किडनी रोगी रोज़ाना कितना पानी पिए

अल्कोहोल और किडनी रोग

dr.Puneet
+91
OR CALL
9971829191
किडनी रोगी रोज़ाना कितना पानी पिए

पानी का सेवन करना हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है। पानी शरीर से विषैले पदार्थों को आसानी से बाहर निकालने में मदद करता है और शरीर कई तरह की बीमारियों से मुक्त रखता है। पानी सेहत के साथ खूबसूरती को निखारने का काम करता है जैसे – ऑयली स्किन. मुहांसे, दाग-धब्बे आदि से जुड़ी बहुत सी समस्याएं भी दूर हो जाती है, इसलिए दिन में 8-10 गिलास पानी पीने की सलाह दी जाती है, वहीं कुछ लोग इससे भी अधिक मात्रा में पानी का सेवन कर लेते हैं। बहुत से लोग खड़े होकर पानी पीते है, जिससे सेहत से जुड़ी कई दिक्कतें आ सकती है। 

बता दें कि, पानी पीने के अनगिनत फायदे हैं। डॉक्टर रोज कम से कम आठ गिलास पानी पीने की सलाह देते हैं, लेकिन यदि आप किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं, तो आपको पानी पीने को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए। साथ ही बहुत अधिक पानी पीने से शरीर से गंदगी निकालने में मदद मिलती है और किडनी स्वस्थ रहती है, तो आप गलत हैं। अब बात यहां आती है कि, किडनी की बीमारी से बचने के लिए कितना पानी पीना चाहिए?

शरीर एक सिस्टम के तहत पानी के संतुलन को रेगुलेट करता है और इसे मुख्य रूप से प्यास से कंट्रोल किया जाता है। आपकी प्यास आर्गिनिन वासोप्रसेन (Arginine Vasopressin) नाम के हार्मोन का रेगुलेट करती है। एवीपी तब जारी होता है, जब दिमाग में संवेदना होती है कि आपके रक्त में पानी की मात्रा कम हो रही है और बदले में आपकी प्यास बढ़ जाती है, इसलिए बहुत अधिक या बहुत कम पानी पीना शरीर और किडनी के लिए अच्छा नहीं होता है। 

इसी के साथ डिहाइड्रेशन की वजह से डायरियां के बाद अस्थायी किडनी की बीमारी हो सकती है, लेकिन इसका अर्थ ये नही है कि अधिक पानी पीना सुरक्षात्मक है। आपको अपनी प्यास के अनुसार ही पानी पीना चाहिए। यदि आपकी किडनी अधिक कमजोर है, तो आपके अधिक पानी पीना चाहिए, क्योंकि किडनी पर दबाव बने और फ्लूइड बाहर निकल जाए। अधिक पानी नहीं पीना भी किडनी की खराबी का कारण है। 

किडनी फेल्योर के मरीजों को पानी या अन्य पेय पदार्थ लेने में बरतें सावधानी

किडनी की कार्यक्षमता कम होने के साथ-साथ अधिकतर मरीजों में यूरिन की मात्रा भी कम होने लगती है। इस स्टेज में अगर पानी का खुलकर प्रयोग किया जाए, तो शरीर में पानी की मात्रा बढ़ने से सूजन और सांस लेने की तकलीफ हो सकती है, जो अधिक बढ़ने से प्राणघातक भी हो सकती है। 

शरीर में पानी की बढ़ी हुई मात्रा को जाने

  • सूजन आना
  • पेट फूलना
  • सांस चढ़ना
  • रक्त का दबाव बढ़ना
  • कम समय में वजन में वृद्धि होना आदि 

इन संकेतो की मदद से शरीर में पानी की बढी हुई मात्रा से यह जाना जा सकता है।    

किडनी फेल्योर के मरीजों को कितना पानी लेना चाहिए?

किडनी फेल्योर के मरीजों को कितना पानी लेना है, यह मरीज को होने वाली यूरिन और शरीर में आई सूजन को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता है। जिन मरीजों को यूरिन पूरी मात्रा में होता है और शरीर में सूजन भी नहीं आ रही हो, तो ऐसे में मरीजों को उनकी इच्छा के अनुसार पानी या पय पदार्थ की छूट दी जाती है। जिन मरीजों को यूरिन कम मात्रा में होता है या शरीर में सूजन आ रही हो, तो ऐसे मरीजों को पानी कम लेने की सलाह दी जाती है। 24 घंटे में होने वाले कुछ यूरिन में मात्रा के बराबर पानी लेने की छूट देने से सूजन को बढ़ने से रोका जा सकता है। 

क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीजों को क्यों अपने दैनिक वजन का रिकार्ड रखना चाहिए

मरीजों को अपने शरीर के तरल पदार्थ की मात्रा पर नजर रखने के लिए और तरल पदार्थ के लाभ या नुकसान का पता लगाने के लिए अपने रोज के वजन का एक रिकार्ड रखना चाहिए। जब तरल पदार्थ के सेवन के बारे में दिए गए निर्देश का सख्ती से पालन किया जाता है, तब शरीर का वजन लगातार सही बना रहता है। अचानक वजन में वृद्धि रोगी को चेतावनी है कि द्रव पर अधिक प्रतिबंध की आवश्यकता है। आमतौर पर वजन का घटना, तरल पदार्थ पर प्रतिबंध और ज्यादा यूरिन निष्कासन का संयुक्त प्रभाव होती है। 

