किडनी डायलिसिस के लिए आयुर्वेद

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डायलिसिस से बचने और किडनी की बीमारी का इलाज
डायलिसिस से बचने और किडनी की बीमारी का इलाज

आज के समय में सभी लोग बहुत-पढ़े लिखे होते हैं लेकिन फिर भी सही जानकारी न होने के कारण लोगों को अपनी बीमारियों के बारे में पता नहीं होता या फिर अधूरे इलाज के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। उन बीमारियों में से एक बीमारी है किडनी की समस्या!

डायलिसिस रोकने के उपाय, किडनी ट्रीटमेंट इन इंडिया
डायलिसिस रोकने के उपाय, किडनी ट्रीटमेंट इन इंडिया

किडनी जब सही ढंग से काम नहीं करती है तब ऐसे में विषैले पदार्थों जैसे क्रिएटिनिन और यूरिया, शरीर से बाहर नहीं निकल पाते हैं। विषैले पदार्थ जब मनुष्य के शरीर बढ़ जाता है, जिंदगी बचाने के लिए डायलिसिस की आवश्यकता पड़ती है।

डायलिसिस रोगियों के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट
डायलिसिस रोगियों के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट

किडनी फेल्योर में किडनी समारोह के पूर्ण नुकसान की स्थिति हैं। जो किडनी की विफलता के कारण क्रोनिक किडनी रोग, पॉलीसिस्टिक किडनी रोग, तीव्र किडनी फेल्योर, गंभीर किडनी संक्रमण आदि हैं।

डायलिसिस में क्रिएटिनिन का स्तर क्या है?
डायलिसिस में क्रिएटिनिन का स्तर क्या है?

ब्लड में क्रिएटिनिन का स्तर बताता है कि, आपकी किडनी अच्छी तरह से कार्य कर रही है और हाई ब्लड प्रेशर का अर्थ है कि आपकी किडनी उस तरह से कार्य नहीं कर रही हैं, जैसे उसे करनी चाहिए। रक्च में क्रिएटिनिन की मात्रा आंशिक रूप से आप के शरीर में उपस्थित पेशीय उत्तको या मांसपेशियों पर निर्भर करती है। पुरुषों में महिलाओं की तुलना में क्रिएटिनिन का स्तर अधिक होता है।

डायलिसिस पे एक व्यक्ति कितने समय तक जीवित रह सकता है?
डायलिसिस पे एक व्यक्ति कितने समय तक जीवित रह सकता है?

जब दोनों किडनी काम नहीं कर रही हो, उस समय किडनी का कार्य कृत्रिम विधि से करने की पध्दति को डायलिसिस कहते हैं। डायलिसिस एक प्रक्रिया है जो किडनी की खराबी के कारण शरीर में एकत्रित अपशिष्ट उत्पादों और अतिरिक्त पानी को कृत्रिम रूप से बाहर निकालता हैं।

डायलिसिस पेशेंट के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट
डायलिसिस पेशेंट के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट

किडनी के लिए ही डायलिसिस किया जाता है जब किडनी की कार्यक्षमता 80-90 प्रतिशत तक घट जाती है और पेशाब का बनना बहुत कम हो जाता है जिससे विषाक्त पदार्थों का शशरीर में जमा होने से थकान सूजन, मतली, उल्टी और सांस फूलने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

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