ई-कोलाई संक्रमण से किडनी कैसे प्रभावित होती है?

अल्कोहोल और किडनी रोग

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ई-कोलाई संक्रमण से किडनी कैसे प्रभावित होती है?

ई-कोलाई क्या है?

ई-कोलाई एक तरह का जीवाणु होता है जोकि हमारे शरीर से हमेशा से मौजूद होता है। यह सामान्य तौर पर स्वस्थ मनुष्य और पशुओं की आँतों में मौजूद होता है। यह बाहर से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है जो गंभीर समस्या है। यह जीवाणु शरीर में बाहर से भी प्रवेश कर सकता है, जो काफी गंभीर स्थिति होती है। बाहर से प्रवेश करने वाले ई-कोलाई जीवाणु व्यक्ति को डायरिया से परेशान कर सकते हैं।

इसमें O157:H7 ई-कोलाई से पेट में भयानक मरोड़, खूनी अतिसार (दस्त) और उल्टी जैसी परेशानी हो सकती है। यदि आपके बच्चे के पेट में दर्द हो तो इसे नज़रअंदाज ना कर दें। बच्‍चों के पेट में होने वाला दर्द ई-कोलाई संक्रमण का संकेत भी हो सकती है। छोटे बच्चों और बुजुर्गों को जानलेवा किस्म की परेशानी "हीमोलीटिक यूरेमिक सिंड्रोम" (Hemolytic Uremic Syndrome) होने का खतरा अधिक रहता है जिसमें आखिरकार किडनी काम करना बंद कर देता है।

ई-कोलाई बाहर से शरीर में कैसे प्रवेश करता है?

यह शरीर में कई तरह से प्रवेश कर सकता है। यह जीवाणु या संक्रमण विशेषकर कच्ची सब्जियों या कम पके मांस के सेवन से शरीर में प्रवेश करता है। इसके अलावा यह शरीर में दूषित पानी या दूषित भोजन के कारण प्रवेश करता है। यह जीवाणु मूत्र मार्ग के सिरे से होते हुए आपके शरीर के अंदर प्रवेश हो जाता है।

यह ना केवल मूत्र मार्ग से बल्कि गुदा (ANAL) से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है। इस जीवाणु का शरीर में इस प्रकार से भी एक गंभीर समस्या है इससे किडनी से जुड़ी समस्या होने का खतरा बना रहता है। बीते वर्षों में जर्मनी में ई-कोलाई जीवाणु के चलते कई लोगो की मौत हो गयी थी। जांच में ज्ञात हुआ कि यह जीवाणु खीरे के माध्यम से लोगो के शरीर में प्रवेश कर गया था।

शरीर में ई-कोलाई संक्रमण प्रवेश को कैसे पहचाने?

जब किसी व्यक्ति के शरीर में ई-कोलाई O157:H7 नामक जीवाणु किसी भी तरफ से प्रवेश कर जाता हैं तो उसके लक्षण 3-4 दिन बाद दिखने शुरू होते हैं। लेकिन आप इस संक्रमण के शरीर में प्रवेश करने के एक दिन बाद से ही बीमार पड़ना शुरू हो सकते हैं या इसमें हफ्ते भर तक का भी समय लग सकता है। ई-कोलाई संक्रमण होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं :

  • उल्टी दस्त होना, यह सामान्य से लेकर गंभीर रूप तक हो सकते हैं। इसमें मल और उलटी के साथ खून भी आ सकता है।
  • पेट में दर्द, पेट में मरोड़ या एठेन ।
  • कुछ लोगों को मिचली और उल्टी भी आ सकती है ।

ई-कोलाई से किडनी होती हैं संक्रमित

किडनी संक्रमण उस समय होता है जब किसी कारण से जीवाणु मूत्र पथ या गुदा (ANAL) से होते हुए किडनी में प्रवेश कर लेता है जिसके चलते किडनी संक्रमित हो जाती है। किडनी संक्रमण और मूत्र संक्रमण होने के पीछे ई कोलाई नामक जीवाणु होता है जो पहले से ही हमारे शरीर में आतों (Flames) में होता है। यह बाहर से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है जो गंभीर समस्या है। यह जीवाणु शरीर में बाहर से भी प्रवेश कर सकता है, जो काफी गंभीर स्थिति होती है।

