हम कौन हैं?

एक तरफ जहाँ एलोपैथी उपचार केवल रोग की रोकथाम पर केन्द्रित होकर काम करता है, वहीं दूसरी तरफ आयुर्वेद रोग की रोकथाम के साथ-साथ उसके पैदा होने के मूल कारण से निवारण दिलाने की तरफ भी काम करता है। कर्मा आयुर्वेदा भी बीते कई दशकों से पारम्परिक और प्राचीन आयुर्वेद की सहयता से किडनी रोगियों को रोगमुक्त कर रहा है। 83 वर्ष पहले सन 1937 में डॉ. अर्जुन धवन द्वारा कर्मा आयुर्वेदा की नींव रखी गई थी। तभी से धवन परिवार किडनी रोगियों को आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से पुनः स्वस्थ करने में अपनी सेवाएँ दे रहा है।

कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना के बाद से अब तक धवन परिवार इसका नेतृत्व करता आ रहा है और वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन इस आयुर्वेदिक किडनी अस्पताल का नेतृत्व कर रहे हैं। डॉ. पुनीत धवन एक जाने-माने आयुर्वेदिक किडनी चिकित्सक हैं, जिन्होंने ना केवल भारत बल्कि विश्वभर में आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा किडनी रोगियों को रोगमुक्त कर उन्हें पुनः स्वस्थ कर दिखाया है। डॉ. पुनीत धवन जो कि कर्मा आयुर्वेदा का नेतृत्व करने वाली पांचवी पीढ़ी हैं, इन्होनें अब तक हजारों से भी ज्यादा किडनी रोगियों को रोगमुक्त किया है। किडनी की बीमारी से जीने की आस छोड़ चुके उन सभी रोगियों को कर्मा आयुर्वेदा ने जीने की नई आस प्रदान की है जो जीने की आस एक दम छोड़ चुके थे।

आयुर्वेद की अवधारणा क्या है?

आयुर्वेद में एक स्वस्थ व्यक्ति की परिभाषा कुछ इस प्रकार दी गई है, “समदोषः समाग्निश्च समधातु मलक्रियाः। प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थः इत्यभिधीयते॥” अर्थार्त ‘जिस व्यक्ति के दोष यानि वात, कफ और पित्त सभी संतुलन (सम) में हों, अग्नि सम हो, सात धातुएं भी सम हों, तथा मल भी सम हो, शरीर की सभी क्रियाएँ समान क्रिया करें, इसके अलावा मन, सभी इंद्रियाँ तथा आत्मा प्रसन्न हो, वह मनुष्य स्वस्थ कहलाता है।

आयुर्वेद के अनुसार एक वही व्यक्ति स्वस्थ और आनंदमय जीवन जीता है जिसके पाँचों तत्व संतुलन में हो। आयुर्वेद रोगों के उपचार के बजाय स्वस्थ जीवनशैली पर अधिक ध्यान केंद्रित रखता है। आयुर्वेद में व्यक्ति के दोष पर खास ध्यान केन्द्रित किया गया है, इसके अनुसार अगर व्यक्ति का दोष संतुलन में नहीं है तो इसका अर्थ है उसके पांच तत्व भी संतुलन में नहीं है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में मूल तीन तत्व होते है – वात, पित्त, कफ (त्रिधातु), जिन्हें त्रिदोष के नाम से भी जाना गया है। अगर इनमें संतुलन रहे, तो कोई बीमारी आप तक नहीं आ सकती। आयुर्वेद में निम्न वर्णित दोष है जो कि असंतुलित हो सकते हैं :-

  • वात दोष – वात दोष उस समय में असंतुलित होता है जब व्यक्ति के शरीर में वायु और आकाश तत्व प्रबल हो जाते हैं। वात दोष होने पर हड्डियों से जुड़ी समस्या हो सकती है।
  • पित्त दोष – जब किसी व्यक्ति के शरीर में अग्नि दोष प्रबल हो जाता है तो वह व्यक्ति पित्त दोष से ग्रस्त होता है। शरीर में जलन, अपच, नींद की कमी आदि पित्त दोष में आई समस्या के लक्षण हैं।
  • कफ दोष – पृथ्वी और जल तत्व प्रबल होने पर कफ दोष की समस्या उत्पन्न होती है। कफ दोष होने पर मल-मूत्र और पसीने में चिपचिपापन, शरीर में गीलापन महसूस होना और शरीर में लेप लगा हुआ महसूस होने लगता है।

आयुर्वेद में किडनी की विफलता का उपचार कैसे किया जाता है?

आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल कर रोगी की किडनी को पुनः स्वस्थ किया जाता है साथ ही आयुर्वेदिक औषधियां एलोपैथी औषधियों की भांति रोगी पर कोई दुष्प्रभाव नहीं डालती। इस प्रणाली में किडनी उपचार करते समय रोगी को खास जड़ी-बूटियों से बनी औषधियां दी जाती है। यह प्राकृतिक औषधियां अपने आप ही रोगी के लिए रक्तशोधक का कार्य करती है जिसके कारण रोगी को डायलिसिस की आवश्यकता नहीं पड़ती। एलोपैथी द्वारा किया गया उपचार पानी के बुलबुले की भांति क्षणभंगुर होता है। आयुर्वेदिक उपचार ही एकलौता ऐसा उपचार है जिससे हर बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है।

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