किडनी भले ही आकर में छोटी होती हो लेकिन यह हमारे शरीर में कई जरूरी कार्यों को अंजाम देती है। किडनी हमारे शरीर से अपशिष्ट उत्पादों को शरीर से बाहर निकालने का जरूरी काम करती है। इसमें किडनी क्षार (salt), अम्ल (acid), पोटेशियम जैसे कई अपशिष्ट उत्पादों को पेशाब के जरीय से बाहर निकाल देती है। किडनी अपना यह जरूरी काम रक्त शोधन करते समय करती है। आपको बता दें कि रक्त साफ करना किडनी का सबसे जरूरी काम है। किडनी की कार्यक्षमता दर पर उसका कार्य निर्भर करता है। किडनी की कार्यक्षमता यानि जीएफआर, जो किडनी की काम करने की स्थिति को बताती है। लेकिन किडनी में आई कई समस्याओं के चलते किडनी की कार्यक्षमता दर (जीएफआर) गिरने लगती है, जो एक गंभीर स्थिति होती है।
जीएफआर क्या है?
जीएफआर का पूरा नाम “ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट” (glomerular filtration rate) है, यह किडनी की कार्यक्षमता दर को बताने वाला एक तरह टेस्ट है, जिससे इस बारे में जानकारी मिलती है कि किडनी कितनी स्वस्थ है और किस गति से रक्त को शुद्ध कर रही है। हिंदी में ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट को “केशिकागुच्छीय निस्पंदन दर” के नाम से जाना जाता है। इस जांच के माध्यम से पता चलता है कि रक्त में कितनी मात्रा में अपशिष्ट उत्पाद मौजूद है, और किडनी कितनी प्रतिशत ठीक है या किडनी, क्रोनिक किडनी रोग के कौन-से स्तर पर है। ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट के टेस्ट में रक्त की जांच से यह पता लगाया जाता है कि रक्त में कितने प्रतिशत अपशिष्ट उत्पाद मौजूद है और किडनी की कार्यक्षमता दर कितनी है। एक स्वस्थ किडनी की कार्यक्षमता दर 90ml/min और इससे अधिक होती है। व् मधुमेह रोगियों को इस जांच की आवश्यकता सबसे ज्यादा पडती है। क्योंकि मधुमेह होने के कारण रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे किडनी के नेफ्रोन (फिल्टर्स) को नुकसान पहुँचता है। ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट का कम स्तर किडनी में हो रहे नुकसान को दर्शाता है।
ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है, एक GFR रक्त जांच और दूसरा eGFR रक्त जांच। eGFR का अर्थ है अनुमानित ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट (estimated glomerular filtration rate), यह जांच रक्त मौजूद अपशिष्ट उत्पादों की अनुमानित दर के बारे में बताती है। जबकि जीएफआर रक्त जांच के दम सटीक परिणाम बताती है। जीएफआर का मान जितना नीचे गिरता जायगा उतनी ही किडनी खराब होती जायगी, एक स्वस्थ किडनी के लिए जीएफआर का उच्च होना चाहिए। एक स्वस्थ किडनी का GFR 90ml/min से ज्यादा या उसके लगभग हो सकता है।
जीएफआर कैसे किडनी फेल्योर को दर्शाता है?
