एलोपैथी में खराब हुई किडनी को कैसे ठीक किया जाता है?

अल्कोहोल और किडनी रोग

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एलोपैथी में खराब हुई किडनी को कैसे ठीक किया जाता है?

जिस प्रकार किडनी का कार्य काफी जटिल होता है, ठीक उसी प्रकार किडनी खराब हो जाने पर उसे पुनः ठीक करना भी काफी जटिल होता है। वर्तमान समय में एक खराब हुई किडनी को ठीक करने के लिए लोग एलोपैथीक उपचार की ओर ज्यादा रूख कर रहे हैं जो कि एक विदेशी उपचार पद्धति है, जिसमे डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट की मदद से रोगी को स्वस्थ करने की कोशिश की जाती है। वहीं भारत में किडनी को ठीक करने के लिए आयुर्वेदिक, होम्योपैथी और यूनानी उपचार जैसी कई उपचार पद्धति मौजूद है। इन सभी उपचार पद्धतियों की मदद से खराब हुई किडनी को बड़ी आसानी से ठीक किया जा सकता है। आज के इस लेख में हम इस बारे में जानेंगे कि विदेशों में खराब हुई किडनी को कैसे ठीक किया जाता है और क्या विदेशी उपचार किडनी फेल्योर के लिए सफल उपचार है?

किडनी फेल्योर का विदेशी उपचार इस प्रकार होता है

विदेशों में किडनी फेल्योर से छुटकारा पाने के लिए निम्न वर्णित तरीकों को अपनाया जाता है –

डायलिसिस

एलोपैथीक उपचार अपनाने पर किडनी रोगी को डायलिसिस जैसे जटिल उपचार से गुजरना पड़ता है जो कि बहुत पीड़ादायक होता है। डायलिसिस रक्त छानने की एक कृत्रिम क्रिया है, जो शरीर से अपशिष्ट उत्पादों और अन्य विषाक्त तत्वों को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। किडनी खराब होने पर शरीर में पानी की मात्रा बढ़ जाती है और रक्त की मात्रा कम हो जाती है, जिसे डायलिसिस द्वारा ठीक करने की कोशिश की जाती है। डायलिसिस किडनी फेल्योर का सफल उपचार नहीं है, बल्कि यह सिर्फ रोगी को राहत भर देने का एक कृत्रिम उपचार है। यह मशीन किडनी की भांति काम करती है, लेकिन यह अपशिष्ट उत्पादों के साथ-साथ पौष्टिक तत्वों को भी शरीर से बाहर निकाल देती है, क्योंकि यह पौष्टिक और अपशिष्ट उत्पादों में फर्क नहीं कर पाती। जब शरीर से अपशिष्ट उत्पादों के साथ जरूरी तत्व भी शरीर से बाहर निकल जाते हैं तो रोगी लगातार कमजोर होने लगता है।

इसके अलावा उन्हें कई शारीरिक समस्याओं से भी जूझना पड़ता है जैसे – प्रोटीन लोस, एनीमिया, बालों का झड़ना, चिड़चिड़ापन, भूख न लगना, मानसिक तनाव, रक्तचाप निम्न होना और रक्त का थक्का जमना जैसी समस्याएँ हो सकती है। हर रोगी इस उपचार को सहन नहीं कर पाता क्योंकि इसके दौरान रोगी को काफी पीड़ा का सामना करना पड़ता है। जिन लोगो की किडनी मधुमेह के कारण खराब होती है उनको डायलिसिस से ज्यादा गुजरना पड़ता है। मुख्य रूप से डायलिसिस दो प्रकार का होता है, पहला : हीमोडायलिसिस और दूसरा : पेरिटोनियल डायलिसिस हिमोडायलिसिस किडनी फेल्योर में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला डायलिसिस है। डायलिसिस की इस प्रक्रिया में हिमोडायलिसिस मशीन की मदद से कृत्रिम (Artificial) किडनी में रक्त साफ किया जाता है। वहीं पेरिटोनियल डायलिसिस हिमोडायलिसिस के मुकाबले काफी जटिल डायलिसिस करने का तरीका है। इस डायलिसिस को पेट का डायालिसिस (सी। ए। पी। डी।) या पेरिटोनियल डायलिसिस के नाम से जाना जाता है। इस डायलिसिस को रोगी अपने घर पर ही कर सकता है। इस डायलिसिस में किसी प्रकार की मशीन की आवश्यकता नहीं पड़ती।

