एलोपैथी उपचार में किडनी को ठीक करने का केवल एक ही उपचार मौजूद है “डायलिसिस”। यह रक्त छानने की एक कृत्रिम क्रिया है जो कि शरीर से अपशिष्ट उत्पादों और अन्य विषाक्त तत्वों को शरीर से बाहर निकालने में मदद करती है। किडनी फेल्योर के दौरान एलोपैथीक उपचार का चयन करने वाले किडनी रोगियों को डायलिसिस जैसे जटिल उपचार से गुजरना पड़ता है। इसके अलावा जिन लोगो की किडनी मधुमेह के कारण खराब होती है, उन्हें अन्य किडनी रोगियों के मुकाबले डायलिसिस से ज्यादा बार गुजरना पड़ता है।
किडनी खराब होने पर शरीर में पानी और अपशिष्ट उत्पादों की मात्रा बढ़ जाती है जिसे एक स्वस्थ किडनी तो फ़िल्टर कर पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकाल देती है। लेकिन खराब हुई किडनी के लिए यह कार्य कर पाना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में एलोपैथीक उपचार में डायलिसिस द्वारा इन्हें शरीर से बाहर निकालने की कोशिश की जाती है। डायलिसिस किडनी फेल्योर का सफल उपचार नहीं है, बल्कि यह सिर्फ रोगी को राहत भर देने का एक कृत्रिम उपचार है। हर किडनी रोगी इस उपचार को सहन नहीं कर पाता, क्योंकि यह उपचार काफी पीड़ादायक होता है। इसी कारण चिकित्सक रोगी की स्थिति को देखते हुए ही डायलिसिस करवाने की अवधि निश्चित करते हैं।
मुख्य रूप से डायलिसिस दो प्रकार का होता है, हेमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस। आज के इस लेख में हम हेमोडायलिसिस के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
पेरिटोनियल डायलिसिस
पेरिटोनियल डायलिसिस हिमोडायलिसिस के मुकाबले डायलिसिस करने का काफी जिटल तरीका है। इस डायलिसिस को पेट का डायालिसिस (सी. ए. पी. डी.) या पेरिटोनियल डायलिसिस के नाम से जाना जाता है। इस डायलिसिस को रोगी अपने घर पर ही कर सकते हैं। इस डायलिसिस में किसी खास प्रकार की मशीन की आवश्यकता नहीं पड़ती। पेरिटोनियल डायलिसिस करने के दौरान एक खास प्रकार की कई छेदों वाली नरम नली को एक सामान्य ओपरेशन (केथेटर) द्वारा पेट में डाला जाता है। ऑपरेशन द्वारा एक बार नाली पेट में चली जाए तो फिर नली द्वारा पी। डी। द्रव पेट में डाला जाता है। कई घंटों के बाद एक अन्य नली के सहारे से पेट में डाले गये द्रव को पेट से निकाल लिया जाता है। इस द्रव के साथ पेट से सारा अपशिष्ट उत्पाद भी बाहर आ जाता है। इस डायलिसिस के दौरान किडनी रोगी को ज्यादा पीड़ा नहीं होती।
हेमोडायलिसिस को ऐसे समझे
हिमोडायलिसिस किडनी फेल्योर में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला डायलिसिस है। डायलिसिस की इस प्रक्रिया में हिमोडायलिसिस मशीन की मदद से कृत्रिम (Artificial) किडनी में रक्त साफ किया जाता है, जिसे डायलाइज़र कहा जाता है। डायलाइज़र को "कृत्रिम किडनी" (Artificial kidney ) के नाम से जाना जाता है।
डायलाइज़र में ए. वी. फिस्च्युला अथवा डबल ल्यूमेन केथेटर की सहायता से शरीर से रक्त निकाला जाता है। इसी क्रिया द्वारा रक्त शरीर में वापिस भेजा जाता है। हिमोडायलिसिस मशीन द्वारा शरीर में मौजूद अपशिष्ट उत्पादों को कम करने की कोशिश की जाती है। हेमोडायलिसिस उपचार की शुरुआत में, एक डायलिसिस नर्स या तकनीशियन किडनी रोगी के हाथ में दो सुई डालता है। स्वास्थ्य देखभाल टीम द्वारा प्रशिक्षित किए जाने के बाद किडनी रोगी अपनी सुइयों को अपने हाथों में खुद भी डाल सकता है।
एक बार हाथ में सुइयां डालने के बाद सुन्न करने वाली क्रीम या सुन्न करने वाला स्प्रे का उपयोग किया जा सकता है, ताकि सुइयों के कारण किडनी रोगी को कोई परेशानी ना हो। प्रत्येक सुई डायलिसिस मशीन से जुड़ी एक नरम ट्यूब से जुड़ी हुई होती है। डायलिसिस मशीन फिल्टर के माध्यम से रक्त पंप करती है और रक्त को आपके शरीर में वापस लाती है। इस प्रकिया के दौरान, डायलिसिस मशीन आपके रक्तचाप की जांच करती है और उसे नियंत्रित करने की कोशिश भी करती है। इसके अलावा यह मशीन इस बारे में भी ध्यान रखती है कि कितनी जल्दी फिल्टर से रक्त बहता है और आपके शरीर से कितनी मात्रा में तरल पदार्थ निकलता है।
जब फिल्टर्स शरीर में होते हैं तो रक्त में क्या होता है?
