एक व्यक्ति को किडनी से जुड़ी कौन-कौन सी बीमारियाँ हो सकती है?

अल्कोहोल और किडनी रोग

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एक व्यक्ति को किडनी से जुड़ी कौन-कौन सी बीमारियाँ हो सकती है?

हम सभी लोग किडनी के महत्व से भली-भांति तरह वाकिफ है कि जब हमारी किडनी ठीक से काम करती है तो हमारा शरीर स्वस्थ बना रहता है। हमारी किडनी हमें स्वस्थ रखने के लिए कई कार्यों को अंजाम देती है, जैसे – रक्त साफ करना, हड्डियों को मजबूत करना, शरीर में रासायनिक संतुलन बनाना, पानी का संतुलन बनाना और पेशाब बनाना आदि। अगर किडनी खराब हो जाए और अपने इन कार्यों को ठीक से ना कर पाए तो व्यक्ति को कई शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। वर्तमान समय में लोगो को किडनी और किडनी से जुड़ी हुई बीमारियों के बारे में बहुत ही कम जानकारी है, जिसके चलते किडनी रोगों की रोकथाम करना मुश्किल होता है। आज के इस लेख में हम इसी विषय में बात करेंगे कि एक व्यक्ति को किडनी जुड़ी हुई कितनी बीमारियाँ हो सकती है।

एक व्यक्ति को निम्नलिखित किडनी से जुड़ी बीमारियाँ हो सकती है

बहुत से लोगो का मानना है कि किडनी से जुड़ी बहुत ही कम बीमारियाँ होती है, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि किडनी से एक-दो बीमारियाँ नहीं है, बल्कि किडनी से जुड़ी बहुत सी बीमारियाँ है। कई बीमारियाँ तो ऐसी भी है जिनके बारे में बहुत ही कम व्यक्तिओं को जानकारी है। साथ ही कुछ कुछ किडनी की बीमारियाँ ऐसी भी है जो कि गर्भ में ही हो जाती है और उनकी पहचान कर पाना भी काफी मुश्किल होता है। तो चलिए जानते हैं किडनी की बीमारियों के बारे में :-

यह किडनी रोग अधिकतर वयस्कों में पाए जाते हैं 

एक्यूट किडनी डिजीज AKD

किडनी अचानक काम करना बंद कर दें या किडनी की कार्यक्षमता में अचानक कमी आ जाए तो उस स्थिति को एक्यूट किडनी डिजीज (AKD) कहा जाता है। किसी दुर्घटना के कारण से खराब हुई किडनी को भी एक्यूट किडनी डिजीज कहा जाता है। यह बीमारी दवाओं का अधिक मात्रा में सेवन, खून के दबाव में अचानक कमी आना और मलेरिया होने के कारण होती है।  उचित उपचार के माध्यम से इस गंभीर बीमारी से निदान पाया जा सकता है।

क्रोनिक किडनी डिजीज CKD

किडनी से जुड़ी हुई सबसे गंभीर बीमारी है क्रोनिक किडनी डिजीज या किडनी फेल्योर। किडनी की इस समस्या में रोगी की किडनी बहुत धीमे-धीमे खराब होती है, इसमें महीनों से लेकर सालों तक का समय लग सकता है। यह किडनी रोग काफी धीमे आगे बढ़ता है इसी कारण इसे पकड़ पाना काफी मुश्किल होता है, इस के चलते इसे साइलेंट किलर के नाम से भी जाना जाता है। मूल रूप से इस क्रोनिक किडनी डिजीज में सीरम क्रीएटिनिन बहुत धीरे बढ़ता है और किडनी की कार्यक्षमता  कम होने लग जाती है, परिणामस्वरूप किडनी खराब हो जाती है।

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम डिजीज NSD

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम डिजीज एक प्रकार का किडनी रोग है जो कि बड़ों की तुलना में यह बच्चों में अधिक पाया जाता है। इस बीमारी में शरीर के कई हिस्सों में बार-बार सूजन देखी जाती है। इसके अलावा नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम डिजीज होने के पीछे पेशाब में प्रोटीन की वृधि, रक्त में प्रोटीन की कमी और कोलेस्ट्रोल का बढ़ना होता है।

पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज PKD

पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज एक वंशानुगत किडनी रोग है, जिसे पीकेडी भी कहा जाता है। इस रोग में किडनी के ऊपर बहुत से पानी के बुलबुले बन जाते हैं, जिसे वैज्ञानिक भाषा में सिस्ट कहा जाता है। इस रोग में मरीज के बाद उसकी संतान को किडनी रोग होने की 50% तक की आशंका रहती है, यह रोग वयस्कों में अधिक पाया जता है।

