आनी वाली सूजन, मोटापा कम करने में, दिल के रोगियों के लिए भी यह फायदेमंद होती है।
  • चंद्रप्रभा वटी- जब किसी व्यक्ति को किडनी की समस्या हो जाती है तो किडनी अपना खून साफ करने का काम सही से नहीं कर पाती है। इस वजह से शरीर में विषैले पदार्थ बढ़ने लग जाते हैं। चंद्रप्रभा वटी के सेवन से शरीर में मौजद अपशिष्ट उत्पादों को बाहर निकालने मदद मिलती है और किडनी धीरे-धीरे स्वस्थ होने लग जाती है। अगर आप इसका नियमित रूप से सेवन करते हैं तो व्यक्ति के शरीर से दूषित पदार्थ खत्म होने लगते हैं और खून भी साफ हो जाता है।
  • वरुण- यह जड़ी-बूटी प्राकृतिक रूप से किडनी के स्टोन की समस्या को ठीक करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। इस जड़ी-बूटी का इस्तेमाल किडनी की अन्य समस्या के लिए भी किया जा सकता है। यह जड़ी-बूटी खून को साफ करने के साथ-साथ यूरिन चैनल फंक्शन को भी मजबूत बनाती है।
  • पुनर्नवा- इस जड़ी-बूटी का वैज्ञानिक नाम बोरहैविया डिफ्यूजा है। यह किडनी की सफाई के कार्य को करने में किडनी की मदद करती है।

आयुर्वेदिक उपचार केंद्र

भारत जहाँ आयुर्वेद का जन्म हुआ और पूरे विश्व में आयुर्वेद से हुए कई उपचार को चमत्कार भी माना गया है। उसी आयुर्वेद में किडनी के खराब होने की समस्या का इलाज भी मौजूद है। जिसमें डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट जैसे दर्दनाक उपचार से मरीज को नहीं गुजरना पड़ता है।

वर्ष 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया कर्मा आयुर्वेदा किडनी से जुड़ी हर समस्या का इलाज करता है। आज के समय में, कर्मा आयुर्वेदा का संचालन धवन परिवार की पाचंवी पीढ़ी के डॉ. पुनीत धवन द्वारा किया जा रहा है। डॉ. पुनीत धवन हर साल हजारों किडनी रोगियों का इलाज कर, उन्हें एक नया जीवनदान देते हैं।

कर्मा आयुर्वेदा सिर्फ और सिर्फ आयुर्वेदिक औषधि पर ही विश्वास करता है। अब तक, कर्मा आयुर्वेदा ने 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके उन्हें किडनी के रोग से मुक्त किया हैं, वो भी डायलिसिस या ट्रांसप्लांट के बिना। यहां किडनी रोगियों को आयुर्वेदिक दवाओं के साथ एक उचित आहार के लिए सलाह डी जाती है। सबसे बेहतरीन बात यह कि आयुर्वेदिक दवाओं से किसी भी तरह का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। यदि आप या आपके किसी भी जानने वाले को डायलिसिस जैसे दर्दनाक उपचार से गुज़रना पड़ रहा है तो आप उन्हें कर्मा आयुर्वेदा से उचित सलाह लेकर एक रोगमुक्त जीवन व्यतीत करवा सकते हैं।

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