किडनी हमारे शरीर के सबसे खास अंगों में से एक है, यह हमारे शरीर में बहने वाले खून को साफ करने का कार्य करती है लेकिन किडनी खराब होने पर किडनी अपने कार्य को करने में असमर्थ हो जाती है, जिसके चलते व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। किडनी का खराब होना काफी गंभीर और जानलेवा स्थिति मानी जाती है, लेकिन अगर बात करे किडनी कैंसर कि तो यह भी किडनी फेल्योर के समान ही गंभीर और जानलेवा बीमारी है। किडनी कैंसर हो जाने पर इससे निपटना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि इसमें कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास होने लगता है, जो कि किडनी की सामान्य कोशिकाओं को नष्ट कर शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित करता है। अन्य कैंसर के मुकाबले किडनी कैंसर सबसे गंभीर होता है क्योंकि इस कैंसर में रोगी का खून साफ़ नहीं हो पाता और उसे पेशाब, सूजन, हाई ब्लड प्रेशर, उल्टी जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आम तौर पर किडनी में दो प्रकार के कैंसर पाए जाते हैं, लेकिन किडनी से जुड़े हुए चार प्रकार के कैंसर होते हैं जो कि निम्नलिखित है :-
- रीनल सेल कार्सिनोमा (RENAL CELL CARCINOMA)
- ट्रान्सिशनल सेल कार्सिनोमा (TRANSITIONAL CELL CARCINOMA)
- विल्म्स ट्यूमर (WILMS TUMOR)
- रीनल सारकोमा (RENAL SARCOMA)
किडनी कैंसर में दिखाई देते हैं यह लक्षण
किडनी स्टोन के इतर किडनी से जुड़ी किसी भी बीमारी को आसानी से नहीं पकड़ा जा सकता है, भले ही इसके कई लक्षण शरीर में दिखाई देने लग जाते हैं। किडनी कैंसर के शुरूआती चरणों में इसकी पहचान कर पाना काफी मुश्किल हो सकता है क्योंकि इसके लक्षण बड़े ही सामान्य होते हैं जिन पर ध्यान नहीं दिया जाता, जैसे – पेशाब कम आना या पेशाब का रंग बदलना। लेकिन जैसे-जैसे ट्यूमर का आकर बड़ा होने लगता है वैसे-वैसे इसके लक्षण सामने दिखाई देने लग जाते हैं। किडनी में कैंसर होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं :-
- समय के साथ पेशाब का रंग पीले से गहरा होना,
- पेशाब में रक्त आना,
- शरीर में एक तरफ (खासकर कमर के आसपास) या पेट में गांठ होना,
- भूख न लगना,
- पेट में एक तरफ असहनीय दर्द होना और लंबे समय तक ठीक न होना,
- अचानक वजन बढ़ना और लगातार बढ़ते रहना,
- ठंड या किसी अन्य किसी संक्रमण के बिना ही एक सप्ताह या उससे अधिक समय तक बुखार,
- अत्यधिक थकान होना और कुछ भी करने से आराम ना मिलना,
- एनीमिया की समस्या होना,
- एड़ियों, पैरों और आँखों के आस-पास में सूजन आना,
- रक्तचाप लगातार बढ़ते रहना,
- पेशाब से तेज बदबू आना,
- शरीर के कई हिस्सों में सूजन आना, खासकर चेहरे और पैरों में।
जब कैंसर किडनी के अलावा उससे बाहर फैलने लगता है तो उसके लक्षण अलग होते हैं, जो कि निम्नलिखित है :-
- श्वास फूलना,
- खांसी के दौरान खून आना,
- चलने-फिरने में काफी तकलीफ होना
- हड्डियों में दर्द या कमजोर होना या फिर दोनों का होना।
कुछ जांच के सहारे से भी किडनी कैंसर की पहचान हो सकती है
अगर किसी व्यक्ति को यह शंका हो कि उसको किडनी कैंसर है तो उसे सबसे पहले इसके लक्षणों की पहचान करनी चाहिए। अगर व्यक्ति एक बार किडनी कैंसर के लक्षणों की पहचान कर लेता है तो उसके बाद वह निम्नलिखित जांचों के माध्यम से इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि उसे किडनी कैंसर है या नहीं :-
इन्ट्रावेनस पाइलोग्राम
इन्ट्रावेनस पाइलोग्राम, यह जांच किडनी का एक्सरे करती है। यह जांच किडनी के कैंसर का पता लगाने में और आस-पास में किडनी में हुई क्षति का पता लगाने में हमारी सहयता करती है। इस जांच को करने के दौरान वेन्स नसों में एक डाई का इंजेक्शन लगाया जाता है, जिससे डाई किडनी में इकट्ठा हो जाता है और यूरीन के साथ निकाल दिया जाता है। यह डाई यूरीन के रास्ते का भी एक्स-रे करती है।
चेस्ट की जांच द्वारा
चेस्ट के एक्स-रे और फेफड़ो के सिटी स्कैन द्वारा किडनी के कैंसर की जांच द्वारा पुष्टि की जा सकती है। इन दोनों जांचों से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि किडनी का कैंसर फेफड़ो तक फैला हुआ है या चेस्ट के आसपास की हड्डियों तक फैला हुआ है। अगर कैंसर चेस्ट तक फ़ैल चूका है तो कितना और कौन सी स्टेज पर है?
यूरीन एनालीसिस
पेशाब की जांच से पुरे शरीर की स्थिति की जांच की जा सकती है। यूरीन की रासायनिक जांच और माइक्रोस्कोरपिक जांच से रक्त की उस छोटी मात्रा की जांच करते हैं जो कि आखों से दिखाई नहीं देते। रेनल सेल कार्सिनोमा के किडनी कैंसर से जूझने वाले लगभग 50 प्रतिशत मरीजों को हीमैटोयूरिया की समस्या से जूझना पड़ता है। हीमैटोयूरिया में यूरीन में रक्त आने लगता है।
हड्डियों का स्कैन
हड्डियों की जांच इस जांच द्वारा छोटे और सुरक्षित स्तर के रेडियोएक्टिव सामान से कैंसर की जांच की जाती है कि कैंसर हड्डियों तक फैला या नहीं।
रक्त जांच
किडनी से जुड़ी समस्या होने की आशंका होने पर रक्त जांच द्वारा शरीर में अपशिष्ट उत्पादों की गणना की जा सकती है। एक पूर्ण रक्त गणना यह पता चलता है यहां बहुत कम रेड ब्लड सेल है या बहुत अधिक रेड ब्लड सेल (पालीसिथीमिया) है।
अल्ट्रा साउंड
अल्ट्रा साउंड बहुत ही आम जांच हैं, यह मुख्य रूप से पेट से जुड़ी समस्याओं का पता लगाने के लिए की जाता है। इस जांच द्वारा ध्वनि तरंगों की मदद से यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि किडनी में मैजूद गांठ नॉन कैंसर है या फ्लुइड फिल्ड सिस्ट है या कैंसर ट्यूमर है।
आयुर्वेदिक उपचार से किडनी फेल्योर का उपचार है संभव
कर्मा आयुर्वेदा में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। आपको बता दें कि आयुर्वेदिक किडनी उपचार लेने से किडनी रोगी को आयुर्वेदिक किडनी डायलिसिस उपचार और किडनी ट्रांसप्लांट की जरुरत नहीं होती क्योंकि किडनी रोगियों का इलाज इन दोनों के बिना ही ठीक हो जाते हैं।