रक्त डायलिसिस के दौरान फिल्टर के एक छोर पर प्रवेश करता है और कई बहुत पतले, खोखले तंतुओं में होकर गुजरता है। जैसे-जैसे आपका रक्त खोखले तंतुओं से गुजरता है, डायलिसिस समाधान तंतुओं के बाहर की तरफ विपरीत दिशा में गुजरता है। आपके रक्त से अपशिष्ट उत्पाद डायलिसिस मशीन में चले जाते हैं। फिल्टर्स रक्त खोखले तंतुओं में रहता है और आपके शरीर में वापस आ जाता है।
अगर किडनी रोगी एलोपैथी उपचार लेते हैं, तो आपका नेफ्रोलॉजिस्ट आपकी किडनी को स्वस्थ करने के लिए आपको डायलिसिस जैसे उपचार की सलाह देता है। डायलिसिस मशीन में पानी और रसायन होते हैं जो कि आपके रक्त से अपशिष्ट उत्पाद, अतिरिक्त नमक और तरल पदार्थ को सुरक्षित रूप से निकालने के लिए सुइंयों और नालियों द्वारा जोड़े जाते हैं। आपका डॉक्टर डायलिसिस के दौरान मशीन में रसायनों के संतुलन को समायोजित कर सकता है। किडनी रोगी के रक्त परीक्षण से पता चलता है कि रोगी के रक्त में पोटेशियम या कैल्शियम जैसे कुछ खनिजों की मात्रा के बहुत अधिक या बहुत कम है, जिसके आधार पर डायलिसिस की तैयारी की जाती है।
क्या डायलिसिस से खराब हुई किडनी को ठीक किया जा सकता है?
नहीं, डायलिसिस किडनी फेल्योर का समाधान नहीं है। चाहे कितने लंबे समय तक डायलिसिस करवाया जाए उसके बाद भी खराब हुई किडनी स्वस्थ नहीं हो सकती। यह एक कृत्रिम उपचार है जो कि मशीन की मदद से रक्त को शुद्ध करती है जब किसी व्यक्ति की किडनी ऐसा करने में सक्षम नहीं होती है। डायलिसिस सिर्फ एक अस्थायी उपचार है जो कि किडनी को कुछ कार्य के लायक बनाता है। इस प्रक्रिया को एक सुधार भी कहा जा सकता है, जो केवल कुछ समय के लिए गुर्दे की विफलता के लक्षणों के लिए एक ठहराव के रूप में काम करता है।
दुनिया भर में कई लोग हैं जो डायलिसिस से गुजर रहे हैं और इसकी जटिलताओं से अनजान हैं। डायलिसिस करवाने के दौरान शरीर से अपशिष्ट उत्पादों के साथ-साथ कई जरुरी पौषक तत्व भी शरीर से बाहर निकल जाते हैं, जिनकी कमी के कारण व्यक्ति तेजी से कमजोर हो जाता है। इसके अलावा किडनी रोगी के बाल झड़ने लगते हैं और रोगी को कम सुनाई देने लगता है, यहाँ तक की दिमाग भी कम काम करने लगता है। यदि आप लम्बे समय से डायलिसिस से गुजर रहे है तो आपको आयुर्वेद की मदद लेनी चाहिए। आयुर्वेद की मदद से डायलिसिस जैसे जटिल किडनी उपचार से बचा जा सकता है।
ध्यान दें, “कर्मा आयुर्वेदा कभी भी किडनी रोगी को डायलिसिस करवाने की सलाह नहीं देता”
कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार
कर्मा आयुर्वेदा साल 1937 से आयुर्वेदिक किडनी उपचार करते आ रहे हैं, इसकी स्थापना धवन परिवार द्वारा की गई थी। वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन कर्मा आयुर्वेदा को संभाल रहे हैं, जिन्होंने ना केवल भारत बल्कि विश्व भर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। जिससे हमारे शरीर में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता हैं। साथ ही आपको बता दें की डॉ. पुनीत धवन ने 48 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया है, वो भी आयुर्वेदिक किडनी डायलिसिस उपचार या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।