क्रोनिक किडनी डिजीज सी.के.डी. में दोनों किडनी को खराब होने में महीनों से सालों तक का समय लगता है। इसकी शुरूआत में दोनों किडनी की कार्यक्षमता में अधिक कमी न होने की वजह कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन जैसे-जैसे किडनी अधिक खराब होने लगती है वैसे-वैसे ही मरीज की तकलीफ बढ़ती जाती है। क्रोनिक किडनी डिजीज के लक्षण किडनी की क्षति की गंभीरता के आधार पर बदलते हैं। क्रोनिक किडनी डिजीज को पांच स्टेजो में विभाजित किया गया है, जिसमें से आज हम स्टेज 4 के बारे में बात करेंगे। किडनी की कार्यक्षमता के दर या eGFR के लेवल पर यह विभाजन आधारित होते हैं। सामान्य तौर पर eGFR 90ml/min से अधिक होता है।
क्रोनिक किडनी डिजीज स्टेज 4
क्रोनिक किडनी डिजीज स्टेज 4 की अवस्था में eGFR अर्थात किडनी की कार्यक्षमता में 15 से 29 मिली/मिनट तक की कमी आ सकती है। अब यह लक्षण हल्के, अस्पष्ट और अनिश्चित हो सकता है या बहुत तीव्र भी हो सकते है। यह किडनी फेल्योर और उससे जुड़ी बीमारी के भूल कारणों पर निर्भर करता है।
क्रोनिक किडनी डिजीज स्टेज - 4 के लक्षण
हर मरीज में किडनी खराब होने के लक्षण और उसकी गंभीरता अलग-अलग होती है। रोगी की इस अवस्था में पाएं जाने वाले लक्षण इस प्रकार है –
- खाने में अरुचि होना
- बार-बार उल्टी होना और उबकाई आना
- कमजोरी महसूस होना
- अचानक वजन कम होना
- पैरों के निचले हिस्से में सूजन आना
- सुबह के समय आंखों के चारों तरफ और चेहरे पर सूजन आना
- थोड़ा काम करने पर थकावट महसूस होना, सांस फूलना
- रक्त में फीकापन, रक्तअल्पता (एनीमिया) होना। किडनी में बनने वाला एरिथ्रोपोएटिन नामक हार्मोन में कमी होने से शरीर में रक्त कम बनता है।
- शरीर में खुजली होना
- पीठ के निचले हिस्से मे दर्द होना
- विशेष रूप से रात के समय बार-बार पेशाब जाना
- याद्दाश्त में कमी आना
- नींद में नियमित क्रम में परिवर्तन होना
- दवा लेने के बाद भी उच्च रक्तचाप का नियंत्रण में न आना
- स्त्रियों में मासिक में अनियमितता और पुरुषों में नपुंसकता का होना
- किडनी मे बनने वाला सक्रिय विटामिन डी का कम बनना, जिससे बच्चों की ऊचांई कम बढ़ती है और वयस्कों में हड्डियों मे दर्द रहता है।
- भोजन में अरुचि होना और जी मिचलाना क्रोनिक किडनी डिजीज के अधिकांश मरीजों के मुख्य लक्षण है।
क्रोनिक किडनी डिजीज स्टेज 4 का इलाज
आपने देखा होगा कि, डॉक्टर किडनी की बीमारी को दूर करने के लिए डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह देते हैं और आप 10 लाख रूपए खर्च कर देते हैं बल्कि कई सरकारी अस्पताल के भी चक्कर लगाते हैं। आयुर्वेद इस परिस्थिति के लिए स्थायी समाधान पाने का प्रमुख तरीका है। यह 100% आयुर्वेदिक के साथ हर्बल उपचार के साथ, रोगियों को भी प्रमुख आहार योजनाएं मिलती हैं जो रोगियों को तेजी से ठीक करने में मदद करती है।
क्रोनिक किडनी डिजीज स्टेज – 4 को आहार योजना से ठीक करें
- भोजन में प्रोटीन सामग्री कम होना चाहिए
- अनाज, ताजे फल और सब्जियों को भोजन में शामिल करें
- पोटेशियम सामग्री कम लेनी चाहिए
- कैल्शियम समृद्ध भोजन से बचना चाहिए
- अधिक पानी पीना चाहिए
कर्मा आयुर्वेदा, जो क्रोनिक किडनी रोग के लिए प्रभावकारी आयुर्वेदिक उपचार करता हैं। जिससे कई मरीजों को बेहतर तरीके से सुधार मिलता हैं।
क्रोनिक किडनी डिजीज स्टेज – 4 के लिए योग आसान
योग तन और मन दोनों के स्वास्थ्य के लिए बेहतरीन व्यायाम है। नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर न केवल बाहरी गतिविधियों के लिए फिट रहता है, बल्कि नर्वस सिस्टम, पाचन आदि पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, लेकिन अगर आप किडनी की समस्या का सामना कर रहे हैं, तो योग आपके लिए फायदेमंद है। रिसर्च के अनुसार, योग किडनी रोगियों के लिए परफेक्ट व्यायाम है। क्रोनिक किडनी डिजीज का सामना कर रहे लोगों को योग जरूर करना चाहिए।
- मत्स्यासन – यह आसन रोगियों के पीठ के दर्द, गर्दन के दर्द और किडनी के इलाज में फायदेमंद होता है। पहले आप दाहिने पैर को बांयी जांघ पर रखें फिर अब बाएं पैर को दाहिनी जांघ पर रखें अब अपनी पीठ के बल लेट जाएं अपनी कोहनी के साथ अपने सिर को जकड़ें इस स्थिति में 30 सेकंड तक रहें।