किडनी प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट)

किडनी ट्रांसप्लांट आम तौर पर उन रोगियों का किया जाता है जो कि किडनी फेल्योर की जानलेवा बीमारी के अंतिम चरण में होते हैं। जब रोगी काफी लंबे समय से डायलिसिस करवा रहा होता है और उसे इससे कोई आराम नहीं मिलता तो एलोपैथीक डॉक्टर उसे किडनी ट्रांसप्लांट करवाने की सलाह देते हैं। यह उपचार कहने और सुनने में जितना आसान लगता है, उतना है नहीं क्योंकि इस उपचार के दौरान किडनी रोगी के साथ-साथ उसके परिवार को भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक बार जब किडनी रोगी ट्रांसप्लांट के लिए हामी भर देता है तो एक स्वस्थ किडनी की तलाश जारी हो जाती है। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए सबसे जरूरी होता है किडनी डोनर, इस ऑपरेशन में दो प्रकार के डोनर होते हैं। पहला कोई मृत व्यक्ति और दूसरा एक जीवित व्यक्ति। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए केवल स्वस्थ व्यक्ति ही अपनी किडनी दान दे सकता है, वहीं मृत व्यक्ति की किडनी लेते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि व्यक्ति की मौत किस कारण, किस समय और मृत व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री क्या है, जैसी बातों का खास ख्याल रखा जाता है। अगर व्यक्ति की मौत मस्तिष्क से जुड़ी किसी समस्या, जहर लेने, किसी वंशानुगत रोग, प्रसव के दौरान या किसी रासायनिक संक्रमण से हुई है तो उस व्यक्ति की किडनी दान में नहीं ली जा सकती। क्योंकि ऐसे दानदाता की किडनी लेने से ऑपरेशन फेल होने की आशंका काफी बढ़ जाती है।

एक बार किडनी मिल जाने के बाद रोगी को कई सरकारी कार्यवाहियों से भी जूझना पड़ता है जो कि जटिल और समय लेने वाली होती है। सभी परिक्रियाओं से जूझने के बाद एक बार किडनी ट्रांसप्लांट हो जाए तो रोगी को कई दवाओं का सेवन करवाया जाता है, यह दवाएं रोगी को ट्रांसप्लांट से पहले और बाद में एक लंबे समय तक दी जाती है। इन दवाओं को रोगी को इसलिए दिया जाता है ताकि रोगी का शरीर नई किडनी अपना सकें। इन दवाओं में रोगी को प्रतिरक्षादमनकारी (immunosuppressant) नामक एक खास दवा दी जाती है। इस दवा से रोगी को कई दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमे रक्तचाप बढ़ना और गिरना शामिल है। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद रोगी को बहुत ही महंगी दवाओं का सेवन सदा के लिए लेनी पड़ती है। शुरू में दवाइयों की मात्रा (और खर्च भी) ज्यादा होती है, जो समय के साथ धीरे-धीरे कम होती जाती है। किडनी प्रत्यारोपण करने के बाद मरीजों द्वारा ली जानेवाली दवाईयों में उच्च रक्तचाप की दवा, कैल्शियम, विटामिन्स इत्यादि दवाईयाँ को कम या बढ़ाया जा सकता है।

किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान किडनी की अस्वीकृति यानि किडनी रिजेक्शन का खतरा रहता है। किडनी रिजेक्शन शुरुआत के छः महीनों में होने का अधिक खतरा रहता है। लेकिन कई बार रिजेक्शन होने में केवल 5 मिनट से भी कम समय लगता है। अस्वीकृति की गंभीरता हर रोगी में अलग होती है। प्रायः किडनी की अस्वीकृति होना किसी विशेष कारण से नहीं होता है और इसका इलाज उचित इम्युनोसप्रेसेन्ट चिकित्सा द्वारा हो जाता है। पर कुछ रोगियों में किडनी की अस्वीकृति होना गंभीर हो सकता है और जो अंत में किडनी को नष्ट कर सकता है। किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान रोगी को निम्नलिखित परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमे किडनी की अस्वीकृति भी एक है –

  • संक्रमण,
  • मूत्र संक्रमण,
  • दस्त,
  • अत्यधिक बाल विकास या बाल गिरना,
  • रक्तस्राव,
  • सूजन,
  • पेट की ऐंठन,
  • मुँहासे,
  • मूड स्विंग,
  • एनीमिया,
  • गठिया,
  • दौरे,
  • मधुमेह की संवेदनशीलता,
  • कैंसर का खतरा
  • वजन

भारत में ऐसे होता है किडनी फेल्योर का उपचार

एक तरफ जहाँ विदेशो में एलोपैथी द्वारा किडनी फेल्योर का उपचार किया जाता है वहीं भारत में आयुर्वेद द्वारा इस जानलेवा समस्या से आसानी से छुटकारा दिलाया जाता है। विदेशी चिकित्सकों का मत है कि आयुर्वेद द्वारा किडनी को ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन हम आपको बता दें कि आयुर्वेद द्वारा विफल हुई किडनी को ठीक करना संभव है। एलोपैथी उपचार के मुकाबले आयुर्वेदिक उपचार से किसी भी प्रकार के रोग को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है, बशर्ते कि रोगी औषधियों के साथ-साथ परहेज का सही से पालन करें।

आयुर्वेदिक औषधियों भले ही रोग को खत्म करने में समय लगाए लेकिन वह रोग को जड़ से खत्म करता है, साथ ही उसके भविष्य में होने की संभावनाओं को भी नष्ट करता है। आयुर्वेदिक उपचार द्वारा विफल हुई किडनी को स्वस्थ करते समय डायलिसिस जैसे जटिल उपचार का सहारा नहीं लिया जाता। डायलिसिस रक्त शोधन की एक कृत्रिम क्रिया है, इसे एलोपैथी उपचार के दौरान प्रयोग किया जाता है। जबकि आयुर्वेदिक उपचार में कुछ खास जडी-बुटीयों का प्रयोग कर किडनी को स्वस्थ किया जाता है।

किडनी फेल्योर जैसी गंभीर समस्या के आयुर्वेदिक उपचार में कुछ निम्नलिखित औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है –

  • कासनी
  • चंद्रप्रभा वटी
  • गोरखमुंडी
  • शिरीष
  • वरुण
  • पुनर्नवा
  • अमरबेल
  • घतुरा

किडनी फेल्योर के आयुर्वेदिक उपचार के लिए कहां संपर्क करें?

अगर आप किडनी फेल्योर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहें हैं और एलोपैथीक उपचार को नहीं अपनाना चाहते तो आपको कर्मा आयुर्वेदा में संपर्क करना चाहिए। कर्मा आयुर्वेदा में पूर्णतः प्राचीन भारतीय आयुर्वेद के सहारे से किडनी फेल्योर का इलाज कर रहा है। कर्मा आयुर्वेदा कई सालों  से किडनी रोगियों का इलाज करते आ रहे हैं। वर्ष 1937 में धवन परिवार द्वारा कर्मा आयुर्वेद की स्थापना की गयी थी। वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन कर्मा आयुर्वेदा को संभाल रहे है। डॉ. पुनीत धवन ने  केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। डॉ. पुनीत धवन ने 48  हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं, वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।

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