प्रोटीनमेह PROTEINURIA

प्रोटीनमेह या प्रोटीनुरिया किडनी रोग से जुड़ी एक ऐसी स्थिति है जिसमे पेशाब के साथ प्रोटीन बाहर आने लगता है। यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह किडनी स्वास्थ्य से जुड़ी हुई एक स्थिति है जिसमे रक्त में प्रोटीन की कमी होने लगती और पेशाब में प्रोटीन की अधिकता होने लगती है। इस स्थिति का होना किसी बीमारी या संक्रमण होने का एक साफ़ संकेत होता है।

बच्चों में होने वाले किडनी रोग

आपको बता दें कि बच्चों में किडनी की बीमारी का कारण आनुवंशिक हो सकता है या कोई अन्य स्थिति हो सकती है। 19 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होने वाले किसी भी प्रकार कि किडनी की बीमारी को बालावस्था में किडनी रोग (Pediatric Kidney Disease) के रूप में वर्णित किया जाता है। अनुवांशिक किडनी विकार या इससे संबंधित कोई भी रोग लड़कियों की तुलना में लड़कों को अधिक प्रभावित करते हैं। बच्चों में किडनी से जुड़ी निम्न वर्णित बीमारियाँ होने की आशंका रहती है जो कि अनुवांशिक और गर्भ के दौरान रही कुछ खामियों के कारण होती है।

मल्टीसिस्टिक किडनी डिजीज (MKD)

भ्रूण या शिशु के विकास के दौरान, किडनी के असामान्य विकास होने को मल्टीसिस्टिक किडनी रोग (MKD) कहा जाता है। एमकेडी के दौरान किडनी में विभिन्न आकारों के कई अनियमित सिस्ट बन जाते हैं। यह शिशु में उसके जन्म से पहले से ही होता है और यह एक प्रकार का ‘वृक्क (किडनी) सिस्टिक रोग’ है, यह समस्या एक या दोनों किडनियों में हो सकती है।

हॉर्सशू किडनी

किडनी की यह बीमारी गर्भवस्था के दौरान ही होती है। इस बीमारी में दोनों किडनियां आपस में निचे से जुड़ जाती है और हॉर्सशू यानि घोड़े की नाल के आकार जैसी बन जाती है। हॉर्सशू किडनी को वृक्क संलयन के नाम से भी जाना जाता है। यह लड़कियों की तुलना में लड़कों में अधिक पाया जाता है। इस स्थिति में, प्रोटीन और खनिज बच्चे की किडनी में जमा हो जाते हैं और किडनी में पथरी का निर्माण होने लगता है। इसके कुछ महत्वपूर्ण लक्षण हैं, जैसे - अचानक पेशाब आना, पेशाब में दुर्गंध आना, पेशाब करने पर दर्द होना आदि।

भ्रूण हाइड्रोनफ्रोसिस

किडनी की यह बीमारी बच्चों में जन्म से पहले ही हो जाती है, कुछेक मामलों में यह जन्म के बाद दिखाई देती है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें विकास अवधि के दौरान मूत्र पथ में रुकावट के कारण एक या दोनों किडनियों का आकार बढ़ जाता हैं। इस बीमारी से जूझने वाले बच्चों की पहचान करना आसान होता है, इसमें बच्चे को पेशाब से जुड़ी समस्या होती है और उसका पाचन दुरुस्त नहीं रहता।

विल्म्स ट्यूमर

किडनी की इस स्थिति को नेफ्रोबलास्टोमा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक दुर्लभ कैंसर है जो कि बच्चे की किडनी में होने के साथ-साथ वयस्कों में भी हो सकता है। वर्तमान समय में इस किडनी कैंसर का उपचार उपलब्ध है, जिसकी मदद से इससे आसानी से छुटकारा पाया जाता है।

पीछे के मूत्रमार्ग वाल्व अवरोध

यह बीमारी केवल लडकों में ही देखि जाती है, क्योंकि यह बाधा केवल लड़कों को प्रभावित कर सकती है। भ्रूण हाइड्रोनफ्रोसिस के समान इस विकार का जन्म से पहले भी निदान किया जा सकता है।

पॉलीसिस्टिक किडनी रोग

यह एक बाल चिकित्सा किडनी रोग है जो कि बच्चों और वयस्कों दोनों में होता है। यह एक आनुवांशिक विकार है जो कि उस समय होता है, जब किडनी में सिस्ट (तरल से भरे बुलबुले) बनने लग जाती है। इस रोग की पहचान करना आसान नहीं होता क्योंकि यह रोग बच्चे को उसके परिवार द्वारा विरासत में मिलता है, जिसके लक्षण 35 की उम्र के बाद ही दिखाई देते हैं।

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