- केवला कुसंगका – आप स्वच्छ वातावरण में सिद्धासन में बैठ जाएं। अब नाक से अंदर की तरफ सांस खींचे इसके बाद क्षमता अनुसार सांस को रोक कर रखें, फिर उसके बाद सांस को छोड़ें। इस योग में आप एक मंत्र के आंतरिक जप के साथ सांस लें, अगर आप नेफ्रोटीक सिंड्रोम के मरीज है तो इसे 11 मिनट तक करें।
- शून्यका कुंभक – आप पूरी तरह से सांस छोड़ें अपनी क्षमता अनुसार सांस रोकिए और फिर आंतरिक मंत्र के जप के साथ छोड़ें अब सिर पर चंद्रमा की कल्पना करें जब आप सांस को बाहर नहीं खींच सकते हैं, तो धीरे-धीरे सांस लें ऐसा 21 बार करें, क्योंकि योग से आपका रक्त साफ होता है जिसे किडनी स्वस्थ बनी रहती है।
- भोरोलिका – इसमें आप एक ध्वनि के साथ सांस को नाक के जरिए अंदर की तरह खींचे फिर नाक को ऊंगली से बंद किए बिना ही सांस को अंदर रोक कर रखें, फिर ध्वनि के साथ हल्के से सांस को छोड़ें। ऐसा 21 बार करने से आपकी किडनी के कार्यों में सुधार आता है, लेकिन इन योग को करने से पहले आप ध्यान रखें कि यह योग बुजर्ग, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे और जो महिलाएं गर्भवती हैं, वह इन रोग का अभ्यास बिल्कुल न करें।
सी.के.डी. के अंतिम स्टेज की जटिलताएं
- सांस लेने में अत्यधिक तकलीफ और फेफड़ों में पानी भर जाने की वजह से सीने में दर्द होना।
- हाई ब्लड प्रेशर का अधिक बढ़ना
- जी मिचलाना और उल्टी होना
- अत्यधिक कमजोरी महसूस होना
- केंद्रिय तंत्रिका में जटिलता उत्पन्न होना जैसे - झटका आना, अधिक नींद आना, मांसपेशियों में ऐंठन और कोमा में चले जाना आदि।
- रक्त की अधिक मात्रा में पोटेशियम का बढ़ जाना। यह ह्रदय के कार्य करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है और यह जीवन के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है।
- थैली की तरह ही झिल्ली जो ह्रदय के चारों तरफ रहती है। इसमें सूजन आना या पानी भर जाना। यह ह्रदय के कार्य को बाधित करती है और छाती में अत्यधिक दर्द हो सकता हैं यानि पैरीकाडाइटिस।
- दवा लेने के बावजूद रक्त के फीकेपन में कोई सुधार न होने की वजह से किडनी रोग भी हो सकता है।
क्रोनिक किडनी डिजीज स्टेज – 4 का आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ ‘जीवन का विज्ञान’ है। यह स्वास्थ्य की एक ऐसी समग्र प्रणाली है जिसका प्राचीनकाल से पालन किया जा रहा है। आयुर्वेद के मुताबिक, केवल बीमारियों या रोगों के मुक्ति स्वास्थ्य ही नहीं है, बल्कि यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन की स्थिति होती है। आयुर्वेद के प्राचीन ऋषि, आचार्य सुश्रुत ने स्वस्थ व्यक्ति को परिभाषित किया है। एक व्यक्ति जिसमें दोष (देहद्रव जो शरीर को बनाते हैं), अग्नि (पाचन और चयापचय की प्रक्रिया), धातु (शरीर के ऊतक), मल (मल मूत्र), क्रिया शारीरिक कार्य) संतुलित हो और जो एक संतुलित मन और आत्मा के साथ खुश हो। आयुर्वेद इस विश्वास को मानता है कि उपचार का मार्ग शरीर और मस्तिष्क में संतुलन स्थापित करता है। आयुर्वेदिक उपचार में बीमारियों को रोकने के लिए व्यक्ति की जीवनशैली और खानपान की आदतों को बदलने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। साथ ही दोषों में संतुलन बाहर करने के लिए शमन चिकित्सा और शोधन चिकित्सा (शुद्ध उपचार) भी किया जाता है।
बता दें कि, आयुर्वेद को चिकित्सा की सबसे प्राचीन और प्रमाणिक उपचार माना जाता है, जो आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है। स्वस्थ या रोगग्रस्त व्यक्तियों के लिए आयुर्वेद का जो समग्र द्दष्टिकोण है, किसी भी अन्य चिकित्सा विज्ञान से तुलना नहीं की जा सकती है। व्यक्ति को रोग से बचाना और स्वस्थ बनाए रखना आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य रहा है।
भारत का प्रसिद्ध किडनी उपचार केंद्र कर्मा आयुर्वेदा, जहां किडनी की बीमारियों का आयुर्वेदिक इलाज किया जाता है। यह सन् 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इसका नेतृत्व डॉ. पुनीत धवन कर रहे हैं। साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने सफलतापूर्वक और आयुर्वेदिक उपचार की मदद से 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके उन्हें रोग मुक्त किया है, वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। आयुर्वेदिक उपचार में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे पुनर्नवा, शिरीष, पलाश, कासनी, लाइसोरिस रूट और गोखरू आदि। यह जड़ी-बूटियां रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करती है।