यह जीवाणु मूत्र मार्ग के सिरे से होते हुए आपके शरीर के अंदर प्रवेश हो जाता है। यह ना केवल मूत्र मार्ग से बल्कि गुदा से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है। इस जीवाणु का शरीर में इस प्रकार से भी एक गंभीर समस्या है क्योंकि यह शरीर में प्रवेश करते ही बढ़ने लगता है जिससे किडनी संक्रमण और अधिक हो जाता है। यह संक्रमण रक्त के साथ प्रवाह होकर किडनी के साथ-साथ दिल तक भी पहुँच जाता है।

अगर यह किडनी तक ही सिमित रहे तो इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन अगर यह संक्रमण कहीं और चला जाए तो इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते है जैसे लकवा और दिल का दौरा।

किडनी संक्रमण होने की संभावना लड़को के मुकाबले लड्कियों को अधिक होने की होती है, क्योंकि  लड़कियों की मुत्रवाहिनी लम्बाई में लड़कों की मुत्रवाहिनी से काफी छोटी होती है। जिसके कारण वह मलनलिका के एकदम समीप होती है। जिससे मल मुत्रवाहिनी या मुत्रनालिका में जाने की आशंका रहती है। ऐसा होने से मूत्र पथ पर संक्रमण हो जाता है जिससे किडनी खराब होने की आशंका बढ़ जाती है।

लड़कों में मूत्र संक्रमण की आशंका लडकियों से कम होती है। खास कर जिन लड़कों का खतना किया गया हो उन लडकों को मूत्र संक्रमण होने की संभावना बहुत ही कम हो जाती है।

किडनी संक्रमण के लक्षण क्या है?

किडनी की विफलता के मुकाबले अगर बात करे किडनी संक्रमण की तो आपको बता दें कि किडनी संक्रमण के लक्षण रोगी के अंदर तुरंत दिखाई देने लग जाते हैं। किडनी संक्रमण होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं -

  • पीठ के नीचल हिस्से में तेज दर्द होना
  • जांघों और गुपतांगों के आसपास दर्द होना
  • कंपकंपी लगना
  • ठंड के साथ तेज़ बुखार
  • आलस होना
  • बिन काम किए थका हुआ मेहसूस होना
  • उल्टी आना
  • भूख की कमी
  • जी मचलना
  • दस्त लगना
  • पेट खराब होना, अपच
  • पेशाब के दौरान दर्द होना
  • पेशाब करते समय जलन होना
  • बार-बार पेशाब आना
  • पेशाब करने की इच्छा करना
  • तेज़ पेशाब आने के स्थिति में कम पेशाब आना
  • गंध वाला पेशाब आना
  • पेट में दर्द आना (किडनी के आसपास)
  • पेट के निचले हिस्से में दर्द होना
  • पेशाब में खून आना
  • पेशाब में मवाद आना
  • झागदार पेशाब आना

बच्चों में किडनी संक्रमण होने के वयस्कों से भिन्न लक्षण दिखाई देते हैं, जोकि निम्नलिखित हैं

  • भोजन खाने का दिल ना करना
  • बार बार उल्टियां होना (अन्य कारणों से भी उल्टियाँ हो सकती है)
  • उर्जा में कमी होना, कम खेलना थोड़ी देर में ही थक जाना
  • पेट में असहनीय दर्द होना
  • बढ़ने की दर कम होना
  • चिडचिडापन
  • मूत्र में खून आना
  • पीलिया
  • आँखों और त्वचा के आसपास का हिस्सा फीका पड़ना
  • पेशाब में गंध आना
  • बिस्तर पर पेशाब करना

अगर आप अपने अंदर किडनी संक्रमण से जुड़े उपरोक्त लिखे लक्षणों की पहचान करते हैं तो आपको तुरंत आयुर्वेदिक उपचार लेना शुरू करना चाहिए।

किडनी संक्रमण के दौरान किन बातों का ध्यान रखें?

