हेमोडायलिसिस एक प्रक्रिया हैं जिसके अंतर्गत गंदे पदार्थ जैसे कि क्रिएटिनिन और यूरिया के साथ-साथ मुफ्त जल को रक्त से तक निकाला जाता हैं, जब किडनी वृक्क विफलता में होती हैं। ये चिकित्सा में प्रचलित हैं। हेमोडायलिसिस तीन वृक्क प्रतिस्थापन उपचारों में से एक हैं।
हेमोडायलिसिस एक आउटपेशेंट या इनपेशेंट उपचार हो सकता हैं नियमित हेमोडायलिसिस को एक डायलिसिस आउटपेशेंट सुविधा में आयोजित सुविधा में आयोजित किया जाता हैं, यह या तो अस्पताल का इसी उद्देश्य के लिए निर्मित एक कमरा होता हैं या एक समर्पित स्वतन्त्र क्लिनिक होती हैं। हेमोडायलिसिस को घर पर कम ही किया जाता हैं। एक क्लीनिक में डायलिसिस उपचार को नर्सों और तकनीशियनों से निर्मित विशेष स्टाफ द्वारा शुरू और प्रबंधित किया जाता हैं, घर पर डायलिसिस उपचार को स्वंय आरंभ और प्रबंधित किया जा सकता हैं या किसी प्रशिक्षित सहायक की मदद से संयुक्त रूप से किया जा सकता हैं जो आमतौर पर परिवार का एक सदस्य होता हैं।
हेमोडायलिसिस के लाभ
- सप्ताह में सिर्फ 2-3 बार चार-चार घंटे डायलिसिस करवाना।
- डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाप चिकित्सा करते हैं।
- घर पर कोई उपकरण या मशीन की जरूरत नहीं।
हेमोडायलिसिस से हानि
- हेमोडायलिसिस परिपथ का आरेख
- केंद्र पर जाने की आवश्यकता होती हैं जो डायलिसिस उपलब्ध नहीं हैं। वह आप लंबे समय तक नहीं रह सकते हैं।
- आहार और द्रव पर प्रतिबंध।
- प्रत्येक चिकित्सा में दो बार सुइयों का पंक्चर करना।
- कुछ मरीज़ जिनको दिल की तकलीफ होती हैं, डायबिटीज वाले मरीज या बच्चे कई बार हेमोडायलिसिस बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं।
सीएपीडी कंटीन्यूअस एंबुलेटरी पेरीटोनियल डायलिसिस घर पर ही की जाती हैं, फिर चाहे वह गांव हो या शहर। इसमें पेट की झिल्ली फिल्टर का काम करती हैं। इस चिकित्सा में एक नलिका जिसे कैयेटर कहते हैं, पेट की दीवार में लगा दिया जाता हैं। यह घोल गंदे व विषैले पदार्थों को सोख लेता हैं। साथ ही प्रक्रिया दिन में 3-4 बार करनी पड़ती हैं। पुराना घोल निकाल कर नया घोल पेट में डाल दिया जाता हैं। इसमें लगभग 15-15 हजार रूपए प्रति माह खर्च होते हैं।
हेमोडायलिसिस का आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेद तन-मन और आत्मा के बीच संतुलन बनाकर स्वास्थ्य में सुधार करता हैं। आयुर्वेद में न केवल उपचाप होता हैं बल्कि यह जीवन जीने का ऐसा तरीका सिखाता हैं,जिससे जीवन लंबा और खुशहाल होता हैँ। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों मूल तत्वों के संतुलन से कोई भी बीमारी आप तक नहीं आ सकती हैं,
लेकिन जब इसका संतुलन बिगड़ता हैं, तो बीमारी शरीर पर हावी होने लगती हैं और आयुर्वेद मे इन्हीं तीनों तत्वों का संतुलन बनाया जाता हैं। इसके साथ ही आयुर्वेद में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने पर बल दिया जाता है, क्योंकि किसी भी प्रकार का रोग न हो। बता दें कि, आयुर्वेद में विभिन्न रोगों के इलाज के लिए हर्बल उपचार, घरेलू उपचार, आयुर्वेदिक दवाओं. आहार संशोधन, मालिश और ध्यान का उपयोग किया जाता हैं।
आयुर्वेदिक इलाज शरीर, तन-मन और आत्मा का एक प्राचीन विज्ञान हैं जो जड़ी-बूटियों और ऑरगेनिक का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही आयुर्वेदिक दवाओं जैसे- वरूण, कासनी, गोखुर, पुनर्नवा और शिरीष आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से बनता हैं। ये 100% प्राकृतिक होती हैं और इसमें कोई साइड इफेक्ट नहीं पड़ता हैं। कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल विश्व के सबसे अच्छे कल्याण केंद्र में से एक हैं। ये 1937 में स्थापित किया गया था और इसे धवन परिवार की 5वीं पीढ़ी यानी डॉ. पुनीत धवन चला रहे हैं। आयुर्वेदिक किडनी इलाज विश्व में लोगों के लिए सफल साबित हुई हैं। कर्मा आयुर्वेदा ने प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और पूर्व ऐतिहासिक तकनीकों के उपयोग के साथ हजारों किडनी रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज करते हैं। डॉ. पुनीत धवन में देश-विदेश से आए 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज किया हैं।