जैसे-जैसे किसी व्यक्ति का जीएफआर स्तर कम होता उसकी किडनी की कार्यक्षमता उतनी ही कम होने लगती है। जीएफआर के घटते स्तर के आधार पर क्रोनिक किडनी डिजीज यानी किडनी फेल्योर को पांच चरणों में विभाजित किया गया है। क्रोनिक किडनी डिजीज के हर चरण में जीएफआर का मान गिरता है, जो निम्नलिखित है –
- पहले चरण के दौरान किडनी की कार्यक्षमता दर 90–100 % तक होती है और GFR की बात करे तो यह 90ml/min तक होता है।
- दुसरे चरण में रोगी का GFR 60 से 89 मि.लि./मिनिट तक हो सकता है।
- तीसरे चरण में किडनी की कार्यक्षमता या GFR 30 तो 59 मि.लि./मिनिट के लगभग हो सकता है।
- चौथे चरण में किडनी की कार्यक्षमता अथवा GFR 15-29 मि.लि./मिनिट तक हो जाती है
- अंतिम चरण यानी पांचवे चरण में किडनी का GFR अर्थात किडनी की कार्यक्षमता में 15% से भी कम हो जाती है।
किडनी की कार्यक्षमता 15% या उससे कम हो जाने पर व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे - पेट में दर्द, आँखों के नीचे और पैरो में सूजन, कमर के निचले हिस्से में दर्द, गठिया, कम पेशाब आना, उल्टियाँ आना, खाना ना पचना भूख में कमी, गैस और पेट में सूजन, खून की कमी, सांस फूलना या छोटे–छोटे सांस आना, नींद की कमी, रात में गंधदार पेशाब आना जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस चरण में रोगी का क्रीएटिनिन स्तर लगातार बढ़ता रहता है। अगर रोगी के रक्त में क्रीएटिनिन का स्तर कम नहीं किया जाए तो रोगी को जान से भी हाथ तक धोना पड़ सकता है।
जीएफआर का स्तर गिरने के पीछे क्या कारण है?
जीएफआर का स्तर गिरने के पीछे सबसे बड़ा कारण हमारी बिगड़ती लाइफस्टाइल हैं। इसके अलावा निम्नलिखित कारणों के चलते भी जीएफआर का स्तर गिर सकता है -
- यदि कोई व्यक्ति लम्बे समय से उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहा है तो उसके किडनी खराब होने की समस्या हो सकती है। जिसके कारण उसका जीएफआर स्तर लगातर गिरता रहता है। रक्त में सोडियम की अधिक मात्रा होने के कारण उच्च रक्तचाप की समस्या होती है, जिसके कारण किडनी के नेफ्रोन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किडनी खराब होना शुरू हो जाती है।
- किडनी में किसी कारण सूजन आने से व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में व्यक्ति का जीएफआर स्तर काफी गिर जाता है।
- मधुमेह होने पर रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक हो जाती है, शर्करा युक्त रक्त को शुद्ध करने पर किडनी के नेफ्रोन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और इसी कारण पीड़ित का जीएफआर स्तर कम होने लगता है।
- गठिया की समस्या किडनी की बीमारी तरफ इशारा करती है। ऐसे में आपका जीएफआर स्तर गिर सकता है।
- किडनी की पथरी के कारण से भी जीएफआर का स्तर गिरता है। आप आयुर्वेद द्वारा इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।
- अगर आप दर्द निवारक दवाओं का सेवन अधिक मात्रा में करते हैं, तो आपको सावधान रहने की जरुरत है। लम्बे समय तक दर्द निवारक दवाओं का सेवन करने से किडनी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके चलते किडनी की कार्यक्षमता कम होने लगती है।
जीएफआर घटने से क्या होता है?
जीएफआर के घटने सबसे पहला परिणाम यह होगा कि आपकी किडनी खराब हो जायगी है, या निकट भविष्य में खराब होने वाली है। जीएफआर का स्तर गिरने से आपके शरीर में कुछ बदलाव भी देखे जा सकते हैं, जिसे किडनी खराब होने के लक्षण भी कहा जाता है, जो निम्नलिखित है -
- शरीर के कुछ हिस्सों में सूजन
- गंधदार पेशाब आना
- सांस लेने में तकलीफ
- कंपकंपी के साथ बुखार होना
- पेट में दर्द
- पेशाब में रक्त और प्रोटीन का आना
- बेहोश हो जाना
- पेशाब में प्रोटीन आना
- बार-बार उल्टी आना
- पेशाब में खून आना
- अचानक कमजोरी आना
- पेट में दाई या बाई ओर असहनीय दर्द होना
- नींद आना
- कमर दर्द होना
ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर को प्राकृतिक रूप से कैसे बढ़ाए?
