क्या नवजात शिशुओं में पॉलीसिस्टिक किडनी रोग की समस्या हो सकती है?

अल्कोहोल और किडनी रोग

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क्या नवजात शिशुओं में पॉलीसिस्टिक किडनी रोग की समस्या हो सकती है?

बच्चों की तुलना में बड़ो की किडनी ज्यादा खराब होती है, क्योंकि किडनी खराब होने का मुख्य कारण होता है बिगड़ी हुई लाइफस्टाइल। बड़े लोगो की लाइफस्टाइल बच्चों की तुलना में सबसे ज्यादा बागड़ी हुई होती है, जिसकी वजह से वह बहुत सी शारीरिक समस्याओं से घिरने लगते हैं और इसी कारण उनकी किडनी तेजी से खराब हो जाती है। किडनी का हमारे शरीर में बहुत बड़ा महत्व होता है, क्योंकि यह हमारे शरीर में बहने वाले खून को साफ करने का काम करती है। वैसे तो हमारी किडनी हमारी गलत लाइफस्टाइल के कारण खराब होती है, लेकिन अब नवजात शिशु भी इस गंभीर समस्या के शिकार होते जा रहे हैं।

आमतौर पर बच्चों में मल्टीसिस्टिक किडनी डिजीज (MKD), हॉर्सशू किडनी, भ्रूण हाइड्रोनफ्रोसिस, विल्म्स ट्यूमर, पीछे के मूत्रमार्ग वाल्व अवरोध और पॉलीसिस्टिक किडनी रोग हो सकता है। इन सभी किडनी रोगों की पहचान कर औषधियों द्वारा इनसे राहत पाई जा सकती है। वैसे तो बच्चों में किडनी से जुड़े कई रोग हो सकते हैं, लेकिन पॉलीसिस्टिक किडनी रोग बाकी अन्य किडनी रोगों की तुलना में से सबसे गंभीर है। क्योंकि यह किडनी रोग वंशानुगत है जो कि माता-पिता या पूर्वजों से बच्चों को मिलता है और इसकी पहचान शुरू में कर पाना मुश्किल होता है। आज इस लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे कि आखिर पॉलीसिस्टिक किडनी रोग किस प्रकार नवजात शिशुओं को प्रभावित करता है और कैसे इससे छुटकारा पाया जा सकता है।

पॉलीसिस्टिक किडनी रोग क्या है?

पॉलीसिस्टिक किडनी रोग जिसे पी. के. डी. भी कहा जाता है यह एक वंशानुगत रोग है जो कि माता-पिता या बच्चे के किसी पूर्वज से बच्चों में जीन के द्वारा अपने आप आ जाती है। अगर माता पिता को यह रोग ना रहा हो लेकिन उसने पहले यह रोग किसी को रहा हो तब भी यह रोग बच्चों में आगे बढ़ने का खतरा रहता है। क्रोनिक किडनी रोग के मुकाबले यह किडनी रोग अधिक पाया जाता है, क्योंकि यह किडनी रोग बच्चे में जन्म से ही जीन द्वारा मिल जाती है। इस रोग में दोनों किडनियों पर सिस्ट बन जाते हैं, जो सैकड़ों से लेकर हजारों की संख्या में होते हैं।

सिस्ट का आकार लगातार बढ़ता रहता है जिससे किडनी का आकार भी बढ़ता है जो कि इस रोग का सबसे गंभीर हिस्सा होता है। अगर इन सिस्टो का उपचार ना किया जाए तो यह रोग क्रोनिक किडनी रोग यानि किडनी फेल्योर में भी बदल सकता है। पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज एक प्रकार का ऑटोजोमल डोमिनेन्ट वंशानुगत रोग है, यह अधिकतर वयस्कों में पाया जाता है। इस रोग में मरीज के बाद उसकी संतान को किडनी रोग होने की 50% तक की आशंका रहती है। पीकेडी के मरीज के भाई – बहन और उसकी संतानों की अपनी जांच जरुर करवानी चाहिए। ताकि समय रहते इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सके।

नवजात शिशुं में पॉलीसिस्टिक किडनी रोग

नवजात शिशुओं में पॉलीसिस्टिक किडनी रोग के पीछे सिस्ट के साथ अल्सर भी होता है। इस गंभीर  बीमारी के दौरान बच्चों में रेनाल ग्लोमेरुली, इंटरचैनल इंटरस्टीटियम, कैलेक्स, श्रोणि और मूत्र से जुड़ी समस्या रहती है। इन सबके कारण बच्चे की किडनी में छेद या घाव देखा जा सकते हैं जो कि समय के साथ साथ आकार में बढ़ता रहता है। जिसके कारण बच्चे को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर ठीक समय पर बच्चे का उपचार किया जाए तो इस बीमारी से आसानी से लड़ा जा सकता है।

बच्चों में के लक्षण पॉलीसिस्टिक किडनी रोग

बाकि किडनी रोग की तरह इस किडनी रोग में भी बीमारी के कई लक्षण दिखाई देते हैं जिसकी पहचान कर पॉलीसिस्टिक किडनी रोग को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। आपको बता दें की बच्चों में पॉलीसिस्टिक किडनी रोग को चार हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है – जन्मजातनवजातबचपन और किशोर।