किडनी रोगियों के लिए पानी का सेवन 

किडनी का काम पानी को छानना है। बैठ कर पानी पीने से किडनी अपना काम अच्छे तरीके से करती है, लेकिन खड़े होकर या फिर जरूरत से अधिक पानी का सेवन करने से किडनी से पानी बिना छने बह जाता है। इससे पोषक तत्व भी अधिक मात्रा में शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इसी तरह से लगातार पानी पानी से किडनी और दिल से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।  

लेकिन पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज में 6 से 7 लीटर पानी पीना सुरक्षात्मक है। जब किडनी की बीमारी बेहद गंभीर हो तो, मरीज को पर्याप्त मात्रा में यूरिन नहीं होने पर पानी का सेवन कम करना चाहिए। क्रोनिक किडनी डिजीज के प्रारंभिक दौर में पानी का सेवन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। वैसे किडनी चिकित्सक सलाह देते है कि, कुछ किडनी डिजीज में जहां अतिरिक्त जल संचय के कारण पैर और शरीर में सूजन हो जाती है और उस अवस्था में कम मात्रा में पानी पीना चाहिए। 

पानी को कैसे और कितनी मात्रा में पिएं 

  • पेट की समस्या – बैठकर पानी पीने की बजाए जो लोग खड़े होकर पानी पीया करते हैं, उन्हें पेट से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अगर कुछ इस तरीके से पानी पीया जाए, तो पानी खाद्य नलिका में जाकर निचले पेट की दीवार पर गिरता है। जिससे पेट के आसपास नाजुक अंगों को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए जब भी प्यास लगे, तो पानी को बैठकर पिएं। 
  • गठिये की समस्या – पानी पीना सेहत के लिए बेस्ट होता है, लेकिन हर बार खड़े होकर पानी पीने से जोड़ो का दर्द और गठिया भी हो सकता है। इससे जोड़ों में मौजूद तरल पदार्थ का संतुलन बिगड़े जाता है, जिससे घुटनों की ग्रीस पर भी बुरा असर पड़ता है जो बाद में काफी बड़ी परेशानियों का कारण बनता है।

किडनी फेल्योर के लिए आयुर्वेदिक उपचार 

आयुर्वेद भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है। वैसे माना जाता है कि, आयुर्वेद 5 हजार वर्ष पहले भारत में उत्पन्न हुआ था। आयुर्वेद शब्द दो संस्कृत शब्दों (आयुष) जिसका अर्थ जीवन है और (वेद) का अर्थ विज्ञान है, जिसको मिलाकर इसका शाब्दिक अर्थ है (जीवन का विज्ञान)। साथ ही अन्य औषधीय प्रणालियों के विपरीत, आयुर्वेद रोगों के उपचार की बजाय स्वास्थ्य जीवनशैली पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है। आयुर्वेद की मुख्य अवधारणा यह है कि, वह उपचारित होने की प्रक्रिया को व्यक्तिगत बनाता है। साथ ही आयुर्वेद के मुताबिक, मानव शरीर चार मूल तत्वों से निर्मित है जैसे – 

  • दोष – दोषों के तीन अहम सिद्धांत है वात, पित्त और कफ। जो कि एक साथ अपचयी और उपचय चयापचय को विनियमित और नियंत्रित करते हैं। इन तीन दोषों का मुख्य कार्य है, पूरे शरीर में पचे हुए खाद्य पदार्थों के प्रतिफल को ले जाना। शरीर के ऊतकों के निर्माण में मदद करता है। इन दोषों में कोई भी खराबी या बीमारी का कारण बनती है।  
  • धातु – यह शरीर को संभल देता है। इसके रूप में धातु परिभाषित कर सकते हैं। शरीर में सात ऊतक प्रणालियां होती है। रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र जो क्रमश प्लाज्मा, रक्त, वसा, ऊतक, अस्थि, मज्जा और वीर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह धातुएं शरीर के केवल बुनियादी पोषण प्रदान करते हैं और यह मस्तिष्क के विकास और संरचना में मदद करती है।  
  • मल – मल का अर्थ है कि, अपशिष्ट उत्पाद या गंदगी। यह शरीर के दोषों और धातु में तीसरा है। मल के तीन मुख्य प्रकार है जैसे – मल, मूत्र और पसीना। मल मुख्य रूप से शरीर से उचित उत्सर्जन आवश्यक है। मल के दो मुख्य पहलू भी है मल और कित्त। मल शरीर के अपशिष्ट पदार्थों के बारे में है, लेकिन कित्त धातुओं के अपशिष्ट उत्पादों के बारे में सब कुछ है।  
  • अग्नि – यह शरीर की चयापचय का स्वास्थ्य और रोग में एक परस्पर क्रिया होती है, जिसे अग्नि कहा जाता है। अग्नि को आहार नली, यकृत और ऊतक कोशिकाओं में मौजूद एंजाइम के रूप में कहा जा सकता है। 

आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है जो हर रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करती है। कर्मा आयुर्वेदा में किडनी का आयुर्वेदिक उपचार किया जाता है और यह भारत का एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक किडनी उपचार केंद्र है। कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल सन् 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इसका नेतृत्व डॉ. पुनीत धवन कर रहे हैं। डॉ. पुनीत धवन ने सफलता के साथ 35,000 से अधिक मरीजों का इलाज करके उन्हें किडनी की गंभीर बीमारी से छुटकारा दिलाया है। साथ ही, जिन लोगों को किडनी डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट करवाने की नौबत आ गई थी उन्हें भी इन दर्दनाक प्रक्रियाओं से मुक्त किया है।

लेख प्रकाशित