घटते ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर किडनी फेल्योर की ओर इशारा करता है। इसके लगातार गिरने से रोगी को कई जटिल उपचारों से भी गुजरना पड़ता है, जिसमे डायलिसिस भी एक है। आप प्राकृतिक रूप से भी जीएफआर के स्तर को बढ़ा सकते है, आप निम्नलिखित कुछ उपायों की मदद से जैसा कर सकते हैं –
- उच्च प्रोटीन युक्त आहार का सेवन नहीं करना चाहिए। उच्च प्रोटीन किडनी की विफलता का कारण बन सकता है। इसी कारण आपको उच्च प्रोटीन वाले आहार का सेवन नहीं करना चाहिए। दूध, पनीर, दही, मीट में अधिक प्रोटीन होता है। प्रोटीन बार का सेवन नहीं करना चाहिए। सामान्यतः 0.8 से 1.0 ग्राम/ किलोग्राम प्रतिदिन शरीर के वजन के बराबर प्रोटीन लेने की सलाह दी जाती है। आमतौर पर प्रोटीन बार में एक चॉकलेट ब्राउनी के रूप में दोगुनी मात्रा में फैट और कॉर्बोहाइड्रेट पाया जाता है, जोकि नुकसानदायक होता है।
- रक्त में सोडियम की अधिक मात्रा होने के कारण किडनी को रक्त शुद्ध करने के दौरान फिल्टर्स पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और किडनी खराब हो जाती है। बता दें उच्च रक्तचाप के कारण व्यक्ति को दिल से जुडी समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझने वाले व्यक्तियों को अपने आहार में बैंगन, नारियल पानी, मशरूम, ओट्स, दही जैसी चीजों को अपने आहार में शामिल करना चाहिए। साथ ही रोगी को नमक का सेवन ना के बराबर ही करना चाहिए, आप साधारण नमक की जगह सेंधा नमक को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं।
- धुम्रपान ना करे, क्योंकि इसके सेवन से शरीर में जहरीले तत्वों की मात्रा बढती है। जिसके कारण जीएफआर का स्तर गिर सकता है।
- पोटेशियम युक्त आहार का सेवन संतुलित मात्रा में ही करना चाहिए। आपको आम, केला, सेब, चीकू, खजूर और अंगूर जैसे फलों का सेवन नहीं करना चाहिए, इन फलों में पोटेशियम अधिक मात्रा में होता है।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ (processed foods) का सेवन नहीं करना चाहिए। यह आपको पाचन से जुड़ी समस्या को पैदा कर सकते हैं। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ का जिनका सेवन करने से आपके पेट में गैस बनने लगती है और संक्रमण होने की आशंका भी रहती है। इसलिए केन फूड, चिप्स आदि खाने के बजाए साबुत आहार खाएं जो सेहतमंद भी होते हैं।
कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर की जानलेवा बीमारी से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। आयुर्वेद में इस रोग को हमेशा के लिए खत्म करने की ताक़त मौजूद है। जबकि अंग्रेजी दवाओं में बीमारी से कुछ समय के लिए राहत भर ही मिलती है। लेकिन आयुर्वेद में बीमारी को खत्म किया जाता है। आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर जैसी जानलेवा बीमारी से निदान पाया जा सकता है। आज के समय में "कर्मा आयुर्वेदा" प्राचीन आयुर्वेद के जरिए "किडनी फेल्योर" जैसी गंभीर बीमारी का सफल इलाज कर रहा है। कर्मा आयुर्वेद पूर्णतः प्राचीन भारतीय आयुर्वेद के सहारे से किडनी फेल्योर का इलाज कर रहा है।
वैसे तो आपके आस-पास भी काफी आयुर्वेदिक उपचार केंद्र होने लेकिन कर्मा आयुर्वेदा ऐसा क्या खास है? आपको बता दें की कर्मा आयुर्वेदा साल 1937 से किडनी रोगियों का इलाज करते आ रहे हैं। वर्ष 1937 में धवन परिवार द्वारा कर्मा आयुर्वेद की स्थापना की गयी थी। वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन कर्मा आयुर्वेदा को संभाल रहे है। डॉ. पुनीत धवन ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता हैं। साथ ही आपको बता दें की डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।