अगर आप किडनी संक्रमण से जूझ रहे है तो आप निम्नलिखित बातों का ध्यान रख इस अगम्भीर समस्या से आसानी से छुटकारा पा सकते है –

  • जितना हो सकते पेशाब करे
  • सम्भोग (SEX) करने के तुरंत बाद पेशाब करे। आप सम्भोग करने के बाद जितनी जल्दी पेशाब करेंगे उतना ही अच्छा होगा। इससे जीवाणु होने का खतरा कम होता है।
  • पेशाब और मल त्याग के बाद अच्छे से अंगों को साफ करे
  • जानांग के आसपास डियो (DEO) का इस्तेमाल ना करे, इससे मूत्र संकर्मण हो सकता है
  • शौचालय को ठीक से साफ करे, अपने आसपास साफ सफाई का विशेष ध्यान दें।

किडनी संक्रमित होने पीछे अन्य कारण क्या है?

खानपान की गलत आदतों के कारण से भी किडनी संक्रमण होने का खतरा रहता है। निम्नलिखित खाने की आदतों के चलते किडनी संक्रमित होती है -

अधिक मात्रा में नमक का सेवन करना

नमक के अंदर बहुत सारा सोडियम होता है। जब हम खाने में ज़रूरत से ज़्यादा नमक डालते हैं, तो इसे शरीर से बाहर निकालने में किडनी को काफी मुश्किल होती है। इससे किडनी पर प्रेशर पड़ता है और किडनी संक्रमित हो जाती है।

कैफीन का अधिक सेवन करना

चाय और काफी अधिक सेवन करने से किडनी में संक्रमण हो जाता है। क्योंकि चाय और काफी में कैफीन की मात्रा काफी होती है जो किडनी के लिए हानिकारक होता है। शरीर में कैफीन में अधिक मात्रा होने पर किडनी पर दबाव पड़ता है और किडनी संक्रमित हो जाती है।

दर्द निवारक दवाओं का अधिक सेवन

अगर आप लंबे समय से दर्द निवारक दवाओं का सेवन कर रहे हैं, तो इससे किडनी पर किडनी पर दबाव पड़ता है और किडनी को रक्त शुद्ध करने में समस्या होती है। समय के साथ किडनी संक्रमित हो जाती है।

कोल्ड या फ्लू को नज़रंदाज़ करना

अगर आपको कोल्ड या फ्लू हो, तो ज़्यादा काम ना करें। इस दौरान, अपनी बॉडी को पूरा रेस्ट दें। अगर बीमारी के दौरान, आप बॉडी को ज़्यादा थकाएंगे, तो इसका उल्टा असर किडनी के फंक्शन पर पड़ेगा। और आपको परेशानियों का सामना करना पर सकता है।

कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार

आयुर्वेदिक उपचार ही ऐसा उपचार है जिसकी मदद से हम किसी भी प्रकार के रोग को जड़ से खत्म कर सकते हैं। आयुर्वदिक पद्धत्ति द्वारा उपचार कराते हुए हम इस बात से निश्चित होते हैं की यह दवाएं अंग्रेजी दवाओं की तरह हमारे शरीर को नुकसान नहीं पहुँचने वाली। क्योंकि अयुर्वेदिक दवाओं में कोई केमिकल नहीं होता।

आयुर्वेद में सभी उपचार प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से किया जाता है। आयुर्वेद के सहायता से किडनी फेल्योर का सफल उपचार किया जा सकता है।इस समय देशभर में अनेक आयुर्वेदिक उपचार केंद्र उपलब्ध है, कर्मा आयुर्वेद एक ऐसा किडनी उपचार केंद्र है जो पूरी तरह से आयुर्वेदिक दवाओं से किडनी फेल्योर का उपचार करता है।

कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना वर्ष 1937 में हुई थी। तभी से कर्मा आयुर्वेदा किडनी रोगियों का इलाज करते आ रहा हैं। वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन इसका नेतृत्व कर रहे हैं। आपको बता दें कि आयुर्वेद में किडनी डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना किडनी की इलाज किया जाता है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता हैं।

डॉ. पुनीत धवन ने  केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। कर्मा आयुर्वेदा किडनी ठीक करने को लेकर चमत्कार के रूप में साबित हुआ हैं।

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