हिमाचल प्रदेश में एक्यूट किडनी फेल्योर का उपचार

अल्कोहोल और किडनी रोग

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इन दिनों एक्यूट किडनी फेल्योर का खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। जिसका इलाज काफी महंगा होता है। वैसे तो मानव शरीर का हर अंग बेहद जरूरी है, लेकिन किडनी की अपनी विशेषता होता हैं। जैसे मानव शरीर में दो किडनी होती हैं। एक किडनी में लगभग दस लाख छननियां या फिल्टर होते हैं, जो लगातार हमारे शरीर के रक्त को साफ करने का काम करती है।

बता दें कि मानव शरीर की अंदरूनी गतिविधियां दिल के बाद सबसे ज्यादा किडनी पर ही निर्भर करती है। जब किडनी काम करना बंद कर देती है, तब हमारे रक्त में जहरीले पदार्थ जैसे यूरिया और क्रिएटिनिन जमा हो जाते हैं, जो व्यक्ति को बीमार कर देती है और हर इंसान को अपनी किडनी का खास ध्यान रखना चाहिए।

एक्यूट किडनी फेल्योर क्या हैं?

एक्यूट किडनी फेल्योर तब होता है, जब आपकी किडनी रक्त से अपशिष्ट पदार्थों को फिल्टर करना अचानक बंद कर देती हैं। जब किडनी की रक्त छानने की क्षमता खत्म हो जाती है, तो रक्त में अपशिष्ट पदार्थ खतरनाक स्तर पर जमा होने लगता हैं। जिससे रक्त की रासायनिक सरंचना असंतुलित हो जाती हैं।

एक्यूट किडनी फेल्योर एक घातक बीमारी है और इसके लिए विशेष उपचार की आवश्यकता होती है, लेकिन इसे वापस सामान्य स्थिति में लाया जा सकता है। इसके अलावा अगर आपका स्वास्थ्य अच्छा है, तो आप किडनी को सामान्य रूप से काम करने के लिए भी बेहतर बना सकते हैं।

एक्यूट किडनी फेल्योर के लक्षण:

एक्यूट किडनी फेल्योर में किडनी की कार्यक्षमता में अचानक रूकावट होने से अपशिष्ट उत्पादकों का शरीर में तेजी से संचय होता है और पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स के संतुलन में गड़बड़ी हो जाती हैं। इन कारणों से रोगी में किडनी की खराबी के लक्षण तेजी से विकसित होते हैं। वैसे एक्यूट किडनी फेल्योर के लक्षण हर मरीजों में विभिन्न प्रकार के कम या ज्यादा मात्रा में हो सकते हैं।

  • भूख कम लगना
  • जी मिचलाना और उल्टी आना
  • पेशाब की मात्रा का कम या बंद होना
  • चेहरे, हाथ, पैर और टखनों में सजून
  • सांस फूलना
  • उच्च रक्तचाप का बढ़ना
  • रक्त की कमी
  • दस्त-उल्टी या अत्यधिक रक्तस्त्राव
  • तेज बुखार आना
  • उच्च रक्तचाप से सांस लेने में तकलीफ, सीने में दर्द, मांसपेशियों में ऐंठन या झटके, रक्त की उल्टी और असामान्य दिल की धड़कन एंव कोमा जैसे गंभीर और जानलेवा लक्षण भी किडनी फेल्योर के कारण बन सकते हैं।
  • कमजोरी महसूस होना
  • उनींदा होना
  • स्मरणशक्ति का कम हो जाना
  • रक्त में पोटैशियम की मात्रा में वृद्धि होना (जिसके वजह से अचानक दिल की गति बंद हो सकती हैं)।
  • किडनी फेल्योर के लक्षणों के अलावा जि कारणों से किडनी खराब हुई हो उस रोग लक्षण भी मरीज में दिखाई देती हैं जैसे- जहरी मलेरिया में ठंड के साथ बुखार आना।

एक्यूट किडनी फेल्योर के बचाव:

एक्यूट किडनी फेल्योर का पूर्वानुमान लगाना या उसे रोकना अक्सर मुश्किल होता हैं, लेकिन आप किडनी की देखभाल करके अपने जोखिम को कम कर सकते हैं। इन तरीकों को अपनाकर अपनी किडनी को हेल्दी रख सकते हैं।

  • तनाव न लें नियमित रूप से अनुलोम-विलोव व प्राणायाम का अभ्यास करें।
  • गाजर, तुरई, टिंडे, ककड़ी, अंगूर, तरबूज, अनाना, नारियल पानी, गन्ने का रस व सेब खाएं, लेकिन डायबिटीज है तो गन्ने का रस न पिएं। इन चीजों से पेशाब खुलकर आता है। मौसमी, संतरा, किन्नू, कीवी, खरबूजा, आंवला और पपीते खा सकते हैं।
  • विटामिन-बी 3 में तेजी से एक्यूट किडनी फेल्योर से बचाव करने की क्षमता होता हैं।
  • किडनी खराब हो तो ऐसे खाघ-पदार्थ न खाएं, जिनमें नमक व फॉस्फोरस की मात्रा कम हो। पोटेशियम की मात्रा भी नियंत्रित हो और ऐसे में केला फायदेमंद होता है। इसमें कम मात्रा में प्रोटीन होता हैं।

आयुर्वेदिक किडनी उपचार केंद्र

भारत का प्रसिद्ध किडनी उपचार केंद्रो में से एक हैं कर्मा आयुर्वेदा। ये 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इस अस्पताल के नेतृत्व में डॉ. पुनीत धवन है। वह 30 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके उन्हें रोग मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। साथ ही कर्मा आयुर्वेदा में सिर्फ आयुर्वेदिक उपचार का इस्तेमाल किया जाता हैं। डॉ. पुनीत ने अपने सभी मरीजों को सफलतापूर्वक इलाज किया हैं और वह आयुर्वेदिक दवाओं के साथ उचित डाइट चार्ट की भी सलाह देते हैं।

आयुर्वेदिक उपचार में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से दवा बनाई जाती है। जिससे हमारे शरीर में कोई दुष्प्रभाव नहीं होता हैं और वह रोग को जड़ से खत्म करने में सहायता करती हैं।  आयुर्वेद में न केवल उपचार होता बल्कि ये जीवन जीने का ऐसा तरीका सिखाता है जिसमें जीवन लंबा और और खुशहाल होता हैं।

आयुर्वेद में अनुसार शरीर में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों मूल तत्वों के संतुलन से कोई भी बीमारी आप तक नहीं आ सकती है, लेकिन जब इनका संतुलन बिगड़ता है तो बीमारी शरीर पर हावी होने लगती है। और आयुर्वेद में इन्ही तीनों तत्वों का संतुलन बनाया जाता है।

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