प्रारंभिक बचपन में बच्चों (3 से 6 महीनों में) और किशोर उम्र (6 महीने से 5 वर्ष) में पॉलीसिस्टिक गुर्दे के विकास के साथ, अल्सर की संख्या बहुत कम है, लेकिन जिगर रोग विज्ञान के लक्षण दिखाई देते हैं। प्रारंभिक बचपन और किशोर उम्र के रोगियों में निदान नवजात या जन्मजात समूह के बच्चों की तुलना में काफी महत्वपूर्ण है: रोग की शुरुआत से 2-15 वर्षों में मृत्यु होती है।

हाल के अध्ययनों में, यह दिखाया गया है कि सक्रिय लक्षण उपचार के साथ, बच्चों को जीवन के पहले 78 महीनों में जीवित रहने से 15 साल की आयु का अनुभव होता है। पॉलीसिस्टिक किडनी रोग वाले बच्चों में मृत्यु के कारण गुर्दे की विफलता या लिवर की विफलता की काफी जटिलताएं हैं। नवजात शिशु को पॉलीसिस्टिक किडनी रोग के दौरान निम्नलिखित समस्याएं हो सकती है, जिसे पॉलीसिस्टिक किडनी रोग के लक्षण की संज्ञा भी दी जाती है।

पेट के आकर में वृधि

किडनी के ऊपर बने सिस्ट का आकर बढ़ने से और पेट में गैस बनने लगती है साथ ही सिस्ट के आकर बढ़ने से पेट भी बढने लगता है। इसके अलावा कई बार कुपोषण के चलते भी पेट बढने की समस्या हो सकती है, इसीलिए इसकी जांच जरूर करवाएं।

पेशाब में खून आना

अगर आपके बच्चे के पेशाब में खून आना शुरू हो चूका है तो आपको तुरंत चिकिसक से इस संबंध में बात करनी चाहिए। पेशाब में खून आना किडनी और पेशाब से जुड़ी समस्या की वजह से आता है, समय पर उपचार ना मिलने की वजह से बच्चें को कई गंभीर स्थितिओं का सामना भी करना पड़ सकता है।

बार – बार पथरी होना

अगर आपको या बच्चे को बार बार पथरी हो रही है तो यह पी. के. डी. का लक्षण होता है। किडनी पर सिस्ट होने के कारण किडनी अपशिष्ट उत्पादों को शरीर से बाहर नहीं निकाल पाती जिसके चलते यह सभी अपशिष्ट उत्पाद किडनी में ही जमा होने लगते हैं और पथरी का रूप ले लेते हैं। आपको बता दें कि पथरी अन्य कारणों से बन जाती है।

मूत्र संक्रमण होना

मूत्र संक्रमण किडनी रोग की एक आम समस्या है। इस स्थिति का सामना हर किडनी रोगी को करना पड़ता है। शरीर में क्षार और अल्म की अधिक मात्रा बन जाती है जो कि बाहर जाने में असमर्थ होती है। इसके अलावा जब मूत्र पथ पर जीवाणुओं की संख्या में वृधि होने लगती है उस समय भी मूत्र संक्रमण हो जाता है।

पेट में दर्द होने की समस्या

पी. के. डी. के दौरान पेट में दर्द हो जाता है, लेकिन बच्चों में इस लक्षण की पहचान करना बड़ा मुश्किल होता है। अगर आपका बच्चा आहार (दूध पीते समय) रोता है तो चिकित्सक से मिला।

उच्च रक्तचाप की समस्या

लगातार बढ़ते सिस्ट के कारण किडनियों पर दबाव बढ़ने लगता है जिससे रोगी को उच्च रक्तचाप की समस्या का सामना करना पड़ता है। लगातार उच्च रक्तचाप रहने के कारण किडनी की कार्यक्षमता घटने लगती है। अगर समय रहते इसका समाधान न किया जाए तो रोगी को क्रोनिक किडनी डिजीज यानि किडनी फेल्योर का सामना करना पड़ सकता है।

कर्मा आयुर्वेद द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार

एक तरफ जहां अंग्रेजी उपचार में डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट का सहारा लेना पड़ता है, वहीं आयुर्वेद में केवल जड़ी-बूटियों कि मदद से खराब किडनी को पुनः ठीक किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा ने आयुर्वेद कि मदद से क्रिएटिनिन को कम कर किडनी रोगियों को रोगमुक्त किया है। कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना 1937 में धवन परिवार द्वारा की गई थी। इस समय प्रसिद्ध आयुर्वेदिक किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. पुनीत धवन कर्मा आयुर्वेदा का नेतृत्व कर रहे हैं जो कि धवन परिवार कि पांचवी पीढ़ी से संबंध रखते हैं। जिन्होंने ना केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। डॉ. पुनीत धवन ने 48 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया है, वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।

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